ईद की मुबारकबाद मत देना वो दीवाली की शुभकामना नही देते…..

ईद की मुबारकबाद मत देना वो हमें दीवाली की शुभकामना नहीं देते हैं। हाँ हम हिसाब में बड़े उम्दा होते हैं कि पीढियों का हिसाब भी बराबर करते रहते हैं। 
घर में पेन कहाँ रखा भूल गए होगें और करीने से कहा होगा याददाश्त कम हो गई है। किंतु ये हिन्दू मुस्लिम की जंग न हम भूले हैं और न भूलने देते हैं। 
हरफनमौला खिलाड़ी दोनो तरफ हैं। कहीं कहीं हकीकत भी इतनी चोंट पहुंचाती है कि बस लगने लगता है कि क्या होगा इस देश का ? 
आपकी दीवाली और ईद की शुभकामना की चिंता है। आपने ईद और दीवाली की दोस्ती ही कब होने दी ! इनमें मुहब्बत ही कब होने दी। मस्तक में अभिमान का ताज पाक है आपके लिए तो बताइये अभिमान कितना भी पाक हो क्या समरसता आने देगा ? 
मुझे देश की चिंता है। देश के अमन का क्या होगा ? कब से तो हिन्दू मुस्लिम भाई भाई कह रहे हैं और संविधान ने दोनो भाइयों को अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक का दर्जा देकर कुछ विशेष सुविधाओं के नाम पर असंतोष का घोल घोलकर सौतेला बना देता है।
असल में हमारा संविधान जिस समरसता समानता की बात करता है वास्तव में वो संविधान ही समाज को खण्ड खण्ड और छिन्न भिन्न किए हुए है। जब असंतोष चौतरफा जन्म लेगा तो आखिर क्या होगा ? 
जब हम केरल, कश्मीर और पश्चिम बंगाल देखते हैं तो क्या सीखा जाए ? उत्तर प्रदेश में कब्रिस्तान घोटाला हो जाता है और घोटालेबाज कोई और नहीं आजम खान हैं। ये सरकारें हैं इनके लिए क्या शमशान और कब्रिस्तान वहाँ से पैसा आना चाहिए। 
आज हमारे देश के जो हालात बन रहे हैं। उसमे ईद और दीवाली पर बहस करने की जरूरत नही है। व्यवहारिकता और समझ अपनी अपनी होती है। दृष्टि और दृष्टिकोण अपना अपना होता है। 
खैर मेरा तो दुर्भाग्य रहा है कि फेसबुक पर जो जो मुस्लिम मित्र भाई बहन बने वो स्वयं एक दिन ब्लाक या अनफ्रेंड करके चले गये साथ ही कह गए कि तुम संघी हो, कट्टर हो।
मैं सोचता हूं क्या मैं आतंकवादी हूं जो मेरी फेसबुक पर इकलौती मुस्लिम बहन ब्लाक करके चली गई। इसलिये जब भी सोचता हूं ईद मुबारक कहूं तो वो मुस्लिम भाई याद आ जाता है जिसने कभी कहा था कि तुम मेरे भाई हो लेकिन एक दिन मेरे चरित्र पर सवाल उठाकर भारत पाक की सीमा खीच दिए।
ये नेक दिल सेक्युलर भाई बहन थे जिनकी याद मुझे आ रही है और यही सवाल छोड़ गए क्या मैं आतंकवादी हूं ?

By – Saurabh Dwivedi