मानो ना मानो ! राधा रानी के श्रृंगार की सत्य घटना
कहाँ से शुरू करूं ? कहां खत्म करूं ? जिनका ना आदि है ना अंत जो अकल्पनीय घटनाएं घटित करने वाले परमात्मा हैं वे हमे निमित्त बनाकर कुछ भी करवा सकते हैं।
ये घटना एक दिन मे घटित हुई परंतु यात्रा वर्षों की है। कुछ महीने पूर्व मन मे प्रेरणा हुई बिहारी जी को माला पहनाएंगे। मन ही मन प्रेरणा होती रही लेकिन माला लेकर मंदिर पहुंचा नही।
अभी एक दिन पहले दर्शन करने की इच्छा हुई तो सोचा कि अब माला लेकर जाऊं। ट्रैफिक चौराहे मे माला लेने को भूल गया तो बेड़ी पुलिया मे माला की दुकान दिख गई और ध्यान आया अरे माला लेना है।
उससे मैंने एक माला ली और चल दिया। जब कुछ दूर पहुंच गया तो याद आया कि भाई वहां एक नही दो हैं इससे तो एक का मान हो जाएगा और एक का अपमान !
चिंता की बात थी लेकिन मन मे आया रहने दो एक को पहना देंगे फिर राधा रानी को पहना देंगे तो इतने मे फिर विचार आया कि महाराज से जी कह दूंगा कि इस बार राधा रानी को पहना दो आप फिर मैं अगली बार दो माला लेकर आऊंगा।
ऐसे सोचते समझते हुए मैं मंदिर के द्वार पर पहुंच गया जैसे सुदामा श्रीकृष्ण के राजमहल पहुंचे थे तो द्वार पर ही महाराज जी से भेट हो गई।
महाराज जी कहते हैं अरे आज माला लाए हो !
मैंने कहा हां महाराज जी …….
अचानक से महाराज जी बोले आज बड़ी घटना हो गई तो मैंने पूछा क्या हो गया ?
बोले देखो अंदर !
मैंने देखा तो कुछ ना नजर आया और नजर आए तो श्रीकृष्ण और राधा रानी।
जब महाराज जी ने कहा तो आंखे खुलीं और निकला अरे ये तो सच है।
राधा रानी माला नही पहने थीं और बांके बिहारी अर्थात श्रीकृष्ण भगवान माला पहने हुए थे।
महाराज जी ने कहा मेरे मन मे आ रहा था कि एक माला कैसे मगाऊं ? मिलेगा भी या नही इतनी देर !
एक सज्जन दो माला लेकर आए थे। माला छोटी थीं तो दो की एक माला गूथ दी और इनको पहना दी तब से राधा रानी देखे जा रही हैं , गुस्सा गुस्सा हो रही हैं।
और आज देखो क्या हुआ है ?
आप कभी कुछ लेकर तो नही आते थे। यकीनन महाराज जी चूंकि यहां मंदिर मे धूपबत्ती भी नही कर सकते तो मैं यहां दर्शन के लिए और कुछ देर बैठकर ऊर्जा महसूस करने के लिए आता हूं पर आज मैंने माला ली वो भी एक और आपको सिर्फ एक माला की आवश्यकता थी।
मैंने महाराज जी से कहा कि देखो महाराज भगवान बहुत कुछ मुझे दे देते , कोई दर्द ना होता तो क्या आज ये घटना होती ?
हम भगवान से बहुत कुछ मांगते हैं कि ये कर दो वो कर दो और सारे दुख दूर कर दो पर कहां कुछ होता है ? और सबकुछ भी हो जाता है यही हरि इच्छा है।
भगवान हमें अकल्पनीय और अद्भुत सा दे देते हैं जो हम सोच नही सकते और यकीनन मैं ऐसा तो बिल्कुल भी नही सोच सकता था इसलिए जिंदगी मे जितना सुख का है उतना महत्व दुख का है जितना संयोग का है उतना वियोग का है बेशक घटनाएं हमें बनाती हैं और यहां तक कि जन्म होने के लिए गर्भ निमित्त मात्र है बल्कि जन्म और मृत्यु वो निश्चित करता है।
इसे इत्तेफाक कहें या चमत्कार और आप मानों ना मानों लेकिन यह सत्य घटना बड़ा संकेत है कि देखो कृष्ण हैं राधा रानी हैं और मनोरथ को पूरा करने वाले अपना मनोरथ अपने भक्त से पूरा करवाते हैं।
राधा रानी की जय……