समभाव हेतु सूर्य और चांद से सीख लेनी चाहिए

मानव को अगर सीखना है तो सूर्य और चंद्रमा से सीख सकता है। सूर्य और चंद्रमा बुरे व्यक्ति को भी उतना ही ताप और प्रकाश प्रदान करते हैं। जितना एक अच्छे व्यक्ति को प्रदान करते हैं। 
इसका वर्णन गीता मे भी है। समभाव मे रहना इसी को कहते हैं कि खुशी के समय अत्यधिक खुशी नही होनी चाहिए और दुख के समय अत्यधिक विचलित नही होना चाहिए। 
बुरे व्यक्ति को अत्यधिक प्रेम और राह बताने की जरूरत होती है। ये मार्ग भटक जाते हैं। दुनिया को अगर प्रकाश दिखाना है तो आपको सुरज और चांद के इस प्राकृतिक गुण को आत्मसात करना होगा। 
इनके गुण की प्रबलता ही है कि इन्हे हिन्दू और मुसलमान दोनो पूजते हैं। ये मुसलमान हो या हिन्दू हो दोनो को समान रूप से प्रकाश प्रदान करते हैं। हकीकत तो ये है कि ब्रह्मांड से ज्योतिष की बात तय होती है किंतु अब वैसे जानकार ज्योतिष की बहुत कमी हो गई है। 
अन्यथा हमारी जिंदगी मे गृह तारों का प्रभाव पड़ता है। किंतु आप इनके प्राकृतिक गुण को आत्मसात करके जिंदगी मे अंतस के ब्रह्मांड से परिवर्तन ला सकते हैं। 
अगर मानव सूरज और चांद की तरह हो जाए तो हमेशा आलोचना नही करेगा। वो सूक्ष्म दृष्टि का प्रयोग करेगा कि आखिर ऐसा क्यूं है ? इस जगत का कोई भी ऐसा कोना नही बचेगा जहाँ आपकी दिव्य दृष्टि न पहुंच सके फिर क्या पाकिस्तान, आतंकवाद, नक्सलवाद सबकुछ आप जान समझ जायेगें और सरकार के क्रियाकलाप को भी समझ जायेगें। 
स्वयं की जिम्मेदारी और स्वायत्त जीवन को महसूस करके जिंदगी की उड़ान भर सकेगें। महिला हो या पुरूष सबके सब निमित्त हैं। हम सब कारण हैं और कारण कर्ता होता है। ईश्वर ने इंसान को अपनी प्रतिमूर्ति के रूप मे बनाया है। इस पृथ्वी की मिट्टि से और नथुनों मे जान फूंककर कर्म करने के लिए जन्म दिया है। 
मावन जीवन पशु जीवन से भिन्न अलौकिक होता है। किंतु मानव अपनी राह भटकने लगता है। पशुओं से ज्यादा आतंक मानव ने मचा रखा है। किंतु हर मनुष्य स्वयं को सही कहता पाया जाता है। 
शारीरिक कैंसर का बड़ा आपरेशन हो जाता है परंतु मानसिक कैंसर का इलाज सही विचारों से ही संभव है और इस देश दुनिया को मानसिक कैंसर से मुक्ति की आवश्यकता है। जब तक कि सूरज और चांद की तरह मनुष्य नही हो जाता है। 

Saurabh Dwivedi