दलाल मानसिकता के अंत से भ्रष्टाचार मुक्त होगा भारत .
सुबह सुबह एक व्यक्ति पर नजर पड़ गई। याद आया कि वही हैं जो छोटा भाई कह कर एक भ्रष्ट अधिकारी के पास ले जाने को बोल रहे थे। उनका कहना था , क्यों लिखते हो उनके खिलाफ। वो अच्छे आदमी हैं।
वो अच्छे आदमी इसलिये थेे कि उनको ठेकेदारी करनी थी और ठेका लेने वाले के लिए ठेका देने वाला सदैव अच्छा आदमी ही होगा।
एक आदमी ऐसे ही अंकल के पास आए और उनसे कहने लगे सौरभ आपका भतीजा , उसे मना कर लीजिए। बात उस अधिकारी की नहीं है नुकसान हमारा होगा। अंकल ने कह दिया वो लड़का हमारा कहना नहीं मानता , आप जाकर उसे खा लीजिए।
अंकल की बात सच भी थी। क्योंकि पिछली बार इलाहाबाद बैंक मैनेजर के खिलाफ लिख रहा था। उस वक्त क्या अंकल ही फादर भी बोले और दूर के रिश्ते से मामा लगने वाले रिश्तेदार और तमाम पहचान वाले बड़े बड़े मित्र गण बोले थे कि अब छोड़ दो।
वो मैनेजर मुझे लोन देने से लेकर सब करने को तैयार थे। किन्तु मेरा एक ध्येय हो गया कि कमीशनखोर भ्रष्ट मैनेजर को हटना चाहिए और इस संघर्ष में भी अंततः विजय मिली थी।
मैनेजर की मैनेजरी खत्म हुई और आफिस अटैच होकर बाबू के पद पर बैठना पड़ा। हालांकि यह भी सच है कि बड़ा से बड़ा अफसर अपने अफसर को बचा लेना चाहता है। क्योंकि अकेले कोई लूटता नहीं सब संगठित लूट करते हैं।
भ्रष्टाचार सिस्टम में सम्मिलित हो चुका है और इसमें हमारे अपने सम्मिलित रहते हैं। दलाल शब्द ही नहीं लोगों के जीवन यापन का जरिया बन चुका है।
जहाँ स्वयं का हित दिखता वहाँ कोई विरोध नहीं करता। बल्कि छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक मददगार होते हैं। अधिकारियों द्वारा लोग ठेकेदारी से लेकर बैंक द्वारा विभिन्न प्रकार के लोन आदि कराने में दलाली से पैसा कमाते हैं।
जो भी इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेगा उसे शांत कराया जाएगा और तरीका ऐसा भी हो सकता है कि बड़ा अधिकारी किसी लड़की का प्रयोग उस दशा में कर सकता है , जब वह बचता हुआ नहीं दिखता तब लड़की ही जरिया बनती है कि कुछ नहीं तो छेड़खानी और रेप के आरोप में जिंदगी सड़ा दो।
सावधानी हटी दुर्घटना घटी। बड़ा से बड़ा नेता भ्रष्टाचार करता है परंतु भ्रष्टाचार की नींव हमारे बीच में है और हमारे अपने लोग हैं।
उस वक्त आज्ञाकारी पुत्र नहीं रह जाते जब आज्ञा का पालन नहीं करते और आज्ञा का पालन ना करके भी अच्छा होता है। जब स्वयं को सिद्ध कर देते हैं तो अगली बार यही होता है कि वो मानेगा तो है नहीं पर जाओ उसे खा लो और खाने की हिम्मत इसलिये नहीं होगी कि अंजाम का भय सबको सताता है।
इतना सरल सपाट इसलिये लिखा कि समझिए भ्रष्टाचार कहाँ है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा कौन देता है ? स्वयं के किरदार के साथ न्याय करने के लिए आज्ञाओं का पालन करना हमेशा जरूरी नहीं होता बेशक दर्द बहुत ज्यादा झेलना पड़े।
भ्रष्टाचार हमारे आस-पास ही फलता फूलता है और भ्रष्टाचार के बाग के माली हमारे अपने होते हैं। जमीन से भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए जमीर का जिंदा रहना जरूरी है और इस युद्ध में छद्म रिश्तों का अंत भी होगा और पहचान भी जाएंगे।
अगर कुछ करना चाहते हैं तो अस्तित्व को पहचानिए और जमीर को जिंदा रखिए , सचमुच तकलीफ का सामना करना पड़ेगा पर भ्रष्टाचारी आपसे सामना करने से डरेंगे फिर थाने का मुंशी यही कहेगा आप से क्या कहें ?