जब सुबह जगते ही राज गुरू बद्री प्रपन्नाचार्य महाराज के दर्शन हुए
गुरु पूर्णिमा के दिन मैं सिर्फ गुरू पूर्णिमा लिख सका था , फेसबुक के मानसिक मित्रों आपको याद होगा पर आज सुबह कुछ ऐसा हुआ कि हृदय की स्याही ब्रह्म शब्द लिखने को तैयार हो गई।
क्या कहूँ ? बिन परमात्मा की अनुमति के हम कुछ नही लिख सकते परमात्मा के अस्तित्व पर , ऐसे ही हमारा भौतिक – आध्यात्मिक जीवन होता है। जिसमे हम किसी को बहुत मानते हैं या मानने लगते हैं। यह मान्यता हृदय से स्वीकृति प्राप्त करती है।
आज सुबह जैसे ही जगा तो कराग्रे वस्ते करने के समय ही राज गुरु बद्री प्रपन्नाचार्य जी महाराज का चेहरा साफ झलक गया जैसे सुबह का एक प्रणाम उन्हें स्वयं पहुंच गया या ईश्वर की महान कृपा हुई।
राज गुरु का प्रथम सानिध्य कपसेठी चित्रकूट स्थित राजस्थान मार्बल मे श्रीमद्भागवत कथा के समय मिला था। मैं वहाँ प्रतिदिन जाता था चूंकि प्रोफेशनल रूप से मुझे लिखना था। किन्तु राज गुरु की वाणी सुनते ही मन और आत्मा को तृप्ति मिलती।
ऐसी तरंगे अंदर जन्म लेती कि लगता राज गुरु मे जरूर कोई बात है , कोई आध्यात्मिक शक्ति और धार्मिक शक्ति या स्वयं योगेश्वर श्रीकृष्ण की महान कृपा होगी। मुख मंडल – आभा मंडल हर पल अपने प्रभाव मे लेकर यही महसूस कराता।
कथा श्रवण के समय एक सा सरल सहज प्रभावशाली भाव महसूस होता। किसी भी पल किसी भी दिन रत्ती भर भी गुस्सा या खिन्नता आदि कोई विकार नजर नही आया। और एक एक शब्द वाणी से ऐसे बरसते जैसे आकाश मार्ग से पुष्प वर्षा जैसे शब्द बरस रहे हों।
गुरु शिष्य की परंपरा नजदीक से गुरु पूर्णिमा को देखा जब राज गुरु के शिष्य आशीर्वाद लेने आए और गुरु पूजन कर रहे थे। मेरी भी इच्छा थी कि मैं पहुंचूं आशीर्वाद लेने और वो इच्छा गुरु पूर्णिमा को पूर्ण हुई।
जिंदगी मे गुरु ऐसे भी मिलते हैं , संत ऐसे भी मिलते हैं। जैसे हमने सुना है इनके गुरु संत संकर्षण जी महाराज मे दिव्य शक्ति थी और जिन पर भी उनकी कृपा हुई वह जीवन के दुख से ऐसे पार हो गए जैसे लोग नाव मे बैठकर गहरी नदी पार कर जाते हैं।
अब उस परंपरा का निर्वहन स्वामी संकर्षण जी महाराज के बाद राज गुरु बद्री प्रपन्नाचार्य महाराज जी कर रहे हैं। मुझे अनेक बार आभास हुआ बिना किसी दिव्य शक्ति के ऐसा नही हो सकता जैसी दिव्यता और भव्यता उनके मुख मंडल मे साफ दिखती है , यही आकर्षण है और उनके आभा मंडल मे आते ही नकारात्मक शक्तियां अपने आप मृत हो जाती हैं और सकारात्मकता का आप मे प्रभाव बढ़ने लगता है , संभवतः इसलिए कहा गया है कि संत के दर्शन मात्र से उद्धार हो जाता है।