जिसने सदुपयोग नहीं किया वो दुरूपयोग की उद्घोषणा कैसे कर सकता है ?

By :- Saurabh Dwivedi

जिसने सदुपयोग नहीं किया वो दुरूपयोग की उद्घोषणा कैसे कर सकता है ? यह तो वही हुआ जलेबी का स्वाद चखा नहीं खराबी की बात पहले कह दी !

मेरे कस्बे में एक होटल है। श्रीराम की होटल है। होटल मालिक का नाम श्रीराम है। मैं घर की चाय पीने के बावजूद भी चाय और सामाजिक मिजाज की चुस्कियां संग – संग लेने के लिए श्रीराम की होटल में चाय पीने के लिए चला जाता हूँ।

सुबह – सुबह सहसा ही मेरे मन से जुबान से ” जय श्रीराम ” प्रस्फुटित हो गया। मैंने कहा ” जय श्रीराम ” !

श्रीराम मेरे गांव का आदमी है। मैंने कहा श्रीराम तुम्हारे नाम का दुरूपयोग हो रहा है , बालीवुड की तमाम हस्तियों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है।

उस चिट्ठी मे कहा गया है कि जय श्रीराम के नारे का दुरूपयोग हो रहा है। जय श्रीराम का नारा लगाने वालों से देश का एक समुदाय डरा , सहमा हुआ है !

तो क्या हुआ ? यह श्रीराम का सवाल था और जवाब भी मिला जो हो रहा है सही हो रहा है।

मैंने जिज्ञासा प्रकट की , कैसे और क्यों सही हो रहा है ?

उसने कहा कि उन बालीवुड की हस्तियों ने कभी ” जय श्रीराम ” के नारे का सदुपयोग किया है ?

जिन्होंने सदुपयोग नहीं किया , वे दुरूपयोग की उद्घोषणा कैसे कर सकते हैं ? बात बड़ी सच्ची प्रतीत हुई !

जिसने सदुपयोग नहीं किया , वे दुरूपयोग को कैसे महसूस कर सकते हैं ? यह महज राजनीतिक है और राजनीतिक बीमारी कही जाएगी।

होटल चलाने वाले श्रीराम की बात किसी दार्शनिक से कम नहीं थी। उसने सदुपयोग और दुरूपयोग के कारण को स्पष्ट कर पटाक्षेप कर दिया। विश्वास जता दिया कि जय श्रीराम के नाम पर स्वहित पर हुए प्रहार के बदले की राजनीति बालीवुड की कुछ हस्तियां , दरबारी साहित्यकार और चुनिंदा पत्रकार व एक्टिविस्ट कर रहे हैं।

जबकि सत्य है कि इस प्रकार की चिट्ठी से मामला सुलझना नहीं है। मामला अधिक संगीन हो जाएगा। इसलिये जब पहली बार जय श्रीराम का नारा बदले के भाव से लगा तब नारा लगाने वालों पर पुष्प वर्षा भी की जा सकती थी , सहजता से लिया जा सकता था। दोषी वे भी हैं जिन्होंने जय श्रीराम के नारे पर नफरत की प्रतिक्रिया की और दोषी वे भी हैं जो आध्यात्म से इतर नारे का राजनीतिकरण कर रहे हैं।

इस राजनीतिकरण के पीछे भारत में फैली लेनिन , मार्क्स , सेक्युलर एवं तमाम तथाकथित सामाजिक न्याय की विचारधारा पर सत्ता लोलुप कथित नेताओं का वैचारिक संघर्ष है। बहरहाल सोचना उन्हें भी चाहिए जो जय श्रीराम नारा चिढ़ाने के उद्देश्य से लगाते हैं , चिढ़ने वाले भी विचार करें कि कमी जय श्रीराम मे है या आप में ?