प्रेम जो परिभाषित होकर भी अपरिभाषित रह जाता है.
By – Saurabh Dwivedi
मैंने कोई कोशिश नहीं की कि प्रेम की किताब हो। मैं कभी भी कविताएं नहीं लिख सकता था। कविता लिखने के यम – नियम का जानकार भी नहीं हूँ। रची रचनाओं का साहित्यिक स्तर भी पता नहीं मुझे। मेरा साहित्य से व्यक्तिगत और वर्तमान एक – दो पीढ़ी का कोई रिश्ता नजर नहीं आता।
सच पूंछिए तो एक भरे पूरे परिवार अकेला शख्स हूँ जो कुछ इस तरह रचना रचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। स्वाभाविक है कि मेरा मन भी सम्पूर्ण परिवार से अलग प्रकृति का होगा। यह भी वजह होती है कि अकेलापन महसूस हो जाए।
जिंदगी अप्रत्याशित घटनाओं की गुलाम है , यह मेरा व्हाट्सएप स्टेटस भी है। कुछ बुरी घटनाएं घटती हैं तो समस्याओं के जाल में फंस जाते हैं। इस जाल से आजादी प्राप्त कर आसमानी उड़ान भरना जिंदगी है।
जीवन में कविताओं का आगमन प्रेम का गहराई से महसूस होना है। मन से महसूस कर जी लेना है। एक ऐसी तस्वीर जो मन को महसूस हुई , मनभावन हुई। एक गहरी साँस से प्रेम की अनुभूति हुई।
अकेले कहीं महसूस करते हुए शब्द शब्द पिरोकर रचते रहना , कुछ इस तरह कल्पनाओं से हकीकत में प्रेम का मुकम्मल हो जाना। जन्म के समय से अपनी किसी किताब के बारे में सोचना भी मेरे लिए संभव नहीं था।
जिन हालात पर किताब प्रकाशित हुई। मेरी समझ में किताब प्रकाशित होने का वक्त नहीं था। किन्तु कुछ अप्रत्याशित सा घटित होता है और हम सामर्थ्यवान हो जाते हैं।
होठों की मुस्कान , दिल का सुकून बनकर प्रेम की आसमानी किताब अवतरित हो जाती है। जिसके अस्तित्व मे मेरा अस्तित्व है। जिसकी परछाईं में जीवन भर का सुख महसूस किया , जिसके दर्द में भी मिठास हो। पलकें स्वयं शर्मीली सी अदा मे झुकने लगें।
जीवन का सौभाग्य है कि प्रेम रचता हूँ। प्रेम के अहसास बिखेरता हूँ। एक सामान्य जीवन सभी जीते हैं पर जीना उसे कहते हैं कि असमान्य होकर जिएं। प्रेम रचते हुए किसी की परवाह ना हो। स्वयं से लिखी हर रचना असाधारण होती है सिवाय समीक्षात्मक नजरों के।
मेरे लिए मेरी रचना मेरा सुख है। मेरी यादे हैं। ना रच पाने की बेचैनी भी होती है और रचने के बाद का सुख ! महसूस होता है कि चलो आज कुछ तो कह लिया। प्रेम मे कहा जाना बहुत जरूरी होता है ताकि प्रेम जिंदाबाद रहे।
Note – अंतस की आवाज के साथ खण्ड विकास अधिकारी विपिन कुमार सिंह।