हँसी की फुहार हैं कानपुर की घातक कथाएं .
By :- Saurabh Dwivedi
भई ये कथाएं सत्यनारायण की कथा नहीं है। इसको पढ़ने की जरूरत है नाकि पंडित जी से नवग्रह की पूजा करवा कर सुनने की , वैसे इत्तेफाक है कि सीरीज का नाम भी बम बम पाण्डेय सीरीज है। मतलब पंडित जी इन कथाओं में विराजमान है , पर पंडित जी अल्हड़ – फक्कड़ और दमदार पंडित जी हैं। ये पत्रा की जगह कट्टा लेकर चलते हैं और कानून – वानून को ठेंगा देते हुए पापकार्न पकड़ा देते हैं। असल में मुझे लगा कि बम बम पाण्डेय की तरह मैं भी मुंह फट हो जाऊं। सच कहें तो अपने स्वभाव से विपरीत हो जाना , यह भी बताए दे रहे हैं कि मैं जो पढ़ता हूँ उससे एकदम विपरीत कथाएं हैं तो मेरा भी मन नहीं कर रहा था कि घातक कथाओं पर कुछ लिखा जाए।
हमें लगता रहा कि बेकार चीज़ है। नाम है घातक कथाएं और भरी – परी है लोफरपंती। कऊनो इश्क मं देवदास हो रहा है तो कउनों वियाह मं जमीन मं धड़ाम से गिरा जा रहा है। अइसन मं मन नहीं करत आए कि समाज का ” का दर्शन दीन जाए ? ”
अनेक बार मुझे लगा कि मैं इस किताब पर क्या लिख पाऊंगा। किन्तु हर बात का एक समय होता है। उस बात का समय पर महत्व होता है। ऐसे ही इस किताब का महत्व मुझे उस वक्त पता लगा जब मैं जीवन की संध्या पर उदासी के गृहण में था। मन बोझिल था और स्वयं को समझा रहा था।
मन मे आया कि लाओ आज बम बम पाण्डेय को ही देख लेते हैं। जहाँ तक पढ़ा था , वहाँ से शुरू किया तो एक वाक्य पढ़कर मेरे होठ कोलगेट मुस्कान की तरह खिल गए और सीना क्लोजअप की तरह खुल गया। मन ने कहा यार कमाल लिखा है।
वैसे ही मेरे गंभीर मन से प्रस्फुटित हुआ कि ” हँसी की फुहार हैं कानपुर की घातक कथाएं । ” अब घातक कथाएं हमने पढ़ी है तो इतने घातक हम भी हो चुके हैं कि सस्पेंस कायम रखें। अगर मेरे कोलगेट और क्लोजअप मुस्कान का रहस्य जानना है तो पढ़नी होगी कानपुर की घातक कथाएं।
मैं ऐवें ही किसी पर नहीं लिखता। बड़े दिनों से तमाम किताबों के बीच यह भी प्रतीक्षा में रखी थी। पढ़कर भी एक तरफ कर दिया था कि चलो टाइम पास करते हुए पढ़कर कभी मन हुआ तो लिख दिया जाएगा।
लेकिन सहज मन से लिखना और पाठको को विश्वास दिला देना बड़ी बात है। वजह मेरा मुस्कुरा देना और जिंदगी की इतनी सी समझ तो सभी को है कि हंसी-खुशी का आगमन हो जाना मतलब जिंदगी की चाह पूरी हो जाना !
बस अइसन हुआ तो हमको लगा कि बम बम पाण्डेय की नकलची स्टाइल में बुंदेलखण्ड से कानपुर की घातक कथाओं को पैगाम भेज दिया जाए , पैगाम मतलब उर्दू ! हाँ इसमें उर्दू भी है और कनपुरिया भाषा भी है। प्रेम का जिहाद भी है। मूड़ी प्रेमी है जो विश्व की आर्थिक मामलों की सबसे बड़ी संस्था मूडीज के नाम को मूडी होने के मुकाबले में पछाड़ दे।
अउर का मूडीज कह दे कि अर्थव्यवस्था खराब तो मनमोहन सिंह भी कहें कि सही है तो विश्वास नहीं किया जाएगा। फिर उस देश की हालत पतली। यही हाल बम बम पाण्डेय के मूडी होने का है। वे रैकिंग दुरूस्त भी करते हैं और बिगाड़ भी देते हैं। यही बम बम पाण्डेय की असलियत है।
इस दुनिया में राई का भी महत्व है और राई का पहाड़ सभी जानते हैं। सब परिचित हैं कि कोई ना कोई ऐसा शख्स होता है जो राई का पहाड़ बना देता है। तो जब राई का महत्व है तो बम बम पाण्डेय सीरीज का भी बड़ा महत्व है। असल में कहने का मतलब ये है कि पाठक हर प्रकार के होते हैं , मैं स्वयं दार्शनिक टाइप किताबें पढ़ता हूँ। हर कहीं कुछ गंभीर दर्शन खोजता हूँ और महानता की ओर की यात्रा सोचता हूँ।
परंतु एक हँसी की फुहार से मेरा भ्रम दूर हो गया कि ऐसी भी किताब लिखी जा सकती है। ऐसी किताब का भी महत्व है। इस किताब का भी पाठक वर्ग है और बेशक कह सकता हूँ कि यह किताब पढ़ी जानी चाहिए। वजह सिर्फ इतनी सी कि मैं मुस्कुराया हूँ और जिंदगी में मुस्कान की कीमत चुटकी भर सिंदूर की तरह है जो सवाल है कि ” चुटकी भर सिंदूर की कीमत , तुम क्या जानो रमेश बाबू ? ” तो इस किताब की कीमत पढ़ते-पढ़ते पता चलेगी। जैसे मुझे एक पल में अहसास हुआ कि हाँ पुस्तक प्रेमी पाठकों से कहा जा सकता कि इस किताब को भी पढ़िए , ना खुशी में सही उदासी के पल में तो यह किताब अपना अस्तित्व बयां कर जाएगी। इसकी समीक्षा लिखना बेइमानी होगी बल्कि इसके अंदाज में कुछ ऐसा प्रस्तुत कर देना बम बम पाण्डेय के साथ न्यायिक होगा।