सिंडिकेट अरेस्ट : कथाकार चंदन दीक्षित के फंसे कदम
धार्मिक प्रवचन और श्रीमद्भागवत कथा वाचन के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम चंदन दीक्षित आज विवादों के भंवर में फंस चुके हैं। चित्रकूट के प्रसिद्ध चरखारी मंदिर से अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने वाले दीक्षित अब सिंडिकेट गिरोह के जाल में उलझ चुके हैं।
कैसे फंसे चंदन दीक्षित ?
एक समय तक कथा वाचन से श्रद्धालुओं का मन मोह लेने वाले चंदन दीक्षित बालू के व्यापार से जुड़े विवाद में फंस गए। उन्होंने प्रेस वार्ता में खुलासा किया कि वह केवल एक मध्यस्थ थे, जिन्होंने अपने मित्र मदन गुप्ता (जो बालू का व्यापारी है) और जितेंद्र पांडेय की मुलाकात करवाई थी। लेकिन यह परिचय अब उनके लिए एक भारी भूल साबित हो रहा है।
इस पूरे प्रकरण में लाखों रुपये के लेन-देन का मामला जुड़ा है, जिसमें चंदन दीक्षित खुद को बेकसूर बताते हुए न्याय के लिए कोर्ट में साक्ष्य प्रस्तुत कर चुके हैं और चित्रकूट कोतवाली में एफआईआर दर्ज करवाई है। हालांकि, जितेंद्र पांडेय और उनके सिंडिकेट गिरोह ने लखनऊ, गोंडा और बाराबंकी में भी चंदन दीक्षित के खिलाफ मामले दर्ज करवा दिए हैं जिनमे बाराबंकी का एक मामले मे फाइनल रिपोर्ट चंदन दीक्षित के पक्ष मे लग चुकी है।
धार्मिक कथाकार से विवादों के घेरे तक
एक वक्त था जब चंदन दीक्षित व्यास पीठ पर बैठकर कथा कहते थे, लेकिन अब कानूनी लड़ाई और विवादों में घिरकर डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं। इस स्थिति में न सिर्फ उनकी छवि प्रभावित हुई है, बल्कि उनका कथावाचन भी ठप हो गया है।
क्या कानून करेगा न्याय?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या चंदन दीक्षित को न्याय मिलेगा? या फिर सिंडिकेट की पहुंच और सांठगांठ कानून से ऊपर साबित होगी? अब इस विवाद का भविष्य पूरी तरह न्यायपालिका और कानून व्यवस्था पर निर्भर करता है।
चंदन दीक्षित के इस संघर्ष ने दिखा दिया है कि धार्मिक जगत और अपराध जगत के टकराव में सच्चाई का गला घोंटने की कोशिशें हमेशा होती हैं। अब देखना होगा कि कानूनी प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और प्रभावी रहती है। क्या चंदन दीक्षित अपनी बेगुनाही साबित कर पाएंगे या फिर यह मामला सिंडिकेट के प्रभाव में धुंधला पड़ जाएगा?