मृत्यु के बाद भी शख्सियत रहे जिंदा ऐसे जिएं जिंदगी
कहते हैं कि मृत्यु के बाद हमारी शख्सियत जिंदा रहे। जीवन ऐसा जिओ कि लोग हमेशा याद करें अपने गांव घर और परिवार मे अनुकरणीय व्यक्तित्व बने रहें तो कल सिविल सर्विसेज वाले गांव रैपुरा पहुंचा तो वहां कुछ लोगों ने गोलोकवासी हो चुके पं शिवशंकर द्विवेदी के व्यक्तित्व को लेकर जैसी बातें कहीं वो सचमुच हर नागरिक के लिए अनुकरणीय है।
सड़क पर एक पत्थर पड़ा होगा तो आप पत्थर को देखकर नजरंदाज कर निकल जाओगे। रास्ते मे देशी कुत्तों ने गंदगी कर दी होगी तो आप बरक कर निकल जाओगे ऐसा ही करते हैं सामान्य जन लेकिन पं. शिवशंकर द्विवेदी क्या करते थे ?
संघ मे जीवन खफा देने वाले पंडित जी के सामने कोई पत्थर का टुकड़ा पड़ जाए तो उसे उठाकर कहीं किनारे रख देते और गंदगी दिख जाए तो उस पर धूल डालने का काम करते थे कि गांव वालों को तकलीफ ना हो !
आप वनवासी कल्याण केन्द्र मानिकपुर मे दो बीघा जमीन दान देकर आदिवासी वनवासी समाज की सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किए , गुंता बांध से मिले मुआवजे की धनराशि से दो बीघा जमीन खरीदकर दान किए थे। संघ की पृष्ठभूमि के होने की वजह से सरस्वती विद्या मंदिर शंकर बाजार कर्वी के अंतिम समय तक प्रबंधक रहे।
सिर्फ इतना ही लोग बताते हैं कि आदिवासी वनवासी समाज के लोगों के लिए गांव से हर वर्ष अनाज दान मे लेकर ट्रक द्वारा वनवासी कल्याण केन्द्र मानिकपुर पहुंचाते रहे , यह कार्य मृत्यु से पूर्व स्वस्थ जीवन मे चार पांच वर्ष पहले तक जारी रहा।
ऐसे उनके अनेक कार्यों की चर्चा गांव के लोग कर रहे थे एक किस्सा उनकी खुद्दारी का भी बहुत चर्चित है , लोगों ने यहां तक कहा कि नाना जी देशमुख के सबसे करीबी रहे पंडित जी से परिवार के ही एक लड़के ने सिफारिश को कहा कि नाना जी से मेरी नौकरी के लिए कह दीजिए लेकिन वह नाना जी के पास मिलने तो गए परंतु नौकरी के लिए सिफारिश नही कर सके , उस लड़के से बोले कि यार मैं कहने मे असमर्थ था।
श्रीराम पर उनका गजब का विश्वास था। लोग बताते हैं कि पंडित जी के पास एक सिक्का रहता था। अगर रैपुरा से कर्वी जाना हो तो सिक्के को उछालते और कहते राम कर्वी जाना है कि नही ?
अगर सिक्का चित्त ( टेल ) हो जाता तो कर्वी जाते अगर पट ( हेड ) होता तो दिन भर घर मे ही पड़े रहते और कर्वी नही जाते।
रैपुरा चित्रकूट जनपद का एक ऐसा गांव है जहां सबसे ज्यादा आईएएस , पीसीएस और सरकारी नौकरी करने वाले लोग हैं लेकिन गांव का विकास वैसा नही दिखता जैसा होना चाहिए वही तंग गलियां मिलेंगी और ना कोई खास आकर्षण मिलेगा।
दिया तले अंधेरा इसको ही कहा जाता है अगर डीएम एसडीएम बन चुके लोग अपने गाँव की आत्मा से जुड़े होते तो यकीनन वे इस गांव को अद्भुत बनाते जैसे कुछ घर बंगले जैसे दिख रहे हैं लेकिन घर बनाने और गांव बनाने मे अंतर होता है , वैसे ही देश बनाने मे अंतर होता है।
देश पं शिवशंकर जैसे नागरिक बनाते हैं जो सड़क का एक पत्थर उठाकर किनारे फेकते हैं और नजर आ रही गंदगी पर धूल डालने का काम करते हैं और सड़क पर मृत पड़े कुत्ते के शव को डोर से साइकिल मे बांधकर किनारे फेंकने का काम इसलिए करते कि गांव के लोगों को बदबूदार हवा ना मिले और तरह तरह के परोपकार के काम करते रहे तो समझिए कि नागरिक ही राष्ट्र का निर्माण करता है और पं शिवशंकर द्विवेदी के जीवन से यह सीख लें तो उनको असली श्रद्धांजलि होगी।
सादर नमन