हिंदी के उन्नयन के लिए जुटे साहित्यकार .
By :- Saurabh Dwivedi
पिछले दिनों सोलन, हिमाचल प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालय में 28 फ़रवरी से 1 मार्च तक हिंदी साहित्य सम्मेलन का 72वाँ अधिवेशन आयोजित हुआ। 110 वर्ष पुराने यह सम्मेलन पूरी तरह से हिंदी के प्रचार-प्रसार और उत्थान में समर्पित है।
पहले दिन सोलन अधिवेशन के सभापति श्री शांता कुमार के हाथों दीप प्रज्ज्वलन के साथ अधिवेशन औपचारिक रूप से आरम्भ हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री श्री शांता कुमार जी ने श्री श्याम कृष्ण पाण्डेय और डॉ रचना सिंह की पुस्तक “युवा पहल : संघर्ष : आज़ादी” का भव्य विमोचन किया। पुस्तक में स्वतंत्रता संग्राम के गौरवपूर्ण इतिहास का वर्णन है। कार्यक्रम में सम्मेलन के सभापति, प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, प्रधानमंत्री श्री विभूति मिश्र और पद्मश्री, प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र सम्मिलित थे।
हिमाचल की सभ्यता और संस्कृति के दर्शन कराते रंगारंग कार्यक्रम के साथ पहले दिन का समारोह संपन्न हुआ।
दूसरे दिन सुबह के सत्र में साहित्यपरिषद् में परिसंवाद का विषय था : ‘हिमाचल की साहित्य संपदा’ जिसकी अध्यक्षता साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष श्री माधव कौशिक ने की और हिमाचल की साहित्यिक परंपरा पर विस्तृत प्रकाश डाला। तदुपरांत अनेक विद्वानों ने इस विषय पर अपने अपने विचार रखे।
दोपहर के सत्र में परिसंवाद का विषय था : ‘एक राष्ट्र, एक राष्ट्र-भाषा’ जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से आए विद्वानों ने अपने-अपने विचार रखे और हिंदी को एक मत से राष्ट्र भाषा माना गया, जो सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन है। सम्मेलन सचिव श्री श्याम कृष्ण पाण्डेय के अनुसार सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन होने के नाते हिंदी सभी प्रांतीय भाषाओं और बोलियों की संरक्षक भी है और सम्मेलन हिंदी समेत सभी प्रांतीय भाषाओं के विकास के लिए समर्पित है। इस विषय पर तीस से अधिक वक्ताओं ने अपने पक्ष रखे जिनमें सम्मेलन के सभापति प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, सचिव श्री श्याम कृष्ण पाण्डेय, प्रो. इक़बाल, डॉ सुरेखा शर्मा और गरिमा संजय ने अपने विचार व्यक्त किये।
दूसरे दिन की शाम कवि-सम्मेलन में गुज़री, जिसमें अनेक कवियों के साथ-साथ डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की कविता ‘माँ’ श्रोता को अपनी सी लगी। सुप्रसिद्ध वरिष्ठ कवि, गीतकार श्री सोम ठाकुर के काव्य-गायन के साथ ही कार्यक्रम संपन्न हुआ।
तीसरे दिन सुबह के सत्र में परिसंवाद का विषय था ‘वैचारिक प्रदूषण : कारण और निवारण”। इस परिसंवाद का आरंभ डॉ. बद्री नारायण, निदेशक गोविन्द वल्लभ पन्त, सा. वि. शोध संसथान, प्रयागराज ने किया, जिन्होंने वैचारिक प्रदूषण विषय पर अपने व्यापक विचार रखे और विषय की सम्यक व्याख्या की।
समापन सत्र का आयोजन सभापति श्री शांता कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश, महामहिम श्री बंडारू दत्तात्रेय, राज्यपाल, हिमाचल प्रदेश, डॉ धनीराम शाण्डिल, विधायक, सोलन, पद्मश्री प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र के सानिध्य में हुआ। इस अवसर पर सभापति श्री शांता कुमार और महामहिम श्री बंडारू दत्तात्रेय के हाथों गरिमा संजय के नए उपन्यास ‘ख़्वाहिशें अपनी-अपनी’ का गरिमामयी विमोचन भी हुआ।
श्री शांता कुमार, श्री सोम ठाकुर, श्री माधव कौशिक, डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा, डॉ जय प्रकाश और डॉ रमेश कुंतल मेघ को सम्मेलन के प्रतिष्ठित साहित्य वाचस्पति सम्मान से सम्मानित किया गया।
राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय ने अपने भाषण पर हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए एकजुट और एकमत होने का आह्वान किया और श्री शांताकुमार ने कहा कि हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए हमें इसके उपयोग से जुड़ी हीन भावना से ऊपर उठना होगा। जिसकी शुरुआत करने के लिए कम से कम अपने परिवार में होने वाले विवाह आदि समारोह के निमंत्रण कार्ड हम हिंदी में छपवाएँ और हिंदी भाषा के उपयोग पर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करें।