भौतिकता से परे आध्यात्म मे है जीवन आनंद.
हमारी भौतिक कल्पनाएं जो होती हैं बहुत ही गजब होती हैं। कल्पनाओं के रस में संसार का रसपान करते हैं। जिंदगी के तमाम लम्हे जैसे शादी से पहले और शादी के बाद बहुत कुछ कल्पनाओं मे ही जी लेते हैं।
मन ही मन हम जीवन रस को पीकर आनंद लेने के लिए कल्पनाओं की नशीली मदिरा का पान कर लेते हैं और ये नशा ही दुनिया से मोह का कारण होता है।
जब कल्पनाओं के विपरीत कुछ घटता है तब ही जीवन की दुखभरी दास्तां शुरू होती है। अगर इस संसार से बेजा मोह न हो या मोह से विरक्ति हो जाए तो यकीनन दुख का कारण कुछ और है भी नहीं।
विलासिता की इच्छा जिंदगी का दमन करती है वरना सचमुच ये जीवन बड़ा सहज और सरल होता है अगर हम आप वास्तव में आध्यात्म और जीवन की कड़ी को महसूस कर लें।
साधन संसाधन आवश्यक हैं किंतु वो दुख दर्द का कारण न बन सकें। भौतिकता का पालन करते हुए विलासिता का दमन कर आध्यात्म की ओर चलकर सचमुच जीवन का आनंद स्वयमेव महसूस करेगें।
हरि ॐ
By – Saurabh Dwivedi