कैसे भूलूँ उन आँखों को मानो मृगनयनी .
By :- Monica sharma
नही भूलता
मुझे
तुम्हारा वो उदास चेहरा
मानो कोई
शंकुतला प्रतीक्षा पथ पर
जोहती हो बाट
अपने प्रेमी के
आने की…
कैसे भूलूँ
उन आँखों को
मानो मृगनयनी
जानती हो के
अब
मृत्यु निश्चित है…
प्रेम राह
भूला तो न था
समय विरोधी था
रिश्तों के मायाजाल से
निकलने की
कोई राह
मिली नही…
प्रेम के चक्रव्यूह से
निकलता कोई नही
मारे दोनों जाते हैं
जीवित रहती है
तो बस देह
मात्र देह…
काश के मैं
होती कोई जादूगरनी
या के देवी
जो हर ले पीड़ा
हर प्रेमी की…
परन्तु संसार में
श्रापित है प्रेम
किसी न किसी
अहंकारी के द्वारा…
स्वयं के होने के
उस अहम को
कायम रखने को
दे देते हैं
हर बार श्राप
प्रेम को…
ये प्रेम की नियति है
वरदान न पाने की
सर्वदा स्थापित ना
रहने की…
प्रेमियों के भाग्य में
सदा सुखी
सदा खुश रहो
के वरदान नही होते…
परन्तु प्रेमियों के
हृदय की
लकीरों में
लिखा होता है
सब के लिए
प्रेम में
प्रेम मय
क्षमा दान…
( प्रेम को महसूस करने के लिए संवेदनशील मन चाहिए और हरहाल में प्रेम जी लेने की चाह , ऐसी ही चाहत से मोनिका शर्मा की कलम से जन्मती हैं कविताएं )