महात्मा गांधी वैश्विक राष्ट्रवाद के प्रणेता थे.

गांधी जी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व उस समय ही ह्वास होने लगता है। जब भारत पाकिस्तान के बंटवारे की तस्वीर मनःस्थिति में जीवंत होने लगती है और पाकिस्तान को धन देने के मुद्दे पर उनकी जिद उनके पूर्व के उत्तम विचारों की भद्दी तस्वीर बना देते हैं। 
हालांकि गांधी के विचारों का अध्ययन कोई भी करेगा, निश्चित रूप से मुरीद हो जायेगा। इसलिये हमें चीटीं के एक गुण को अपनाना होगा। रेत में शक्कर मिला दीजिए। चींटी रेत को छोड़कर शक्कर चुन लेती है। 
इसलिये प्रत्येक भारतीय को अच्छी बातों को आत्मसात करना होगा। जो अच्छाई है उस पथ पर चलकर गांधी प्रदत्त वैश्विक राष्ट्रवाद को अपनाना ही “वसुधैव कुटुम्बकम” को चरितार्थ करता है। 
हालांकि आज आतंकवाद की वजह से जैसी परिस्थिति बनी है। वैसे में न सुधरने वाले राष्ट्र का वैश्विक तिरस्कार होना ही एक मात्र विकल्प है। 
गांधी विवाद का विषय नही है बल्कि वाद का विषय है। आत्मचिंतन करिए। वक्त और परिस्थिति के अनुसार हमारा एक अपराध बाकी के अच्छे कार्यों की छवि को धूमिल कर देता है। 
अभी भी वक्त है हम गांधी के अच्छे विचारों को चीटीं की भांति बुराई की रेत से शक्कर महसूस कर के चुन लें।
विश्व हिंसक होता जा रहा है। राजनीति में हिंसा का समावेश हो गया, एक छोटा सा आंदोलन आम आदमी की “मौत का कुंआ” बन जाता है और राजनीति वो सर्कस बनती जा रही है जहाँ मौत के कुएं का खेल प्रोफेशनल बाइकर्स खेलते हैं परंतु इस खेल में किसान मर रहा है। 

By – Saurabh Dwivedi