सामाजिक सहयोग से बनेगा हनुमान द्वार !

@Saurabh Dwivedi

मनुष्य के मनोविज्ञान को समझने की जरूरत है कि किस प्रकार वह व्यापारिक व्यक्तिगत लाभ के लिए खंडहर बन चुके हनुमान द्वार का प्रयोग कर सकता है। लेकिन उनकी आत्मा कलपती नहीं है कि यह शोभा बढ़ाता हुआ गेट ट्रक ने तोड दिया और उसे बनवाने के लिए कोई कब और कैसे सहयोग कर धार्मिक – सात्विक काम कर सकता है ? यह सच है कि मुंबई , लखनऊ जैसे शहर से गेट बनवाने के लिए सहयोग राशि मिली परंतु इस सत्कर्म के लिए बड़ी मानवीय भावना की आवश्यकता रहेगी।

बाबा बीज भंडार , पटेल टेंट हाउस जैसे प्रतिष्ठान ने टूटे हुए गेट पर अपना प्रचार लिखा दिया पर बड़ा सवाल है कि गेट का टूटना इन्हें नजर आया या नहीं ! एक मनुष्य के अनुसार प्रथम प्राथमिकता हनुमान द्वार को बनवाने की होनी चाहिए।

पूर्व के दिनों में जब हनुमान द्वार के संबंध मे लिखा गया। तब बांदा से भी सहयोग प्राप्त होने की बात कही गई तो वहीं मुंबई से अरूण मिश्रा जी ने 500 ₹ की सहयोग धनराशि गूगल पे के माध्यम से भेज दी। लखनऊ से आशुतोष मिश्रा जी का फोना आया और उन्होंने भी 500 ₹ की धनराशि भेजकर हनुमान द्वार बनवाने के संकल्प को ताकत प्रदान की।

गेट तोड़ने वाले चित्रकूट के ही निवासी हैं। वे अमीर आदमी हैं। उनका ट्रक चलता है। उनके ट्रक ने ही गेट तोड़ दिया और रातों-रात जेसीबी से ट्रक निकलकर अपनी घर वापसी कर गया।

जब थाना पहाड़ी में ट्रक नंबर सहित संपर्क किया गया तब कोई तरह ट्रक मालिक को थाना बुलाया गया। उन्होंने गेट बनवाने का वादा किया और हनुमानजी का गेट होने की दुहाई दी , लेकिन उसके बाद उनका वादा सिर्फ वादा रहा पर टूटा हुआ गेट अपनी यथास्थिति मे है।

काफी समय बीतने के पश्चात उनके नाम सहित लिखा गया। पूरी व्यथा से समाज को वाकिफ कराया गया। चूंकि यह गेट व्यक्तिगत मद से बनवाना आसान नहीं था। इसलिए किसी सरकारी मद की बात भी की गई परंतु कुछ लोग स्वयं सहयोग के लिए तैयार हुए तो यह लगा कि सामाजिक सहयोग से धार्मिक हनुमान द्वार के बनने से अच्छा संदेश जाएगा।

जूनियर इंजीनियर के मुताबिक हनुमान द्वार का पुनर्निर्माण कम से कम 2 लाख ₹ मे होगा। इसलिए यह सोचा गया कि जब एक आदर्श राशि एकत्रित हो जाए तब नारियल फोड़कर शुभारंभ कर दिया जाए। अन्यथा शुभारंभ करना भी उचित नहीं होगा।

इस संबंध में प्रेस क्लब अध्यक्ष चित्रकूट सत्यप्रकाश द्विवेदी ने भी सहयोग प्रदान करने की बात कही है और यह चिंतन किया गया कि उनकी उपस्थिति में पूजा – अर्चना कर नारियल फोड़कर शुभारंभ किया जाएगा। परंतु यह तब होगा जब समाज के जिम्मेदार हनुमान भक्तों के द्वारा एक आदर्श राशि प्राप्त हो जाए तब आगे हिम्मत की जा सकती है कि यह अवश्य बनेगा।

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हमें सोचना चाहिए कि हम हनुमानजी के दर संकट कटने के लिए प्रार्थना करते हैं। संकट समाप्त होने के बाद भंडारा करते हैं परंतु एक हनुमान द्वार 6 महीने से धराशायी पड़ा है। ऊपर से स्वार्थी तत्वों ने उस पर अपना प्रचार लिखवा लिया तो सोचिए कि मानवता का स्तर कितना गिर चुका है , हनुमान द्वार प्रचार का माध्यम बन गया परंतु हनुमान द्वार को बनवाने के लिए शायद ही यही लोग आगे आ सकें !

ऐसा लगने लगा है जैसे हम दंगा करने के लिए तैयार रहते हैं पर चंदा देने के लिए पीछे हट जाते हैं। परंतु इस दुनिया में बक्टा से विपिन सिंह जैसे लोग हैं जो 500 ₹ का चंदा चलकर दे जाते हैं। बांदा से दिनेश दीक्षित फोन कर गेट बनवाने मे सहयोग करने की बात कहते हैं। इसलिए इस धार्मिक – सामाजिक काम के पूर्ण होने की आशाएं बढ़ जाती हैं।

बड़े दुख की बात है कि अपना निजी वैध – अवैध काम कराने के लिए लोग घूस दे देते हैं परंतु अपनी ही धार्मिक – सामाजिक विरासत के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए चंदा देने में पीछे हटते हैं , उसका कारण भी सामाजिक निजी स्वार्थी सोच हो जाती है। यह हमारे समाज का दुखद पहलू है।

यह सत्य है कि बहुत से हनुमान भक्त हनुमान द्वार बनवाने के लिए चंदा देने को तैयार हैं। बहुत सारे भक्तों ने कहा है पर कहने के साथ कर दें तो यह शुभ काम शीघ्र ही शुरू हो जाएगा। मुझे विश्वास है कि नांदी के हनुमानजी हमारे हनुमान द्वार के लिए सभी के मन मे प्रेरणा प्रदान करेंगे और इस तरह भव्य हनुमान द्वार का निर्माण होगा।
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