एक बड़ा बिजनेसमैन अब एक एक रूपए की भीख / भिक्षा मांग रहा है , क्यों ?
सबकुछ जानने से पहले तो आपको भीख और भिक्षा का अंतर जान लेना चाहिए तो भीख व्यक्तिगत हित के लिए मांगी जाती है और भिक्षा जनकल्याण के लिए मांगी जाती है। अर्थात धर्म और समाज हित मे हम भिक्षा मांगते हैं तो यह सनातन धर्म की प्राचीन परंपरा है।
फेसबुक पर स्वामी सत्यानंद सूर्यवंशी नाम से एक आईडी है। जिन्होंने एक दिन लिखा कि अब मैं एक – एक रूपए का भिक्षाटन करने की यात्रा करुंगा। तो उनकी इस यात्रा पर जितने लोग सवाल कर रहे थे उतने ही लोग उनसे मिलना चाहते थे और इस तरह वो यात्रा पर निकल पड़े।
यात्रा करते हुए स्वामी सत्यानंद सूर्यवंशी का आगमन चित्रकूट भी हुआ। जहाँ श्रीराम मेडिकल स्टोर रेलवे स्टेशन के सामने मिलकर भिक्षा प्राप्त की , इस समय मैं भी आपके पास पहुंच सका और अपनी सामर्थ्य के अनुसार भेट समर्पित कर दी।
भिक्षा लेने के समय ही आपने यह ज्ञान प्रदान किया कि जनकल्याण के लिए जो मांगा जाता है उसे भिक्षा कहते हैं नाकि भीख , आगे आप स्पष्ट करते हैं कि खुद की भूख – प्यास मिटाने के लिए जो मांगा जाए वो भीख है।
आगे आप बताते हैं कि महादेव की प्रेरणा प्राप्त हुई कि कम से कम 21,000 भक्तों का दर्शन करूं और भिक्षा प्राप्त करूं जिससे शिवालय बनाने का धार्मिक ध्येय संपन्न होगा और धर्मशाला बनाएंगे जो अयोध्या मे सभी भक्तों को सुविधा प्रदान करेगा। इस तरह आप चित्रकूट मे भी धर्मशाला आदि बनाने की इच्छा रखते हैं।
कुलमिलाकर आप से मिलकर खुशी हुई और जीवन मे भिक्षा मांगकर पत्रकारिता / लेखन जैसा जनकल्याण का कार्य करने की ऊर्जा महसूस हुई कि समाज का सबसे प्रमुख कार्य है तो जन जन से मुलाकात के दौरान एक एक रूपए की भिक्षा मांग कर इस काम को कर सकता हूँ और आगे जो कुछ भी धर्मार्थ परमात्मा की इच्छा से संपन्न हो सके।
तो मेरा अर्थात आपके चैनल फुलस्टाॅप और वेबसाइट का गूगल पे नंबर एवं बारकोड दिया हुआ आप सबसे भिक्षा मांगकर सहयोग का विश्वास है जिससे जनता का पत्रकार स्वतंत्र रहे और जिंदा रहे जो लोकतंत्र का मजबूत स्तंभ बनकर काम करे।
एक बड़े बिजनेसमैन से यह प्रेरणा मिली है जो इंडीवर मे चलकर भिक्षा मांग कर धर्म और जनकल्याण का कार्य करना चाहते हैं तो इस समय हमारे देश और समाज को जमीनी हकीकत दिखाने वाले लेखक / पत्रकार की सबसे ज्यादा जरूरत है और सनातन परंपरा मे धर्म , लेखन और अध्ययन का कार्य करने वाले लोगों को भिक्षा देने की परंपरा रही है चूंकि जो लोग ज्ञानार्जन मे लगे रहते हैं वह अर्थ नही अर्जित कर पाते इसलिए धन समाज उनको जनकल्याण के लिए भिक्षा स्वरूप देता है।