मूर्ति पूजा करने वाला ये समाज नाना जी देशमुख की 14वीं पुण्यतिथि मना रहा है उस वक्त जब नाना जी के चार भांजे काल के गाल मे समा गए हैं।
” नाना जी के चार भांजे इनकी पुण्यतिथि मनाएंगे क्या ? कहते हैं साहब लोग बहुत दुखी थे तो स्मृति मे कुछ स्थान चित्रकूट मे देंगे क्या ? “
बड़ा सवाल है पुण्यतिथि और जयंती आदि मनाने वाले समाज से जो अक्सर किसी महापुरुष की जयंती मनाता है और उनके विचारों का बखान करता है किन्तु सवाल ये बनता है कि उनके विचार हृदयतल मे हैं कि नही ? मूर्ति पूजा करने वाला ये समाज नाना जी देशमुख की 14वीं पुण्यतिथि मना रहा है उस वक्त जब नाना जी के चार भांजे काल के गाल मे समा गए हैं।
जब बच्चों की मौत हुई थी तो पहले लोगों को पता ही नही था कि बच्चे मरे हैं या व्यक्ति ? कितने लोग मरे हैं इसकी भी स्पष्ट जानकारी अब तक नही मिली है।
ऐसे मे प्रसिद्ध फिल्म शोले का डायलॉग याद आता है ” कितने आदमी थे रे ? ” साहब 2 और तुम ? ले फिर गोली खा ! निर्णय तत्काल होना चाहिए और बच्चों की मौत के जिम्मेदार को फौरन सजा मिलनी चाहिए। सरकार को बड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
किवदंती ये भी है कि मजदूरों की मौत हुई है जिसे अब तक प्रेस वार्ता आदि कर स्पष्ट नही किया गया है। जो लोग घायल हुए उनका कोई स्वास्थ्य बुलेटिन नही आया। कि वे कैसे हैं ? स्वास्थ्य मे सुधार हुआ या नही !
नाना जी जिंदा होते तो क्या वे ये सब बर्दाश्त कर पाते ? नाना जी ने बच्चों के जरिए ही उज्जवल भारत का भविष्य देखा था। लेकिन चार बच्चों की मौत और अन्य घायल पर शोले फिल्म के गांव वालों की तरह लोग डरे हुए हैं और ठाकुर बहुत परेशान है !
इस समाज को नायक की जरूरत है। नाना जी गरीबों के नायक थे। नाना जी समृद्धि चाहते थे लेकिन सिर्फ पैसे की समृद्धि नही बल्कि विचारों की समृद्धि चाहते थे। नाना जी का स्वप्न था कि लोग मानसिक रूप से समृद्ध हों लेकिन लोग मानसिक रूप से विकलांग नजर आ रहे हैं।
ऐसे मे सिर्फ ये लगा कि नाना जी के भांजो को कही तो जगह दे दीजिए। उनकी स्मृति मे कुछ बनवा दीजिए। कोई पार्क का नाम रख दो जहां बचपन जिंदा हो सके या सीआईसी के उस ग्राउंड मे ही जगह दे दो तो हो सकता है कि नाना जी देशमुख जैसे महापुरुष की पुण्यतिथि साकार हो जाए।
ढोंग , ढकोसला और वास्तविकता मे बड़ा फर्क है सुना गया कि बड़े साहब बहुत दुखी थे तो बड़े साहब जनपद मे फौरन इन बच्चों के नाम पर किसी पार्क का नाम दे दें या फिर कुछ तो करें जिससे बच्चों का जन्म साकार हो सके परिवार को सम्मान मिल सके और भारत रत्न नाना जी देशमुख जैसे महापुरूष के विचार साकार हो सकें।