परचून की दुकान में वायरस का असर .

गांव पर चर्चा

By :- Saurabh Dwivedi

गांव भारत की आत्मा है। गांव मे परचून की दुकान है। प्रत्येक गांव की तरह पिछड़ा जनपद चित्रकूट का एक गांव नोनार है। इस गांव में भी परचून की दुकान है। इस दुकान से कम से कम एक परिवार का जीविकोपार्जन होता है , जिसमें माता-पिता , दो लड़के और एक लड़की है। दुकानदार पिता के पास महज चार बीघे जमीन है पर वह संवैधानिक रूप से अमीर आदमी है।

गाँव पर चर्चा के भ्रमण के दौरान हमारी मुलाकात नोनार गांव के संतोष गुप्ता से हुई। इनकी छोटी सी परचून की दुकान आकर्षण का कारण बन गई।आधे कच्चे – आधे पक्के मकान में मिट्टी की सोंधी महक के बीच नमकीन , बिस्कुट , कुरकुरे , बतासा , चाय की पत्ती , सब्जी मसाला सहित रसोईं पर प्रयोग होने वाला लगभग प्रत्येक सामान्य जरूरत का सामान , जहाँ मासूम बच्चे भी खरीददारी करने आते हैं।

हमने इनसे कोरोना वायरस और लाकडाउन पर चर्चा की। इनसे पूंछा गया कि लाकडाउन से पहले और बाद में कमाई में कुछ अंतर आया या नहीं ?

इन्होंने सवाल का जवाब बड़ी गंभीरता से देना शुरू किया। संभवतः ये इतने गंभीर हुए कि जैसे कोई बड़ा दुख व्यक्त कर रहे हों। इनका कहना था कि देखिए अंतर तो आया है और यह बड़ा भारी अंतर है। बिक्री मे कम से कम पचास प्रतिशत का अंतर आया है।

लाकडाउन से पहले जहाँ सुबह से देर शाम तक हजार – बारह सौ की बिक्री हो जाती थी। वहीं लाकडाउन में महज तीन सौ से पांच सौ की बिक्री तक सुबह से दोपहर और शाम हो जाती है। जब से लाकडाउन में छूट मिली है तब से थोड़ी राहत आई है।

बिक्री घटने का बड़ा कारण उन्होंने यह भी बताया कि माल कहाँ से लाएं ? चूंकि माल का मूल्य बढ़ चुका था। प्रत्येक प्रोडक्ट पर कुछ ना कुछ ऐसी बढ़ोत्तरी हुई कि गांव का आदमी इतना मंहगा सामान कहाँ से लेगा ? और कैसे लेगा ? इसलिए मेरी छोटी सी दुकान पर बड़ा असर पड़ा है।

हमे भी इनकी दुकान में जितना भरा हुआ सामान दिखा उससे अधिक सामान पूर्व मे होने की जानकारी मिली। साथ ही पता चला कि गांव की जनता भी अब कम खरीदारी कर रही है , तो कह सकते हैं कि लोगों में खर्च करने की प्रवृत्ति मे कमी आई है और यह आटोमैटिक हुआ !

ये गांव के दुकानदार का दर्द है। इनका एक दर्द और भी पता चला , जब हमने इनके परिवार और कृषि से संबंधित जानकारी मांगी और जाति पर सवाल किया ?

इन्होंने जो जवाब दिया वह बड़ा दिलचस्प है। इनकी कुल चार बीघे खेती है। एक नजर में देंखे तो यह गरीब हैं परंतु जाति से बनिया होने की वजह से सामान्य वर्ग मे आते हैं और हमारे देश में सामान्य वर्ग का परिवार अमीर परिवार ही माना जाता है , यह संवैधानिक है ! संविधान ही कहता है कि सामान्य वर्ग में सब उत्तम है इसलिए राशन कार्ड भी गरीबी रेखा से ऊपर का बनाया जाता है।

यदि इनके पास छोटी सी परचून की दुकान ना हो तो ? क्या चार बीघे खेती में परिवार का भरण-पोषण संभव है ? एक बेटी का विवाह संभव है ? बच्चों की अच्छे घर में शादी होगी ? इनका जीवन स्तर उच्च होगा ? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनका जवाब सरकार , समाज और संविधान के पास शायद ही मिलेगा।

फिर भी कुछ किया जाना चाहिए ! गांव पर चर्चा से गांव से हकीकत सामने आ रही है। यह चर्चा होनी चाहिए और संतोष गुप्ता की तरह के किस्से लिखे जाने चाहिए। चूंकि इनके भी परिवार मे देश के भविष्य बच्चे हैं और उन बच्चों के भविष्य से देश का भविष्य तय होता है।

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कोरोना वायरस का असर गांव तक है पर गांव मे जागरूकता की अभी भी कमी है। हमनें इनसे मास्क लगाने और सैनेटाइजर का लगातार प्रयोग करने के लिए चर्चा की और सावधानी बरतने को भी कहा , यह जन जागरूकता का विषय है !

पर्यावरण प्रेमी प्रेस क्लब अध्यक्ष सत्यप्रकाश द्विवेदी से यह किस्सा साझा किया गया तो उन्होंने कहा कि गांव पर चर्चा के प्रथम चरण मे रोचक तथ्य निकलकर आ रहे हैं , जिससे समाज की चेतना जागृत होगी और इस चर्चा के प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण सहित प्रत्येक आयाम को पूरा करने के लिए अनवरत प्रयास किया जाएगा। 
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