मनमोहन सिंह की बुद्धिमानी से घोटाले से रोजगार का सृजन हुआ
Amit pandey
ज्यादातर लोगों की तरह मैंने भी मनमोहन सिंह का मजाक उड़ाया है। लेकिन आजकल उनका एक बयान बार-बार मेरे सामने आता है और मुझसे कहता है – क्यों अमित पाण्डेय, अब क्या कहते हो तुम। 2014 में तमाम तरह के घोटालों से घिरे मनमोहन सिंह ने अपनी सफाई में सिर्फ इतना कहा था कि – मेरा मूल्यांकन इतिहास करेगा। इतिहास ने अपना काम शुरू कर दिया है।
मुझे 2009 का सत्यम घोटाला बहुत अच्छी तरह याद है। इस घोटाले की तुलना नीरव मोदी से नहीं की जा सकती, लेकिन फिर इतनी समानता थी कि दोनों वित्तीय धोखाधड़ी के मामले थे, विश्व स्तरीय ब्रांड दांव पर लगे थे और हजारों लोगों की नौकरी खतरे में थी।
हम सभी कांग्रेस को गालियां दे रहे थे। मनमोहन सिंह ने बेहद खूबसूरती से सत्यम को संकट से बाहर निकाला। सरकार ने सत्यम को ओवरटेक किया। पहली कोशिश थी कि कंपनी का कामकाज प्रभावित न हो। ग्राहकों और निवेशकों को विश्वास दिलाया की सब ठीक हो जाएगा। बेल-आउट पैकेज दिया गया। उद्योग जगत के जानेमाने लोगों को शामिल कर नए बोर्ड का गठन किया। एक रिटार्यड चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया निगरानी कर रहे थे। सत्यम पहले की तरह काम करने लगी। एक आदमी की नौकरी नहीं गई। भारतीय आईटी उद्योग की साख और बढ़ गई। जब सबकुछ ठीक हो गया तो सरकार ने सत्यम की नीलामी की और उसे महिंद्रा ने खरीद लिया। इतना सबकुछ हुआ सिर्फ तीन महीने में। जिस सत्यम को बर्बाद होकर बंद हो जाना चाहिए था, आज उसमें 117225 कर्मचारी काम करते हैं और उसका राजस्व साढ़े चार अरब डॉलर है।
कंपनियों में सरकार के हस्तक्षेप की अकसर बुराई की जाती है। लेकिन एक ऐसे समय में जब भारतीय आईटी उद्योग, वित्तीय संस्थाओं और कॉरपोरेट क्षेत्र की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी, डॉ. मनमोहन सिंह ने न सिर्फ इनकी प्रतिष्ठा बचाई, बल्कि निवेशकों के करोड़ों रुपये और हजारों लोगों की नौकरी को भी बचाया।
नीरव मोदी मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया। तो सवाल घूम फिर कर फिर वही है – – क्यों अमित पाण्डेय, अब क्या कहते हो तुम।