यदि नई भाषा सीखना चाहते हैं तो विशेषज्ञ की राय जानें.
By :- Sanjay kotiyal
किसी भी भाषा को सीखना हो, तो पहले उसके एल्फाबेट्स सीखने होते हैं । जितने वो स्पष्टता से ग्रहण होंगे, उतना ही सफलता का ग्राफ बनेगा ।
लाभ ये होगा कि भाषा उच्चारण का तरीका हस्तगत होगा, शब्दो की बनावट समझ आने लगेगी, शब्द समझ आने लगे तो वाक्य बनने लगेंगे, वाक्य बनने लगे तो कम्युनिकेशन सरल हो जाएगा ।
पर मामला यहीं खत्म नहीं होता, जो भाषा सीखी जा रही है उसके पीछे का पूरा कल्चरल इमोशन खड़ा होता है । फिर उस इमोशन को हस्तगत करना होता है, वो लास्ट स्टेज होती है कि भाषा सही में आती है, वरना गड़बड़ है । ये बात जर्मन भाषा सीखने की मेरी अपनी सेल्फमेड प्रक्रिया से कह सकता हूँ । ग्रामर में भले गड़बड़ हो, इमोशन में गड़बड़ नहीं होती, प्रशंसा यदा कदा प्राप्त करता रहता हूँ ।
वही बात विंग त्सुन सीखने पर रही, पहले एल्फाबेट्स मतलब की उसका बेसिक फॉर्म सियो निम ताओ सीखा जाए, इम्प्लीमेंटेशन के साथ, फिर आगे सरल रहता है और अति शीघ्रता से हस्तगत होता जाता है । इसमें भी काफी स्मार्ट रहा । उसका इमोशन समझ आना मतलब की ड्राई फॉर्म मात्र नहीं रहते, रक्त में ही रच बस जाता है और व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है ।
योग विषय का भी यही है । गौर किया होगा कि सबसे पहले प्राणी को यम नियम दिया गया है । वही एल्फाबेट्स हैं आगे के योग विभूति साम्राज्य के । बिना उसके काम नहीं चलता, या यूं समझिए कि कई प्रकार की आने वाली समस्याओं से बचाकर चलता है ।
कुल जमा बात ये है कि बेसिक समझना जरूरी है, नहीं समझे तो वाट ही लग जाती है । बेसिक समझने का बड़ा लाभ ये है कि परोक्ष विपरीत अवस्था में भी सम्हाल कर रखता है । भटकने नहीं देता ।
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ये संसार विचित्र ही है । सत्य सुत्य शब्दो के फेरा में अधिक नहीं पड़ना चाहिए, उसे मन में सम्हाल कर रखना चाहिए । सत्य निश्चित रूप से होता तो एक ही है, पर व्यवहार जगत में प्राणी उसे ग्रहण नहीं कर पाता, या उस जातक की ग्रह चाल ही ऐसी होती है कि उसका परसेप्शन अलग ही बना रहता है । विश्वास की कमी, सत्य को मलिन कर देती है, या अपने हिसाब से उसे प्रेडिक्ट करने में विश्वास रखती है ।
अपनी बातें केवल सुपात्र को इसीलिए बतानी चाहिए, कुपात्र को तो हरगिज नहीं बतानी चाहिए वरना मसखरेपन पर ही बात दी एंड होती है, विशेषकर फेसबुक जैसे सोशियल मीडिया पर । वरना, – अरे ऐसे ही बकवास कर रहा है, रही है, – अरे, ऐसा कैसे हो सकता है, संसार ऐसे थोड़ी न् चलता है, – (बटर ऑन द टॉप ये होता है) कमबख्त पागल बना रहा है । – प्रोफेशनल वर्ल्ड में सत्य को अपनी बात को कन्विंस करने हेतु लेयरिंग करने वाला मामला भी समझा जाता है ।
कुल मिलाकर यही माया जाल होता है, पूरी बात का लब्बो लुवाब यही है । इसी कारण से एल्फाबेट्स सीखना जरूरी होता है, वही काम आता है । विश्वास आप करना चाहते हैं, पर सामने संसार में रुचि नहीं किसी की, तो भयंकर स्थिति से सामना हो सकता है या खल योग की प्राप्ति ही होती है । खल योग मने, गदर्भ की तरह केवल कार्य में लगे रहना, फल प्राप्ति जीरो ।
ये सब अच्छे से देखने के बाद लिखा है । किसी के काम आ जाये, मन वचन कर्म से एका रखने पर नजर आएगा ही । और लोग भी विचित्र विचित्र बाते मन में रखेंगे ही, यही ज्ञान सबसे पहले धारण करके रखना चाहिए । वजनी व्यक्तित्व होने से, जैसे मेरा है, लोग घबरा भी जाते हैं मुझसे, क्योंकि काफी स्पष्टता से अपनी बात रख देता हूँ । उतना झेल सकने का सामर्थ्य उनमें होता ही नहीं है । काफी बांटा भी, अपने हाथों से ही नीचे गिरा दिया । ये हाल तक देखा है ।
सो, एल्फाबेट्स का अभ्यास घनघोर तरीके से हस्तगत रहे, गम्भीर स्वभाव के प्राणी उसे अवश्य समझेंगे, बाकियों के काम का होता नहीं, वैसे “बाकी लोग” भी किसी के काम के होते नहीं ।
निर्दोष मन वालों की जय हो ।
ॐ नमो नारायण _/|\_