भागवत की शुरुआत ही हुई है महाभारत की समाप्ति से.

राजस्थान मार्बल अमानपुर बेड़ी पुलिया

राजस्थान मार्बल अमानपुर बेड़ी पुलिया चित्रकूट मे भागवताचार्य श्री श्री 1008 श्री बद्री प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने दूसरे दिन मनुष्य के पर चिंतन व स्व चिंतन पर प्रकाश डालकर महाभारत जो अपने अंदर चल रही है , घर परिवार मे चल रही है या हमारे आसपास का वर्णन करते हुए बोले कि भागवत की शुरुआत कहाँ से होती है।

सर्वप्रथम कथा व्यास बोले कि मनुष्य पांच विषयों का भोग करता है जबकि पशु – पक्षी और कोई भी अन्य जीव मात्र एक विषय का भोग करता है। मछली का उदाहरण देते हुए वह बोले कि जब कोई मछली पकड़ने वाला कांटा नदी या तालाब मे डाल देता है। मछली मात्र एक विषय के भोग से कांटे मे फंसे दाने को खाने जैसे ही आती है वह फंस जाती है। मात्र एक विषय का भोग मछली का काल बन जाता है।

ऐसे ही हाथी को त्वचा स्पर्श से प्रेम होता है। हाथी को पकड़ने वाले एक गड्ढा खोदकर उस पर कागज की हथनी बना देते हैं और गड्ढे के पास जैसे ही हाथी आता है वह हथिनी को स्पर्श करने के लिए पहुंचता है और वह भी जाल मे फंस जाता है।

हिरण ‘ शब्द रस ‘ का भोग करता है। इसलिए हिरण का शिकार करने वाले एक धुन बजा देते हैं और वह मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगता है। इस तरह वह भी शिकारियों के जाल मे फंस जाता है।

सीधा सा अर्थ है कि जीव – जन्तु मात्र एक विषय का भोग किया तो मारे गए पर यहाँ मनुष्य 5 विषयों का भोग करता है। दिन – रात इन्हीं विषयों के भोग के लिए वह परिश्रम करता है। छल – कपट से लेकर हर तरह के प्रयास करता है। इसी वजह से घर – परिवार और समाज मे एक महाभारत लगातार शुरू रहती है। फिर मनुष्य के जीवन का कितना बड़ा सवाल है ?

भागवत कथा सुनने के लिए पहले यह महाभारत समाप्त होनी आवश्यक है। तब कथा श्रवण करने का लाभ मिलता है। भागवत कथा अगर सच्चे मन और आत्मा से एकाग्र होकर सुन ली जाए तो स्वयं वैकुण्ठ से भगवान चले आते हैं आपको लेने के लिए।

मनुष्य कथा सुनने के साथ पर ( दूसरे का ) चिंतन करता रहता है। यहाँ तक कि मनुष्य का संपूर्ण जीवन दूसरों के गुण – दोष का चिंतन करते हुए समाप्त हो जाता है। आम बात है कि हम अक्सर किसी और के बुरे पक्ष की चर्चा करते हैं या अच्छे पक्ष की। जबकि पर चिंतन से ज्यादा आवश्यक खुद के जीवन पर चिंतन करने की आवश्यकता है।

खुद का चिंतन करते हुए भगवान की भक्ति मे लीन होना चाहिए। भगवान की भक्ति के बिना हर ज्ञान अधूरा है। भगवान की भक्ति से ज्ञान पूर्ण होता है। यदि वास्तव मे ज्ञानी बनना है तो भगवान की भक्ति मार्ग अपनाना होगा। और इसके लिए पांच भोग से मुक्ति प्राप्त करनी होगी विषयों पर लिप्तता ना रह जाए।

शब्द , स्पर्श , रूप , रस और गंध ये पांच विषय मे से एक विषय का भोग जीव – जन्तु करते हैं तो मारे जाते हैं फिर मनुष्य तो इन्हीं पांच का विषय भोग मृत्यु तक करता ही रहता है। जब तक जीवित हैं तब तक इसलिए मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा सवाल है। और यह महाभारत घर – घर की समाप्त हो अंतर्मन का द्वंद समाप्त हो जिससे भागवत कथा श्रवण करने का आत्मीय लाभ मिले।

जैसे नारद जी के पूर्व जन्म का किस्सा सुनाते हुए पूर्व जन्म के उनके बुरे कर्म राक्षस अवतार का वर्णन कर बताया कि अंत मे उनके भाई ने भागवत कथा का आयोजन कराया और प्रेम योनि मे नारद जी ने कथा सुनी तब उनका उद्धार स्वयं प्रभु ने किया फिर वह अगले जन्म मे नारद मुनि हुए। 

यह कथा वास्तव मे बड़ी आनंददायी है। कथा श्रवण करने पुरूष और महिलाएं और युवा आ रहे हैं। कथा सुनकर रामायण से लेकर महाभारत और भागवत कथा का सार जानें फिर वैसा ही आध्यात्मिक जीवन जिएं।