कृष्ण जन्मोत्सव पर भागवत कथा की महिमा दर्शन करिए.
राजस्थान मार्बल कपसेठी चित्रकूट मे चल रही भागवत कथा मे बुधवार को कृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। कथा व्यास श्री श्री 1008 श्री बद्री प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने जीवन का सार कथा से समझाए। मानव जीवन का कल्याण करूणा से है। प्रेम , ममता और आसक्ति ये कल्याण मे बाधा हैं। आकर्षण आगे बढ़ा तो प्रेम हो गया , प्रेम आगे बढ़ा तो ममता आ गई , ममता आगे बढ़ी तो आसक्ति आ गई और आसक्ति बड़ा कष्ट देती है। इसलिए मनुष्य को करूणा की ओर सम्मुख होना चाहिए।
अब जानिए कि करूणा आए कैसे ? कथा सुनने से करूणा आ सकती है। हृदय की जो ग्रंथियां हैं उनके टूटने से आ सकती है। जैसे धुंधुकारी ने जब प्रेत योनि मे कथा सुनी तो प्रतिदिन उस बांस की एक – एक गांठ टूटती जा रही थी , जिसमे धुंधकारी ने शरण ली थी। सातवें दिन सातवीं गांठ टूट गई और धुंधुकारी को प्रेत योनि से मुक्ति मिली।
ऐसे ही मनुष्य अगर कुशल स्रोता है तो वह भागवत कथा प्रतिदिन सुनकर हृदय की सात ग्रंथियों को तोड़ सकता है। यदि आप धुंधकारी और परीक्षित जैसे कुशल स्रोता हैं तो सात दिन मे सात गांठ टूट जाएंगी। नहीं तो एकाध गांठ तो टूट ही जाएगी। इस भागवत की कथा को बार बार सुनें जब तक सातों ग्रंथियां टूट ना जाएं। जब तक हृदय ग्रंथियों से रहित ना हो जाए।
कथा व्यास आगे कहते हैं हमारे जीवन मे बहुत से संशय रूपी पक्षी बैठ गए हैं। अपने संशय को बहुत दिनों तक अपने जीवन मे आश्रय नहीं देना चाहिए। इसका एक ही मार्ग है भक्ति , और लोग कहते हैं कलयुग मे भक्त और भक्ति कहाँ है ? तो कलयुग का सबसे बड़ा सच यही है कि इस युग मे सबसे अधिक भक्त और भक्ति है जिससे नियंत्रण स्थापित है। यही कलयुग मे मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
भगवान का मनुष्य अवतार भी करूणा से हुआ। जब जन जीवन एवं धर्म पर संकट उत्पन्न हुआ तब करूणित होकर भगवान ने अवतार धारण किया और रक्षा की। इसलिए कलयुग मे भागवत कथा का महत्व है। करूणा की धार है भागवत कथा।
सभी 9 रसों मे सर्वश्रेष्ठ रस करूण रस होता है। साहित्य की रचना मे भी सबसे पहला रस करूण रस ही प्रकट हुआ और महत्वपूर्ण है। वक्ता और स्रोता के बीच का संबंध करूण रस होता है। जब स्रोता करूण रस से भाव – विभोर होकर कथा सुनता है तब उसका उद्धार अवश्य होता है। हृदय से काम , क्रोध , अहंकार और मोह सहित सात गांठ टूट जाती हैं और मनुष्य करूण रस से एक धार्मिक – आध्यात्मिक जीवन जीता है तभी इस मायावी संसार से उसे मुक्ति मिलती है।
कृष्ण जन्म जैसे ही हुआ वैसे ही पांडाल का माहौल बदल गया। सभी स्रोता आनंदित होने लगे और नृत्य करते हुए भगवान के शिशु रूप को शीश झुकाने लगे। सचमुच कलयुग मे यही भवसागर से पार लगाने की कथा है। यही भागवत का महिमा दर्शन – जीवन दर्शन है।