गरीब दिव्यांग चुन्नू की शिक्षा दीक्षा के लिए मिल गए पालनहार.
जब हमे पता चला कि एक दिव्यांग चुन्नू है, जिसकी आंखो मे ज्योति नहीं है लेकिन मन मे पढ़ने लिखने की अलख भरी ज्योति जगमग हो रही है।
अखिलेश विद्यार्थी जब अपने गांव बरद्वारा पहुंचे थे। उस वक्त चुन्नू की इच्छा जानकर दंग रह गए, किन्तु इनका दंग रहने का नशा भंग तब हुआ जब पता चला कि चुन्नू बेहद गरीब परिवार से तो है लेकिन उसकी पिता मे पढ़ाने की इच्छाशक्ति की गरीबी भी व्याप्त है।
इंसान को सोच का धनी होना चाहिए शेष रास्ते स्वयमेव बन जाते हैं। जैसे ही चुन्नू की व्यथा फेसबुक पर लिखा वैसे ही हमारा समाज संस्था के संरक्षक (वरिष्ठ समाजसेवी) अशोक दुबे ने हथेली फैला दी कि उसकी शिक्षा दीक्षा मे पूर्ण सहयोग किया जाएगा।
सच है कि अशोक दुबे एक ऐसे समाजसेवी व्यक्तित्व के धनी हैं जिन्होंने कभी प्रचार प्रसार करना पसंद नहीं किया बल्कि हमे भी इस बात की हिदायत देते रहे कि सिर्फ गरीब जरूरतमंद की मदद करना ही एकमात्र उद्देश्य है नाकि उस प्रचार के द्वारा यश प्राप्त करना।
हालांकि जब व्यक्तिगत रूप से मुझे महसूस हुआ कि इनकी समाजसेवा के इतने कार्य हैं कि वास्तव मे देश के अंदर शायद ही कोई व्यक्तिगत जीवन की कमाई से आर्थिक मदद कर सका हो।
ऐसी इच्छाशक्ति और उदारवादी हृदय करोड़ो मे सिर्फ एक व्यक्ति के पास होता है और ऐसे हृदय के स्वामी अशोक दुबे हैं।
जिनकी सहृदयता पर वास्तव मे किताब लिखी जा सकती है और मदद के तलबगार इंसानियत के धनी व्यक्तित्व की जितनी सराहना की जाए वास्तव मे कम है।
आज चुन्नू जैसे दिव्यांग की जिंदगी शिक्षित हो सकेगी। हम निगरानी के माध्यम से चुन्नू को दुनिया के सामने रोल मॉडल के रूप मे प्रस्तुत करेगें। उसकी 5वीं से लेकर स्नातक तक की शिक्षा दीक्षा मे सहयोग की अपेक्षा तो है वहीं एक ऐसे समाजसेवी व्यक्तित्व ने चुन्नू की जिंदगी संवार दी है।
ये सच है कि इनके द्वारा किए कार्य अभी भी जन जन के समक्ष नहीं आ सके हैं, उन्हे सिर्फ ये जानते हैं या फिर वो व्यक्ति जिनकी मदद की है और कुछ खास लोग जिनमे एक होने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ है कि एक गरीब मजदूर का शव पुणे महाराष्ट्र से बाबूपुर गांव चित्रकूट भेजने व परिवार की आर्थिक मदद से लेकर सुहाना जैसी बेटी की जिंदगी बचाने मे सहयोग और हाल-फिलहाल एक 5 महीने की मासूम बच्ची की जिंदगी बचाने मे अहम भूमिका निभाई। वास्तव मे ईश्वर ने कुछ इस रूप मे ही फरिश्ते भेजे होते हैं।
मेरी सिर्फ इतनी सी सोच है कि इनके द्वारा किए उत्कृष्ट कार्य समाज के सामने आएं तो आने वाली पीढ़ी और समाज को सहयोग की सोच विकसित करने की प्रेरणा मिल सकेगी। जो हमे सुखद परिणाम देगा।
By – saurabh Dwivedi