नीलम शर्मा की कहानी लक्ष्मण रेखा.

लक्ष्मण रेखा

जहाँ देश भर मे लाकडाउन है , वहीं सृजन के झरने हृदय से फूटने लगे हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान लेखिका नीलम शर्मा ( ट्रेजरी आफिसर कानपुर नगर) ने रिश्तों के संक्रमण की परत उधेरी है। उनकी कहानी एक महिला की स्वतंत्रता एवं पितृ सत्ता की मानसिकता पर करारा प्रहार तो है ही साथ ही समाज का कड़वा सच उजागर करती है। पढ़िए …

रात के आठ बजे टेलीविजन पर प्रधानमंत्री देश को संबोधित कर रहे थे। आज रात बारह बजे से संपूर्ण देश में पूर्ण रूप से इक्कीस दिन का लाकडाऊन होने जा रहा है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी बीमारी से बचने के लिए , इससे सुरक्षित रहने के लिए मेरी हाथ जोड़कर देशवासियों से प्रार्थना है कि वे इक्कीस दिन तक खुद अपने परिवार के साथ घरों मे रहें। घरों से बिल्कुल बाहर ना निकलें , जो जहाँ है – वहीं रहे।

आज रात बारह बजे से सभी घरेलू और विदेशी हवाई सेवाएं , रेल सेवा , बसें , आॅटो रिक्शा , टैक्सी जैसे समस्त सार्वजनिक वाहन सेवाएं 21 दिन तक बंद हो जाएंगी। सरकारी कार्यालय , निजी कार्यालय सहित सभी प्रकार के दफ्तर 21 दिन तक बंद रहेंगे। कर्मचारी अपने घर मे रहकर काम करेंगे। सिर्फ आवश्यक सेवाएं ही चालू रहेंगी और उससे संबंधित दफ्तर , प्रतिष्ठान खोले जाएंगे। आवश्यक सेवाओं से जुड़े अधिकारी – कर्मचारी अपने-अपने कार्यालय जाकर काम करेंगे।

अविनाश और तारिका के चेहरे पर चिंता की रेखाएं थीं। जब प्रधानमंत्री को स्वयं देशवासियों को संबोधित कर के कहना पड़ा है , तो स्थिति अतिसंवेदनशील है।

तारिका अविनाश से बोली , ये अच्छा हुआ कि देश मे लाकडाऊन कर दिया गया , हो सकता है कि इससे स्थिति को नियंत्रित किया जा सके। रोहन को लेकर मन मे डर था , अब रोहन का स्कूल कम से कम बंद हो जाएगा। थैंक गाॅड !

अविनाश तुम्हारी आफिस तो बंद हो जाएगी मगर शायद मेरी आफिस बंद ना हो , मुझे तो बाहर जाना पड़ेगा। मैं अपने लिए अलग कमरा कर लेती हूँ , ताकि तुम दोनों को कोई खतरा ना रहे ! अविनाश अब हमें अपनी लक्ष्मण रेखा स्वयं बनानी होगी , ना हम बाहर निकलेंगे और ना ही हम किसी को अपने यहाँ आने देंगे। चाहे वो हमारे अपने माँ – बाप ही क्यों ना हों ! हम सबको मना कर देंगे। सब अपने अपने घरों में सुरक्षित रहें।

तुम सही कह रही हो तारिका , अविनाश के चेहरे में चिंता की रेखाएं थीं। वैसे अविनाश निश्चिंत था कि उसके मम्मी – पापा बैंकाक में बड़ी दीदी के पास थे। उनका तीन महीने वहाँ रूकने का प्रोग्राम था। अभी पंद्रह दिन हुए थे , उन्हें गए। तब तक स्थिति संभल जाएगी , उन्हीं को लेकर ज्यादा चिंता होती।

तारिका गहरी साँस भरती हुई बोली , सुबह सभी काम करने वालों को भी हटाना होगा। खुद ही सभी काम करने होंगे। अविनाश तुम भी मदद करना। ठीक है ना !

बिल्कुल तारिका हम लोग मिलकर काम कर लेंगे। आखिर इस संकट की घड़ी में एक – दूसरे के सहयोग से ही कर पाएंगे हम लोग , तारिका मुस्कुरा उठी।

सुबह सबसे पहले तारिका ने घर के सभी जरूरी काम निपटाए। उसके बाद उसने घर मे काम करने वालों को हिसाब करते हुए छुट्टी दे दी। और बोली कि देखो तुम लोगों को छुट्टी दे रही हूँ मगर तुम सभी की तनख्वाह नहीं काटी जाएगी , हालात सही होते ही मैं बुला लूंगी। तुम सभी लोग अपने-अपने घरों मे ही रहना , ठीक है ना !

जी मेमसाहब ……..

1 ₹ का ( ऐच्छिक राशि ) सहयोग प्लीज.

तारिका घर के सारे काम निपटाकर आफिस चली गई। वह बैंक मे मैनेजर के पद पर नियुक्त थी। जबकि अविनाश मल्टीनेशनल कंपनी में एमडी के पद पर कार्यरत था। दोनों की जिंदगी सूकून मे थी। एक छः साल का बेटा था रोहन। बस छोटी सी गृहस्थी थी दोनों की।

शाम को आठ बजे तारिका किचन मे खाने की तैयारी कर रही थी , तभी काॅलवेल बजी।

अविनाश देखो दरवाजे पर कौन है ? दरवाजा पूरा मत खोलना ,जो भी हो दरवाजे से वापस भेज देना। पता नहीं ऐसी स्थिति में इस समय कौन आ गया ?

अविनाश ने दरवाजा खोला। सामने तारिका के मम्मी-पापा खड़े थे। अविनाश थोड़ी देर असमंजस मे रहा ।मगर उसने दरवाजा नहीं खोला और ना ही उन्हें अंदर आने के लिए कहा।

अविनाश- साॅरी ….. मम्मी-पापा ,आप लोग अंदर नहीं आ सकते। कोरोना के कारण बाहर से आए लोगों को पहले 14 दिन तक क्वारंटाइन मे रहना होगा। आप लोग वापस चले जाइए। मैं आप लोगों को अंदर नहीं बुला सकता।

पापा बोले हम लोग थोड़ी देर तारिका और रोहन से मिल लें , उनके गिफ्ट उन्हें दे दें। पापा ने बैग से गिफ्ट पैक निकालते हुए कहा परसों रोहन का बर्थडे था। इसलिये सोचा था कि आकर सरप्राइज देंगे। हमें नहीं पता था कि आज से लाकडाऊन हो जाएगा और स्थिति इतनी खराब हो जाएगी।

साॅरी …. पापा गिफ्ट मुझे लाइए मैं दे दूंगा। आप हालत सही हो जाए तो फिर आ जाइएगा।

ठीक है बेटा। खुश रहो तुम सब लोग। अविनाश को गिफ्ट पैकेट देकर पापा – मम्मी वापस हो गए। अविनाश ने दरवाजा बंद कर दिया।

अविनाश ने गिफ्ट को जूते की आलमारी के ऊपर रख दिया। सोचा एक हफ्ते बाद खोला जाएगा। अभी पैकेट खोलना उचित नहीं होगा।

कौन था अविनाश इतनी रात में ? तारिका बोली

अविनाश-तुम्हारे मम्मी-पापा थे।
तारिका -क्या ? कहाँ गए ? क्या तुमने उन्हें वापस भेज दिया ?

हाँ तुम्ही ने तो कहा था। दरवाजा मत खोलना। बाहर से ही वापस कर देना। तारिका तुमने ही तो घर की लक्ष्मण रेखा बनाई है। जो भी हो उसे पार नहीं करना है।

यह सुनकर तारिका की आंखो मे आंसू आ गए। उसने कहा कुछ नहीं चुपचाप अपना काम करने लगी। सोचा पापा को फोन कर लूं पर क्या कहूंगी ? कि जिन माँ – बाप ने इतने प्यार से उसे रखा। इतने कष्ट सहे , आज उनकी बेटी ने उन्हें बिना एक कप चाय पिलाए दरवाजे से वापस कर दिया। ना जाने रात भर कहाँ भटकेंगे ! करीब बारह घंटे घर पहुंचने मे लगेंगे। लाकडाऊन हो गया रास्ते मे कुछ खाने को मिलेगा भी या नहीं। ना जाने सुबह से उन्होंने कुछ खाया भी होगा कि नहीं तारिका की आंखो मे आंसू बहने लगे। तारिका का मन नहीं माना। उसने पापा को फोन लगाया।

पापा कहाँ हैं आप ?
पापा – बेटा होटल देख रहे हैं। तुम चिंता मत करो हम रात भर होटल मे रहकर सुबह घर निकल जाएंगे। तुम्हारा और रोहन का गिफ्ट हमने अविनाश को दे दिया है। उम्मीद है तुम्हे पसंद आएगा। तुम परेशान ना हो बेटा। जब हालात सही होंगे तो हम लोग फिर आ जाएंगे।

जी पापा ….. कहते कहते तारिका रो पड़ी।

रात भर मम्मी पापा होटल की तलाश मे भटकते रहे। पर कोरोना के कारण सारे होटल लगभग बंद थे और जो खुले थे वो उन्हें रूम देने को तैयार नहीं थे। सुबह करीब तीन बजे पेट्रोलिंग पुलिस को पता चला कि शहर मे दो बुजुर्ग दूसरे शहर से आए हैं तो उन्हें साथ ले गई और हास्पिटल के आइसोलेशन वार्ड मे एडमिट कर दिया।

पुलिस ने उनके करीबी रिश्तेदार का पता पूंछा तो उन्होंने अविनाश और तारिका का पता और मोबाइल नंबर दे दिया। पुलिस ने अविनाश को फोन करके सूचना दे दी और आइसोलेशन वार्ड का पता भी बता दिया। हास्पिटल का डाक्टर अविनाश का परिचित था। अविनाश ने फोन करके डाक्टर से बात की और दोनों का विशेष ध्यान रखने को कहा। डाक्टर से बात करने के बाद तारिका और अविनाश आश्वस्त हो गए। करीब पांच दिन आइसोलेशन वार्ड मे रहने के पश्चात पुलिस ने दोनों को उनके घर पहुंचा दिया। वो दोनों सुरक्षित और स्वस्थ घर पहुंच गए थे , यह जानकर तारिका ने राहत की साँस ली।

उसी दिन शाम को अविनाश की बड़ी बहन का बैंकाक से अविनाश के पास फोन आया।

हैलो ….. अविनाश , वहाँ पर सब कैसा चल रहा है ?

प्रणाम दीदी ; यहाँ का माहौल भी बहुत अच्छा नहीं है। वहाँ सब लोग कैसे हैं ?

ठीक हैं सब यहाँ पर। अविनाश मैं मम्मी-पापा को परसों दोपहर की फ्लाइट से वापस तुम्हारे पास भेज रही हूँ। परसों एक फ्लाइट की अनुमति मिली है इंडिया के लिए , उसी से। तत्काल टिकट लेकर भेज रही हूँ फिर पता नहीं कब तक चलेगा ये सब। परसों शाम को तुम एयरपोर्ट पहुंच जाना।

अच्छा दीदी , मैं एयरपोर्ट पहुंच जाऊंगा। फ्लाइट का एराइवल टाइम क्या है ?

दीदी ने टाइम बताया और फोन रख दिया।

अविनाश की बड़ी बहन अब माँ – बाप को अपने पास नहीं रखना चाहती थी। कोरोना जैसी बीमारी से उसके घर मे भी सब डरे हुए थे। चूंकि माता-पिता बुजुर्ग थे उनकी आयु 75 साल के आसपास थी। इसलिये उनका ख्याल अधिक रखना पड़ता और कुछ हो गया तो बच्चे भी प्रभावित हो जाएंगे। इसलिए उन्हें जैसे ही फ्लाइट जाने का पता चला , उन्हें तत्काल वहाँ से भेजने का निर्णय लिया।

अविनाश ने जब तारिका को बताया कि परसों की फ्लाइट से मम्मी-पापा वापस आ रहे हैं तो तारिका बिल्कुल उखड़ गई।

तुमने मना क्यों नहीं किया अविनाश ? वो लोग बुजुर्ग हैं , विदेश से आएंगे , फ्लाइट से आ रहे हैं। पता नहीं कैसे कैसे लोग उनके संपर्क में आएंगे ! उन लोगों को खतरा ज्यादा है। दीदी का दिमाग खराब है जो इस माहौल में उन्हें वापस भेज रही है। वहाँ मम्मी-पापा को कोई समस्या नहीं है। वे तो तीन महीने के लिए गए थे। अभी तो मात्र पंद्रह दिन ही हुए हैं , कुछ हो गया तो ! और रोहन का भी डर है। अभी छः साल का है। अविनाश प्लीज दीदी से मना कर दो , हालात सामान्य होते ही उन्हे वापस भेज दें दीदी या फिर हम खुद ही टिकट भेजकर बुलवा लेंगे दोनो को।

यार मैं उन्हें मना नहीं कर सकता। यह बात तो दीदी और जीजाजी को खुद ही सोचनी चाहिए थी। मैं कहूँगा तो यही कहेंगे कि देखो अपने माँ – बाप को अपने पास नहीं रखना चाहता। मैं परसों उन्हें एयरपोर्ट लेने जाऊंगा और प्लीज तारिका अब इस बारे मे कोई बात नहीं होगी।

क्यों अविनाश ? अब तुम्हारी लक्ष्मण रेखा कहाँ चली गई। मेरे मम्मी पापा आए थे तो तुमने उन्हें दरवाजे से ही वापस कर दिया। उन्हें अंदर तक नहीं आने दिया। वो रात भर सड़क पर भटकते रहे थे , अविनाश ! वो बेचारे रोहन को बर्थडे सरप्राइज देना चाहते थे। उस समय तुम्हारे इमोशंस और फर्ज कहाँ थे अविनाश ?

प्लीज तारिका जो हो गया उसे दुबारा मत कुरेदो। बेकार ही इसमे हम दोनों को तकलीफ होगी।
ठीक है अविनाश,फिर ऐसा करो कि उन्हें चौदह दिन के लिए आइसोलेट में रखवा देना।

मैं ऐसा कुछ नहीं करने जा रहा। एयरपोर्ट पर जांच होगी अगर कुछ उल्टा हुआ तब देखा जाएगा फिलहाल उन्हें घर मे ही आइसोलेट कर दिया जाएगा। तुम्हे ज्यादा डर लग रहा है तो तुम खुद आइसोलेशन मे चली जाना।
यह तारिका को बुरा लगा।
बिल्कुल सही अविनाश तुम्हारे मन मे जो आए करो मगर रोहन को या इस घर में किसी को कुछ हुआ तो मैं तुम्हे नहीं छोडूंगी। कहकर , तारिका किचन मे चली गई और जोर – जोर से बर्तन पटकने लगी।

अविनाश परेशान सा सोफे पर बैठ गया। तीसरे दिन शाम को अविनाश मम्मी-पापा को एयरपोर्ट से लेकर घर आ गया। एयरपोर्ट पर औपचारिक सी जांच हुई और इस शर्त के साथ ओके कर दिया गया कि उन्हें घर पर ही चौदह दिन के लिए क्वारंटाइन कर दिया जाए।

एयरपोर्ट की औपचारिक जांच के बाद अविनाश और मम्मी-पापा तीनों निश्चिंत हो गए कि वे लोग सेफ हैं और मम्मी-पापा ने आइसोलेट होने से मना कर दिया , कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है तो अलग क्यों रहें ! अविनाश चुप हो गया। गुस्से मे तारिका रोहन को लेकर आउटडोर वाले रूम में शिफ्ट हो गई। उसने खुद को और रोहन को आइसोलेट कर लिया। अब चौदह दिन के बाद ही रोहन को लेकर वापस आएगी। घर मे उसका आइसोलेट होना अविनाश और उसके मम्मी-पापा को अच्छा नहीं लगा। क्योंकि मम्मी-पापा का सारा काम अविनाश को करना पड़ता। तारिका ने जान है तो जहान है का मंत्र अपनाते हुए इसकी परवाह नहीं की।

हालांकि अविनाश के मन मे तीसरॆ दिन ही मम्मी-पापा को लेकर थोड़ा संशय हुआ। चौथे दिन जब उन्हें बुखार के साथ खांसी शुरू हो गई तो वह चिंतित हो गया। सुबह तक उनमे कोरोना के लक्षण स्पष्ट होने लगे , उन्हें सांस लेने मे तकलीफ होने लगी। तारिका ने हास्पिटल फोन किया तो एंबुलेंस आकर उन्हें ले गई। जांच के लिए दोनों के नमूने लिए गए। दूसरे दिन रिपोर्ट आई तो दोनों को कोरोना पाजिटिव निकला। अब अविनाश के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे सबसे ज्यादा चिंता तारिका की थी कि उससे क्या कहेगा अब ? अगर अब हम तीनों की रिपोर्ट पाजिटिव आई तो तारिका उसे छोडेगी नहीं। अविनाश – तारिका और रोहन के नमूने लेकर जांच को भेजे गए। दूसरे दिन तीनों की रिपोर्ट आ गई। तीनो की रिपोर्ट निगेटिव आई। यह अविनाश और तारिका के लिए राहत की बात थी।

दोपहर मे अविनाश जब हास्पिटल से वापस आया तो तारिका से बात करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। वह तारिका से नजर नहीं मिला पा रहा था। उसे लग रहा था कि काश उसने तारिका की बात मान ली होती तो आज मम्मी-पापा सुरक्षित होते और वह भी किसी परेशानी मे नहीं पड़ता। अविनाश अंदर कमरे मे गया तो देखा तारिका अपना सामान पैक कर रही है। कहीं जाने की तैयारी कर रही है।

अविनाश – कहीं जाने की तैयारी है क्या ?

तारिका – हाँ अविनाश , मम्मी-पापा के पास जा रही हूँ। मम्मी-पापा अकेले हों और मैं नहीं चाहती कि इन हालातों मे वे लोग और अकेले रहें। उनका दिया हुआ गिफ्ट मैंने आज खोला है। अविनाश जानते हो उसमे तुम्हारे और रोहन के लिए कपड़े थे और मेरे लिए रूबी के इयरिंग थे उसमे। कहते कहते तारिका की आंखो मे आंसू आ गए। अविनाश उन्हें याद था कि मुझे रूबी बहुत पसंद है , वो हम सबका कितना ख़याल रखते हैं और हम लोगों ने क्या किया उनके साथ। वो इतनी दूर सफर करके सिर्फ हमसे मिलने आए थे और हमने उन्हें अंदर आने तक नहीं दिया , दरवाजे से रात मे वापस भेज दिया। वे रात भर सड़क पर भटकते रहे , तारिका रोने लगी।

अविनाश ये जो हम लक्ष्मण रेखा बनाते हैं। ये हमारे लिए सिर्फ तभी तक मायने रखती है , जब तक इसे पार करने वाले अपने न हों , जहाँ बात अपनों पर आती है तो साॅरी लक्ष्मण रेखाएं मिट जाती हैं। ये लक्ष्मण रेखा हम सिर्फ दूसरों के लिए ही बनाते हैं। आज मैं इस लक्ष्मण रेखा को पार कर मम्मी-पापा के पास जा रही हूँ। मैंने आफिस से गाड़ी मंगा ली है। तुम्हारा खाना बनाकर रख दिया है। अपना ख़याल रखना अविनाश।

कब तक लौटोगी तारिका ?
पता नहीं अविनाश !

मुझे माफ कर दो तारिका …… तारिका नहीं रूकी तेज कदमों से रोहन को लेकर गाड़ी मे बैठ गई।

[ ये कहानी बुंदेलखण्ड ( उत्तर प्रदेश) के प्रतिष्ठित अखबार ” हरदौल वाणी मे प्रकाशित हो चुकी है ]

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[ Saurabh chandra Dwivedi
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