पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर चुनाव नही होते.

By – Saurabh Dwivedi

दसवीं कक्षा में दीपावली को घर आया और रातों-रात कुछ हजार रुपये के पटाखे बजा डाले। सुबह पापा के कमरे से आवाज आई कि इसने सारे पैसों का पटाखा फोड़ डाला , अब पढ़ने कैसे जाएगा ?

पिछले वर्ष भी सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर बैन लगाया था। इस वर्ष रात आठ से दस का समय तय कर दिया। इस संभावना के साथ कि कुछ कमी आ जाएगी।

पिछले दिनों एक सर्वे देखा कि आतंकवाद के खात्मे के लिए लगभग 18,000 करोड़ रुपये चाहिए तो प्रदूषण खत्म करने के लिए लगभग 94000 करोड़ रुपये चाहिए। अर्थात आतंकवाद से बड़ी समस्या प्रदूषण है।

हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर चुनाव नहीं होते , एक अच्छी जिंदगी के मुद्दे पर चुनाव नहीं होते। भले पीडब्ल्यूडी कस्बे के अंदर की सड़क समय से दुरूस्त ना करे और सड़क से उड़ती धूल होटल के खुले समोसे और जलेबी पर पड़ती रहे , लोग खाएंगे और बीमार होगें। सड़क पर चलते लोगों के नथुनो से धूल अंदर प्रवेश करेगी , लोग बीमार होगें पर जनप्रतिनिधि को छींक भी नहीं आएगी।

तकलीफ बहुत है पर लोग बयां किससे करें। आखिर कैसे कहें कि पीडब्ल्यूडी जाने कितनी जिंदगियां काल की तरह लील जाता है। इस बात की किसी की जिम्मेदारी नहीं है। कोई जनप्रतिनिधि शायद इतना संवेदनशील हो कि वो आम जनता की स्वस्थ जिंदगी और अच्छे दिन के लिए मनन कर सके।

दिलचस्प है कि भारत की जनता अपने अधिकार और जीवन के प्रति इतनी संवेदनशील नहीं , जितनी कि जातिवाद सहित तमाम वाद के लिए तत्पर दिखती है अथवा उसे दल के दलालों द्वारा ऐसा बना दिया गया है।

मैंने बचपन की पापा द्वारा कही बात का उल्लेख इसलिये किया कि सचमुच कोई गरीब का बेटा स्कूल नहीं जा पाता है। मैं बेशक पैसे लेकर पढ़ाई करने निकल पड़ा था , पर वो बात याद आई जिसने उस वक्त मेरा दिल दहला दिया था।

कुछ पांच वर्ष की बात विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मैंने स्वयं पटाखे नहीं बजाए और अपवाद स्वरूप दो – चार पटाखे बजाए होगें। अब कट्टर हिन्दुत्व के लोग कुछ भी कहें कि पटाखे की वजह से धर्म खतरे में पड़ रहा है , या फिर सुप्रीम कोर्ट सिर्फ हिन्दू धर्म के त्योहार को निशाना बनाता है।

न्यायालय की जिम्मेदारी बनती है कि प्रदूषण से संबंधित प्रत्येक धर्म के त्योहार पर भी निर्णय सुनाए। जनता को प्रदूषण से स्वयं लड़ना होगा , इसके लिए जितना प्रयास कर सकते हैं उतना कम है। हम जागरूक नहीं होगें तो भविष्य बड़ा खतरनाक होगा , इसे कुछ इस तरह समझना होगा कि मनुष्य की औसत आयु कम होती चली गई तो प्रदूषण भी बड़ी वजह है , साथ ही अन्य सामाजिक संक्रमण भी !

इसलिये संकुचित सोच से बाहर निकलकर जिंदगी के लिए सोचना होगा। शिक्षा के लिए सोचना चाहिए कि पटाखे कम फोड़कर कुछ बच्चों की शिक्षा के लिए डोनेट कर दीजिए , ताकि बचपन में मेरा दिल दहलने की तरह किसी और बच्चे का दिल ना दहले और दीप प्रज्वलित होते रहें।