आत्मीय रिश्ते के बिना अपूर्ण होती है जिंदगी।

By – Saurabh Dwivedi

अंतर्मन लिखा जाना चाहिए , साझा किया जाना चाहिए। मन के खालीपन अर्थात अकेलेपन को भी शब्दों में ढालकर शब्दाकृति बना देना चाहिए। इंसान दुनिया भर की बातें कर लेता है , पर अगर कुछ नहीं कर पाता तो अपने मन के बांध को तोड़ नहीं पाता !

ये सच है कि विभिन्न सामाजिक मुद्दों से मन रिसता है , जैसे बांध से शून्य से छिद्र से जल रिसता है। इस वजह और बहाने से अदृश्य रूप से अपनी बात कह जाते हैं। अन्यथा अंदर ही अंदर घुटकर मरने लगें और मर जाएं ।

जो लोग अपने आपको संसार के सामने प्रकट नहीं कर सकते , उनके लिए जरूरी है कि जीवन में कोई ऐसा हो , जिसके सामने वो रो सकें , जब रोएंगे तो मन का बांध फूट चुका होगा। शनैः शनैः सामने वाले के अपनेपन में जिंदगी सहज होने लगती है।

वो साथी स्त्री – पुरूष कोई भी हो सकता है , परिवार और सामाजिक से व्यवस्था से अलग एक रिश्ता भी हो सकता है। जिसे सिर्फ दो सजातीय आत्माएं महसूस करती हैं। सजातीय स्वभाव के लोग ही अच्छे साथी होते हैं , रिश्ता कोई भी हो अगर साथी वाला अहसास नहीं फिर वह रिश्ता पूर्ण नहीं अपूर्ण होगा।

मन का बांध तोड़ देना वाला और मन को उसके समक्ष खोल देने वाला साथी होना चाहिए , अन्यथा इसके बिना जिंदगी पूर्ण नहीं होती। बेशक उच्चतर आत्मा के लिए वो साथ स्वयं से स्वयं का क्यों ना हो ? वैसे निजी विश्वास है तमाम रक्त और सामाजिक व्यवस्था के रिश्ते से इतर एक आत्मीय रिश्ता जिंदगी में अवश्य होता है।