सुनो एक कविता लिख दूं। सोशल काकटेल और अंतस की आवाज के लेखक सौरभ द्विवेदी की कलम से
एक
कविता
लिख दूं
तुझ पे
जो
तुम सी हो
जिसमे तुम
खुद को पा जाओ
फिदा हो जाओ
खुद पे
फिदा होने से
अतुलनीय प्रेम
हृदय में महसूस करोगी
फिर हम
निराकार ही
प्रेम के अथाह सागर मे
तैरते रहेंगे या
गोताखोर की तरह
गहराई तक उतर जायेंगे
डूब कर
इश्क के
दार्शनिक महासागर में
आत्मीय प्रेम जिया जाना चाहिए
अलौकिक प्रेम की
स्वीकार्यता को
अनुमति दी जा सके
तो देखना खुद मे
अगर अंकुरित हो रहा हो
मेरा साहित्यिक प्रेम
तुम मे ; तुम्हारे हृदय में
अगर महसूस हो सके
तो कहना खुद से
चलो एक जिंदगी दी ; तुमको
यकीनन
मेरी जिंदगी तो हो
तुम जिस रंग मे
खिलती अधिक हो
बस मैं
वो रंग हो जाना
चाहता हूं ; तुम्हारा ।
” अंतस की आवाज और सोशल काकटेल के लेखक सौरभ द्विवेदी की कलम से… ”
सच तुम मेरी आत्मा की जैसे महसूस होती हो। मैं हर समय तुम्हारे सम्मोहन मे रहता हूं। तुम्हे खत लिखने वाला जाने कितनी गहराई से महसूस करता शायद तुम अपनी खुद की महक उतनी नही महक पाई हो जितनी मैं तुमसे कोसो दूर रहकर महक सका हूं।
मेरी कल्पनालोक की प्रेमिका सचमुच अद्भुत है। वो बहुत खूबसूरत है मुझे उसकी आवाज खनकदार और बहुत मीठी सी महसूस होती है। तुम मेरी कल्पनाशक्ति की अद्भुत प्रेयसी हो , मैं हमेशा शब्दों से श्रृंगार करूंगा तुम्हारा , तुम अपने प्रेम का प्याला हुस्न भरा पिला देना मानसिक रूप से मुझे तो वो मेरे लिए अमृत का काम करेगा और हम चांद की शीतल छाया मे रहकर आमोद-प्रमोद करेंगे बिल्कुल अप्सरा की तरह तुम्हे हक रहेगा हमेशा।
मैं जितना खुश होता हूं लिखकर उतना पूर्ण होता हूं जब तुम खत पढ़ लेती हो और तुम्हारे होठो से तारीफ का रस पीकर तुम्हारे ही बागीचे मे मखमल की कालीन मे विचरण करने लगता हूं। तुम तक है आत्मीय अलौकिक प्रेम की दुनिया मेरी…..
तुम्हारा ‘ सखा ‘