कोरोना से आगे कैसे गुजरेगी जिंदगी .
@Anuj pandit
दुर्गत चार महीनों से समूचे विश्व सहित भारत कोरोना के दुष्प्रभावों को किस तरह सहन कर रहा है, यह सबकी आँखों के सामने है!
सर्वकार और नौकरशाह ने इस महामारी के बढ़ते कदमों को रोकने हेतु अनेकशः प्रयत्न किये किन्तु इसे एक इंच भी पीछे धकेलने में असफल रहे।
संक्रमण और संक्रमित व्यक्तियों की सङ्ख्या में रात्रिन्दिवा बढोत्तरी ही हुई है क्योंकि अब तक इसके चंगुल से छुड़ाने वाली कोई भी औषधि मैदान में नहीं उतरी है।
इन चार महीनों से जनता के बीच जो चर्चा जारी है वह यह है कि भारत में कोरोना टेस्ट की कोई ऑथेंटिक मशीन है भी या नहीं ! ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि जितने भी पॉजिटिव नतीजे आये हैं उनमें से नब्बे प्रतिशत व्यक्तियों को या तो कोई अन्य बीमारी है या तीन से चार दिनों बाद उन्हें नेगेटिव करार देकर घर वापस भेज दिया जाता है।
सच कहें तो कोरोना की विभिन्न कोटियाँ देखने को मिल रही हैं क्योंकि पॉजिटिव व्यक्ति के साथ उठने बैठने वाला ,सामूहिक भोज में सम्मिलित होने वाला और ग़दर में गर्दा उड़ाने वाला व्यक्ति कोरोना को मात देता नजर आ रहा है।
आखिर चौदह या इक्कीस दिन के आइसोलेशन में संक्रमित व्यक्ति को क्या चिकित्सा दी जाती है जिसके आधार पर यह कह सकते हैं कि वह व्यक्ति डंके की चोट पर नेगेटिव होकर रहेगा!
इन सबसे इतर जो महत्त्वपूर्ण बात है वह यह है कि समाज द्वारा संक्रमित व्यक्ति को एक अपराधी की नजर से देखा जा रहा है। आखिर क्यों उसे लोग अपराधी की नजर से देखकर उसके बारे में पुराण लिखने बैठ जाते हैं! क्या बीमार या संक्रमित होना कोई जुर्म है?
हॉटस्पॉट क्षेत्र के सन्नाटे को देखकर ऐसा लगता है मानो वहाँ मातम मनाया गया हो या गुंडों ने बलपूर्वक बस्ती खाली करा ली हो!
अभी हाल ही में अमिताभ बच्चन ने एक ट्वीट में आइसोलेशन एवं डॉक्टर्स की हकीकत बताते हुए कहा है कि यहाँ पर संक्रमित व्यक्ति के समक्ष जिस तरह से डॉक्टर्स व वार्ड बॉय उपस्थित होते हैं, उससे उस व्यक्ति के मन में भय का माहौल निर्मित हो जाता है जिसके कारण वह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि जब यहाँ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है तो जब वह ठीक होकर बाहर पब्लिक के बीच में जायेगा तो उसे किस दृष्टि से देखा जाएगा!
इन्हीं चर्चाओं के बीच आइसोलेशन वार्ड से सम्बंधित तरह-तरह की खबरें देश के विभिन्न हिस्सों से आ रही हैं जिन्हें सुनकर कोई भी वहाँ जाने से कतरायेगा क्योंकि बिहार से एक खबर आई थी कि वहाँ आइसोलेशन वार्ड में एक गर्भवती महिला को कोरोना पॉजिटिव होने के नाते तीन दिन रखा गया। इन तीन दिनों में वहीं के एक वार्ड बॉय ने उस महिला के साथ क़ई बार दुष्कर्म किया लिहाजा घर वापसी के दो दिन बाद ही महिला की मौत हो गयी!
बहरहाल… इस सड़े हुए लोकतन्त्र में इस तरह की चर्चाएँ लाजिमी हैं,क्योंकि यहाँ जितने आनन, उतने प्रकार की बातें!
अब बात करते हैं जीवन से जुड़े हुए अन्य क्षेत्रों की जो कोरोना के चलते लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं।
छोटे-मोटे कारोबारी,दिहाड़ी मजदूर और प्रवासी मजदूर जो कोरोना के आतंक के भय से घर वापसी कर चुके हैं, उनका क्या होगा क्योंकि उनके सामने द्विविधा उत्पन्न हो गयी है। एक ओर कोरोना के बढ़ते प्रभाव के कारण वे परदेश जाने से कतरा रहे हैं और दूसरी ओर पेट भरने के जुगाड़ में यदि आस-पास काम करना चाहें तो काम ही नहीं है!ऐसे में भला कब तक ढनगेगी उनके जीवन की गाड़ी!
स्कूल बंद पड़े हैं, प्रतियोगी छात्र रोजगार की आश लगाए ओवरएज होते जा रहे हैं और कोरोना है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है!
यदि इन बिंदुओं पर गम्भीरता से विचार किया जाए तो दिल धक्क हो जाता है और भविष्य की तस्वीर की कल्पना करके कुछ पल के लिए मन स्तब्ध हो जाता है कि पता नहीं क्या होगा आगे और कैसी गुजरेगी ज़िन्दगी! क्योंकि सामूहिक भोज रुक नहीं रहे, जनप्रतिनिधि कारवाँ लेकर चलने से बाज नहीं आ रहे और अधिकांश जनता लापरवाही के वश में है।
खैर,अब लॉकडाउन बढ़ाना तो समस्या का हल नहीं किन्तु काफी हद तक सावधानी बरतने से संक्रमण से बच सकते हैं ।
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Saurabh Chandra Dwivedi
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