मुझे लिखना है तब तक एक वसीयत नामा.
By :- Monica sharma
मैं
टूटते बिखरते
भूलते रिश्तों की
मृत्युशैय्या पर हूँ…
“इंतज़ार में”
सौंपना है मुझे
सपनों का
मकड़ जाल…
किसी मुझ सी
सपनीली आँखों को
सौंपना है मुझे
दर्द मन का
घाव तन के
पीड़ा मेरे मस्तिष्क की…
मुझे देनी है
विरासत
अपनी जागती नींदो की
बदलती करवटों से
पड़ी सिलवटें
चादरों की…
मुझे लिखना है
तब तक
एक
वसीयत नामा
झूठ फरेब धोखे दगे का
ढूँढना है मुझे
फिर
एक वारिस
वो एक प्रेमिका
जो छीन ले मुझसे
ये सब
दगा देके…
और छीन ले मेरा प्रेम
ताकि मांग सकूँ
मैं
वरदान
देवता से
के अब ये तीर
चुभने लगे हैं
मेरे मन के घाव
रिसने लगे हैं…
मेरे इस तप
पुण्य के
बदले
हे देव!!
दो मुझे
इच्छा मृत्यु का वरदान
और कानों में फिर
सुनाई दे एक गूंज
“तथास्तु तथास्तु तथास्तु”
( मोनिका शर्मा की जादुई कलम से रिश्तों की दर्द भरी दास्तान की एक और रचना )