शिकंजी एवं कामतानाथ के अस्तित्व की जुबानी.

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कामतानाथ की परिक्रमा करने गया था। परिक्रमा मार्ग में सरयू – धारा के पास बैठने की परंपरा है , जो धारा अब सूख चुकी है। हम चलने लगे थे कि अचानक से मन में आया शिकंजी पी लें ! विवेक और अनुराग से यही विचार हुआ और निष्कर्ष शिकंजी पीने का निकल आया।

इच्छा जताते ही शिकंजी वाले ने कहा कि बस कामतानाथ का नाम लेकर वापस जा रहा था , जय काली मइया की बोल कर दुकान बंद कर रहा था। लगभग डेढ़ घंटे से खड़ा था और एक भी ग्राहक नहीं आया।

अब भक्त आ ही गए हैं तो बना देता हूँ शिकंजी ! हमारे शिकंजी पीने तक एक दो भक्त और आ गए , हमारे देखते-देखते धंधा शेयर मार्केट की तरह उच्च स्तर पर पहुंच रहा था। चलते-चलते उससे हल्का सा मजाक किया। शिकंजी पिलाने के लिए धन्यवाद कहा …

फिर मेरा चिंतन शुरू हुआ कि लोग कहते हैं कि ईश्वर नहीं है और तमाम लोग नास्तिक होकर ईश्वर जैसी शक्ति को नकारते हुए कहते हैं कि सबकुछ विज्ञान है , पर ईश्वर के अस्तित्व का एहसास बड़े सरल तरीके से हो जाता है कि जिसका धंधा नहीं चल रहा था। वह निराश होकर घर वापस जा रहा था।

हमारा मन अचानक से परिवर्तित हुआ और उसका धंधा चल पड़ा। चूंकि उसने भगवान कामतानाथ को सच्चे मन से पुकारा होगा और उसकी जरूरत भी कुछ अधिक रही होगी। मेहनत करने वाले उस इंसान पर ईश्वर की कृपा हुई।

ऐसे ही परेशान जिंदगी को सुलझाने व सरल बनाने को ईश्वर स्वयं प्रकट तो नहीं होते पर इस दुनिया में कोई मददगार भेज देते हैं , जो फरिश्ते होते हैं। फरिश्ता इसलिये कहा गया है , जो लोग वास्तव में रिश्ते जीते हैं , वे फरिश्ते होते हैं वरना इस दुनिया में रिश्तों की दुकाने भी चलती हैं पर वे रिश्ते ईश्वर के फरिश्ते नहीं होते।

हर जिंदगी ईश्वर के अस्तित्व को शिकंजी वाले इंसान की जिंदगी से महसूस कर सकती है , सच है कि हर किसी की जिंदगी में इंसानियत का फरिश्ता कोई ना कोई आता है। उन्हीं फरिश्ते में ईश्वर का अंश है। मुझे ईश्वर का अस्तित्व ऐसे ही महसूस हो जाता है और आशा है कि जीवन में बहुत से लोगों ने ईश्वर के अस्तित्व को महसूस किया होगा।