नानाजी देशमुख जैसा सेवाभाव है अशोक दुबे में.
By – Saurabh Dwivedi
इतिहास की सापेक्षता वर्तमान की छवि को अवतरित करती है। ऐसे ही कुछ नाना जी देशमुख के जीवनकाल एवं अशोक दुबे के वर्तमान जीवनकाल में समकक्षता नजर आती है। नाना जी महाराष्ट्र की धरती से उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश के चित्रकूट को कर्मभूमि बनाया एवं यहीं के समाजसेवा के कार्यों की बदौलत ” भारत रत्न ” से सम्मानित हुए।
चूंकि अशोक दुबे रोजगार के अभाव में महाराष्ट्र की धरती पुणे गए। वहाँ फुटपाथ से संघर्ष शुरू कर बड़े व्यवसायी बने। साथ ही ईश्वर की प्रेरणा रही कि जीवनयापन के साथ समाजसेवा के कार्य पुणे में करने लगे। उत्तर प्रदेश का कोई भी मजदूर हो या रोजगार में संलग्न युवा हो , यदि किसी समस्या में फंस गया या बीमार हो गया और उन्हें जानकारी हो जाए तो सेवा भाव से सगं संबंधी की तरह अवतरित हो जाते हैं।
एक बार मैं पुणे मे था। उस वक्त चित्रकूट के बाबूपुर गांव का एक मजदूर बुखार से पीड़ित था। इस वजह से उसकी ससुन अस्पताल में मृत्यु हो जाती है। उस शव को यूपी लाने के लिए परिचितों के पास धन नहीं था। उस वक्त अशोक दुबे ही थे जो व्यक्तिगत खर्चे से एंबुलेंस कर शव को बाबूपुर (यूपी) भिजवाने का काम किया था।
वरना ये वही भारत है जहाँ एक व्यक्ति अपने पत्नी के शव को कंधे पर लेकर चल पड़ता है और खबर चलने के साथ हम शर्मसार हो इसकी दयनीयता पर क्रोधित होने लगते हैं। लाचार हो जाते हैं। परंतु ऐसे सेवाभावी इंसान की समाजसेवा देखकर मैं अभिभूत हो गया था। उसके बाद ही जब इनके जीवन पर नजदीक से अध्ययन किया और समीप रहने का अवसर मिला तो समाजसेवा का खजाना दिख गया।
कुछ एक वर्षों से पुणे मे रहकर चित्रकूट में किसी भी गरीब बीमार व्यक्ति की मदद करने को तत्पर दिखे। जैसे कि बेटी सुहाना के आपरेशन पर आर्थिक मदद की तो वहीं शिवदेवी के आंदोलन में बड़ा योगदान रहा। हाल ही में चित्रकार विनय की मदद के लिए भी हाथ आगे बढ़ाए।
यहाँ तक की सर्वोदय सेवा आश्रम के अभिमन्यु भाई ने एचआईवी से पीड़ित असहाय बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर जब लिखा तो वे अशोक दुबे ही थे , जिन्होंने बच्चों के इलाज व जीवन यापन के लिए आर्थिक मदद प्रदान कर दी। समय-समय पर बच्चों के स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहते हैं।
राजापुर परिक्षेत्र में दीनबंधु पाण्डेय के माध्यम से गरीब परिवार की कन्याओं के विवाह में भी आर्थिक मदद एवं शक्कर , घी और सिलाई मशीन आदि प्रदान कर मदद करते रहते हैं। अब तक दर्जनों गरीब परिवार के विवाह कार्यक्रम में मीलो दूर से मदद प्रदान करते रहे हैं।
इस प्रकार से महाराष्ट्र के पुणे मे भी गरीब परिवारों तक पहुंच कर मदद प्रदान करते हैं। अनेक संस्थाओं के माध्यम से समाजसेवा का कार्य करते रहे हैं। जिससे कुछ संस्थाओं ने समय-समय पर मानव सेवा में उत्कृष्ट कार्य के लिए इस महान विभूति को सम्मानित भी किया है।
स्वयं के जन्मदिन के अवसर पर विद्यार्थी बच्चों को काॅपी – किताब व स्टेशनरी भेट कर हर्षोल्लास से दिन को सुखमय कर ले जाते हैं। इस तरह से इनके कार्यों की तादाद बड़ी लंबी है। बिना किसी सरकारी मदद के स्व – अर्जित धन से मानव सेवा करना बड़ा अद्भुत असाधारण कार्य है। हाल – फिलहाल बड़े अनुरोध पर स्वयंसेवी संस्था ” हमारा प्रयास ” के संरक्षक बनकर चित्रकूट के युवाओं को कृतार्थ किया है। युवाओं ने भी इन जैसे व्यक्तित्व से प्रेरणा प्राप्त कर समाजसेवा करने की सोच बना रखी है। युवा भी खुश हैं कि उनकी जिंदगी में अशोक दुबे जैसा प्रेरणात्मक व्यक्तित्व है।
इसलिये कहा जा सकता है कि इतिहास स्वयं को दुहराता है। एक समाजसेवी किसी की परछाईं बनकर पुनर्जन्म लेता है। निश्चित रूप से आज नाना जी नहीं है और उन्हें भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया। यह सम्मान समाजसेवा के क्षेत्र में काम करने वालों के लिए ऊर्जा का काम करेगा। अशोक दुबे जैसे सेवाभावी व्यक्तित्व नानाजी की परछाईं के समकक्ष अवश्य खड़े नजर आते हैं।