न्यूं इंडिया बनाम ओल्ड इंडिया

शहरी क्षेत्र मे निवास करने वाले भारतीय नागरिको से मेरा एक सवाल है। क्या कभी गांव के जीवन को महसूस किया है। शहरी क्षेत्र मे नेता, अभिनेता और पत्रकार रहते हैं। उच्च स्तरीय नागरिक रहते हैं।

चिंतन करिये कि कैसे ग्रामीण जीवन को उच्च स्तर तक लाया जा सकता है। सरकारें गांव के विकास की बात करती हैं। अन्त्योदय से भारत उदय की बात होती है।
किंतु हकीकत मे गांव के अंदर बिजली पानी की आज भी भीषण समस्या है। खेलकूद के मैदान नही हैं। अस्पताल की अच्छी व्यवस्था नही है या फिर अस्पताल ही नही है और अस्पताल है तो डाक्टर नही है। डाक्टर है तो वे टाइम से आते नहीं हैं।
यही हाल शिक्षा व्यवस्था का है। शिक्षक हैं तो पढाई नही होती है। छात्र हैं तो स्कूल नही पहुंचते हैं और स्कूल जाने वाले छात्र हैं तो पढाई का स्तर गुणवत्ता परक नही है।
भीषण गर्मी की मार और सडक और पानी की समस्या से जूझते ग्रामीण जीवन को कब और कैसे सुख सुविधा मिलेगी ? 
आजादी के बाद से लगातार यही समस्या बनी हुई है। नागरिक अपनी बात नही कह पाते हैं। आखिर कब और कैसे सुधार होगा ? क्या सरकारें कर पायेगीं ? प्रशासन वास्तव मे काम करेगा ? 
शाम को पार्क जाने वाली शहरी जनता, मन को सुख प्रदान करने के लिए विदेश जाने वाली शहरी जनता क्या कुछ योगदान कर पायेगी ? जागरूकता और शासन प्रशासन से बात करने की क्षमता कैसे आयेगी ग्रामीण जनता में कि वे अपनी समस्या को पुख्ता आधार पर रख सकें ? 
ये लोग भी सुख सुविधा पूर्वक जीवन जी सकें। सचमुच बहुत भयावह स्थिति है। कुछ दिन गुजारिये तो इन गांवो मे जीने मरने की स्थिति हो जायेगी।
कैसे सपना साकार होगा विकसित भारत का ? अगर आप मन से महसूस कर सकते हैं, यकीनन आप रो देगें यहाँ का जीवन देखकर। जहाँ शहरों पालतू कुत्तों का जीवन स्तर उच्च है वहीं गांव मे शहरी कुत्तों से बदतर जीवन जीने के लिए ग्रामीण जनता मजबूर है। हकीत मे न्यू इंडिया और ओल्ड इंडिया के बीच बडी खाईं है, जिसे पाट पाना हालफिलहाल संभव नही है। 

लेखक – saurabh dwivedi with anuj hanumat.