महाकुंभ मेला मे गाय पर मंथन शंकराचार्य करें मार्गदर्शन

महाकुंभ मे इस मुख्य विषय पर विचार मंथन होने की आवश्यकता है कि गो सेवा क्या है ? गोसेवक और गो रक्षक तथा गो हत्यारे मे क्या फर्क है ?

गाय का असली दोस्त कौन है ? असली दुश्मन कौन है ? मुसलमान या हिन्दू मे से किसकी वजह से गाय के हालात बुरे हुए हैं ! 

देशी गाय और साहीवाल गाया अथवा गिरी गाय की नश्ल से विचार किया जाए तो क्या निष्कर्ष निकलेगा ? बल्कि भैंस को भी विमर्श मे शामिल कर लें तो और भी अंतर समझ मे आ सकता है कि भैंस राजनीतिक मुद्दा क्यों नही बनी ?

भैंस जिनके भी घरों मे है वे अपनी भैंस को अन्ना क्यों नही करते ? गाय ही क्यों अन्ना है ? ऊपर से देशी गाय ही क्यों ? साहीवाल और गिरी गाय जैसे नश्ल की गाय अन्ना क्यों नही है ?

गाय का वैश्विक अर्थ व्यवस्था मे क्या योगदान है ? गाय के चमड़े से क्या क्या बनता है ? जो विदेश मे मंहगे रेट मे निर्यात किया जाता है। क्या मुसलमान इस धंधे मे संलिप्त थे जिससे वे आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे थे और हिन्दू धार्मिक भावना की वजह से महज सस्ते मूल्य मे बेचकर रह जाता था !

हाँ ऐसा भी होता था कि अन्ना देशी गाय मुफ्त मे ले जाकर काट दी जाती थी और इस धंधे मे संलिप्त कसाई – मुसलमान अधिक पैसा कमा लेते थे , ऐसी चर्चा रही है।

भाजपा सरकार और अन्य सरकारों मे तुलनात्मक अध्ययन होना चाहिए कि किसकी सरकार मे गाय की हालत उत्तम हुई ! उत्तर प्रदेश गाय का मुख्य केन्द्र बना हुआ है तो अखिलेश यादव और योगी सरकार मे किसके समय मे गाय के लिए अच्छे दिन थे ?

अब तक के मंथन मे आंखो देखी कहा जा सकता है कि गाय कभी ट्रक मे कटकर मर रही है तो कभी गौशाला मे ठंड से ठिठुर कर मर रही है या फिर अनजानी बीमारी से मर रही है क्योंकि प्रति गाय पशु चिकित्सक का भी अध्ययन कर लें तो जीरो लेवल मे पशु चिकित्सक मिलेगा , दस गाय पर भी एक पशु चिकित्सक की भर्ती सरकार ने नही की हुई है अगर पशुओं के लिए सरकार चिंतित होती तो सबसे पहले अधिक से अधिक पशु अस्पताल बनते और पशु चिकित्सक की भारी मात्रा मे भर्ती होती लेकिन हुआ क्या ?

इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर महाकुंभ मे प्रत्येक शंकराचार्य महाराज और धर्म गुरूओं को मंथन करके जन जन को सही मार्गदर्शन देना चाहिए जिससे गोसेवक गोरक्षक और गोहत्यारे मे फर्क साफ नजर आए भविष्य के लिए राजनीतिक मुद्दा  और वास्तविक सेवा भाव मे अंतर साफ नजर आएगा जैसे कि आज भी जंगल के तपस्वी संत वास्तविक गौसेवा कर रहे हैं इसलिए महाकुंभ मे गाय पर महामंथन तो होना चाहिए बेशक समुद्र मंथन संभव नही है परंतु विचार मंथन होना चाहिए मनुष्य के अंदर विचारों का समुद्र है जिसमे मंथन होना ही समुद्र मंथन है , इसलिए महाकुंभ मे गाय विमर्श का मुख्य मुद्दा होना चाहिए !