वो चरित्रहीन और लाल फ्राक वाली लड़की से मिलिए.
Saurabh Dwivedi
नए दौर में नई कहानियांं कुछ नई उम्मीदों के साथ लिखी जा रही हैं। हाल ही में मैने दो किताबें पढ़ी, जिनमें कात्यायनी सिंह द्वारा लिखित वो चरित्रहीन अपने आप में अलहदा है। समाज नामक आइने के पीछे लगी हुई पाॅलिस, जिस पर किसी नजर नहीं जाती पर उसी की बदौलत आइने में अपना चेहरा देख पाते हैं। वैसेे ही आइने के पीछे लगी हुई पालिस की तरह वाली कहानियों से हम समाज का एक और चेहरा देख पाते हैं।
हालांकि पढ़ते वक्त मुझे थोड़ी नकारात्मकता से सामना करना पड़ा परंतु यह नकारात्मक पक्ष समाज का ही सच है। जिस प्रकार से समाज विकृतियां व्याप्त हुईं। वैसे ही इन कहानियों का महत्व है। स्वयं मैं आत्मीय अलौकिक प्रेम पर श्रद्धापूर्ण हूँ, इसलिए जब उन कहानियों को पढ़ रहा था तब मेरे अंदर कोलाहल उत्पन्न हुआ था। कारण सिर्फ इतना सा था कि उस नकारात्मक पक्ष से प्रेम जैसी सहज उत्पत्ति पर वार पड़ते महसूस कर रहा था।
नाम के मुताबिक कहानियों का सार है, वैसे मेरी व्यक्तिगत समझ में सबका अपना चरित्र है और अगर कोई चरित्रहीन है तो सबसे पहले समाज चरित्रहीन है, यह स्वीकार करना चाहिए।
इस बीच ही हम्बिंग बर्ड के लेखक मुकेश कुमार सिन्हा द्वारा लिखित लाल फ्राक वाली लड़की पढ़ी, जिसमें लघु प्रेम कथा के माध्यम से प्रेम के वैविध्य रूप को सहेजा गया है। समाज में प्रेम को सहज सरल बनाए रखनेे हेतु एक अच्छा प्रयास है। इस विधा की शुरुआत एनडीटीवी के एंकर रवीश कुमार ने की और उसके बाद से लोगों को यह बेहद पसंद आने लगी। लेखकों का रूझान भी इस ओर बढ़ा। समतुल्य भाव से इनकी रचित हर कहानी से संतुष्टि मिल जाती है।
वैसे भी एक लेखक किसी भी कृति को जन्म देने से पहले प्रसव पीड़ा से अधिक का दर्द सहता है। ऐसा मुझे महसूस होता है। इसलिये लेखिका कात्यायनी सिंह एवं लेखक मुकेश कुमार सिन्हा को अलग अलग कृति हेतु संयुक्त रूप से बधाई।