लहरें : रेत की तरह धन्य हो जाता हूँ , तुम्हारे प्रेमिल स्पर्श से। जिसका ना आदि है ना अंत !
By :- Saurabh Dwivedi
सीने का एक कोना है , जहाँ हृदय का स्थान होता है। स्त्री हो या पुरुष हृदय का स्थान एक ही है। यही समानता है संयुक्त रूप से ! मन जितना काल्पनिक है उतना ही सच है और आत्मा भी ! प्रेम मन और आत्मा से महसूस होता है। मन और आत्मा अदृश्य हैं परंतु इनके अस्तित्व को कोई नकार नहीं सकता। ऐसा ही अस्तित्व मेरे मन और आत्मा में तुम्हारे अहसास का है , यही प्रेम है।
अक्सर तुम्हारे अहसास को शब्द देना चाहता हूँ। किन्तु समय से पहले कुछ भी संभव नहीं हो पाता। इधर कुछ दिनों से खूब बेचैनी रही मन में एकाध वाक्य भरे अहसास अंकुरित हुए। शब्द देना चाहा किन्तु फिर ठहर गया ये मन !
कुछ ऐसे ही जैसे सागर की लहरें जन्मती हैं फिर सागर में समाकर लुप्त हो जाती हैं। अर्थात शांत हो जाती हैं। सागर की भी व्यथा होगी कि मेरी लहरें महसूस हो क्यों लुप्त हो जाती हैं। सागर के मध्य भाग में उठती एकाएक उठती लहरें वापस गहरे में उतर लुप्त हो जाती हैं।
इसी सागर से उठती लहरें तट तक चली आती हैं। वो तटबंध को स्पर्श करती हैं। तटीय क्षेत्र में खड़े शैलानियों को भिगो देती हैं ; यदि वो भीगना चाहें अन्यथा लहरों से दूर भागने पर लहरें निश्चित दूरी तक यात्रा कर वापस लौट जाती हैं। कभी-कभी असावधानी में शैलानी भीग जाते हैं तो बहुतायत शैलानी लहरों से स्नान कर लेना चाहते हैं और भीगकर आनंदित होते हैं।
मैं सागर के तट पर कभी नहीं पहुंचा। मेरे लिए सागर और लहरें दोनों उतने ही काल्पनिक अलौकिक हैं जितना कि प्रेम ! महसूस हो रहा है मुझे कि सीप सागर के अंदर रहकर नमकीन जल में भीग कर सुरक्षित रहती है। वैसे ही मेरे मन में प्रेम का सागर है और अहसास रूपी लहरें जन्मती हैं ; लुप्त होती हैं।
व्यथित हो जाता हूँ ; जब कभी लगने लगता है कि प्रेम नहीं रच पाऊंगा क्या ? अब कुछ अहसास नहीं लिख कर प्रवाहित कर पाऊंगा क्या ? यह पल मेरे लिए मृत्यु के समान हो जाता ! चूंकि हृदय के अंदर ही दर्द व्याप्त है जो अक्सर बूंद बूंद अहसास बारिश की बूंदों की तरह बरसने से रोक देता है। यह वैसे ही है जैसे दिन में अंधेरा हो जाना , बादलों का घिर जाना और जोर से गर्जना होना , बिजली का कड़कना परंतु बारिश ना हो ! कितना कष्टकारी हो जाता है उन पलों में जीवन !
ऐसे ही पल जीता हूँ , प्रेम खत लिख जाने से पहले। काल्पनिक तस्वीर को शाब्दिक चित्रों से उकेर देना। अहसास हो रही ऊर्जा से सुखमय महसूस कर शब्द शब्द तस्वीर का छायांकन कर शब्दों का चित्रकार बन जाना। तुम्हारी आभा में स्वतः ऊर्जावान महसूस करना। प्रेम सुख से आप्लावित होकर मोर जैसा नृत्य मन ही मन महसूस कर लेना , मोरनी मेरी !
देखो पल भर में संपूर्ण अहसास का सहयोग मिलता और मैं प्रेमयोग रच डालता। कल्पनाओं में यूं जीना और प्रेम पर लिखा जाना बड़ा खूबसूरत अहसास है। इन्हीं शब्दों में तुम्हारी मादकता है और हुस्न का गागर से जल की तरह छलक जाना , मेरा रसमय हो जाना। तुम महसूस करोगी इन अहसास को तो सचमुच मुझे जीवन भर प्रेम खत लिखते रहने की अपार ऊर्जा मिलेगी। मेरा सुख यही है ; यही जीवन है।
इन लहरों से कह दो कि लुप्त ना हुआ करें।मेरे मन में जन्मती हैं तो हमेशा साकार हो जाया करें। दर्द सहा नहीं जाता कि लिखना चाहो फिर भी लिख ना जाए , यह असहनीय है पर सहन करते हुए इंतजार में रहता हूँ कि वो पल आएगा जब तुम साकार हो जाओगी। सागर के तट पर तुम और सूर्यादय की प्रथम किरणें तुम्हे स्पर्श करती हुई सुंदरता को बढ़ाकर छटा बिखेरती हुई। रेत का धन्य हो जाना , तुम्हारे तलुवों के स्पर्श से।
रेत की तरह धन्य हो जाता हूँ , तुम्हारे प्रेमिल स्पर्श से। जिसका ना आदि है ना अंत !
तुम्हारा ” सखा “