सदाबहार वृक्ष की तरह सेवा करने वाली शख्सियत .

By : Saurabh Dwivedi

जनपद चित्रकूट के एक चौराहे पर पुलिस मैन ने चर्चा के दौरान बड़ी बात कही थी कि इस वक्त मानव जीवन को बचा लेना महत्वपूर्ण सत्कर्म है। ऐसे ही पुलिस मैन की कही हुई बात को जनपद चित्रकूट के महाराष्ट्र में व्यापार करने वाले अशोक दुबे खूब चरितार्थ करते हैं , ईश्वर से प्रेम करना अर्थात मानव जीवन से प्रेम करना। कोरोना वारियर्स मे एक प्रमुख नाम जो महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश के चित्रकूट तक जनसेवा के लिए जाने जाते हैं। इनकी सेवा का सारांश जानकर मानव सेवा की बड़ी प्रेरणा प्राप्त होती है।

अपनी युवा उम्र के प्रवेश द्वार में ही रोजगार हेतु उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र के पुणे पहुंचकर एक छोटी सी नौकरी से बड़े व्यापारी बनने तक की जीवन यात्रा है। सफलता के चरम को छू लेने के बाद भूख और संकट को महसूस करने वाली एक ऐसी शख्सियत बने , जिनकी आत्मा का एक ही लक्ष्य मानव सेवा करना है।

कोरोना वायरस की दस्तक से पहले भी गरीब – मजदूर परिवारों की मदद करने का स्वभाव सभी के हृदय में विशिष्ट स्थान प्रदान कर गया। पुणे में अनाथालय में जन्मदिन के दिन सहायता करना एवं शिक्षा के लिए सहायता हेतु तत्पर रहना इनका स्वभाव है।

जरूरतमंद महिलाओं को पहुंची राहत सामग्री

पहली चर्चा चित्रकूट में सुहाना के इलाज के समय सर्वोदय सेवा आश्रम द्वारा पहल करने के समय प्रमुखता से सबके हृदय और जुबां मे आई थी। हाल ही में जनपद चित्रकूट में सीता रसोई को शुरूआती दौर में आर्थिक मदद करने वाले प्रथम शख्स थे , जिन्होंने कभी इस बात की चर्चा भी नहीं की और ठीक इसी तरह अनगिनत ऐसे मानव सेवा का कार्य करते रहे , जिसकी कभी व्यक्तिगत इनके द्वारा चर्चा नहीं की गई।

जहाँ एक ओर व्यक्तिगत धन से सेवा करने के लिए मनुष्य हजार बार सोचता है। वहीं ईश्वर द्वारा एक ऐसा हृदय प्रदान किया गया कि महाराष्ट्र में रहकर उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में भूख से कराहती आवाज को सुन लेते हैं और निःसंकोच आनलाइन आर्थिक मदद कर जरूरतमंद तक निमित्त द्वारा मदद पहुंचाने का बड़ा काम कर देते हैं।

जिस राज्य में व्यापार करते हैं। उस राज्य के प्रति भी अपने उत्तरदायित्व को बखूबी समझते हैं। महाराष्ट्र के पुणें में गरीब – असहाय सैकड़ो परिवार को राशन सामग्री और आर्थिक मदद देकर कोरोना काल में बड़ा दायित्व निभा रहे हैं।

संघर्षों से जूझकर सफलता के चरम को छू कर इनके जीवन का लक्ष्य ही मानव सेवा हो गया। अपने देश के प्रति सेवा कार्य द्वारा दायित्व निर्वहन को नैसर्गिक भाव से तैयार रहते हैं। वैसे यह परमात्मा की कृपा ही कही जा सकती है कि कोई मनुष्य इतने विशाल हृदय का स्वामी कलयुग मे हो सकता है और यह कलयुग का राजनीतिक – सामाजिक , पत्रकारिता एवं प्रत्येक स्तर पर कोरोना वायरस जैसा संक्रमण काल है।

एक ओर ऐसे उदाहरण हैं , जिन्होंने धन से कोठरी भर ली है पर सेवा भाव से एक पैसा नहीं निकल पाता और दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं , जिन्होंने राजनीति के लिए नाटकीय सेवा कार्य किया पर सुख की बात यह है कि दुनिया में सदाबहार वृक्ष की तरह सेवा करने वाले अशोक दुबे जैसे मानवीय वृक्ष भी हैं।

सदाबहार वृक्ष की प्राकृतिक कृपा से जन – जन वाकिफ है और शासन – प्रशासन भी सदाबहार वृक्ष के गुणों का मुरीद है। यही वजह है कि सदाबहार वृक्ष की प्रकृति वाले व्यक्तित्व अशोक दुबे से प्रेम करने वालों संख्या बढ़ती ही जा रही है। महत्वपूर्ण यही है कि उन्होंने प्रेम भाव से सदाबहार वृक्ष की छाया और कल – कल करती बयार की धुन से लगातार क्षमतानुसार सेवा की है।

एक ₹ का ( एच्छिक ) सहयोग की कृपा करें

उत्तर प्रदेश के निजी जनपद एवं जन्मस्थान गांव हटवा मे भी लोगों से संपर्क सिर्फ और सिर्फ सेवा कार्य के लिए बनाए रखते हैं। वो लोहदा गांव के पुणे मे रह रहे युवाओं की मदद हो या इससे पूर्व दरसेड़ा गांव में जल आह्वान पर हैंडपंप लगवाकर जल संकट को खत्म करने का महान कार्य रहा हो !

ऐसी सदाबहारी शख्सियत की वजह से ही संसार वट वृक्ष की तरह तमाम पतझड़ के बावजूद टिका रहता है और संकटमय जिंदगियों को जीवन ऊर्जा मिल जाती है। जीवन का दीप प्रज्वलित करने वाले इंसान ही इंसानियत के जीते – जागते उदाहरण हैं।

जीवन में जो कमाया
वो मानव सेवा को
समर्पित है : अशोक दुबे । 
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