माता – पिता मासूम बच्चों को दहशतगर्दी से बचाएं.
by – saurabh Dwivedi
आज मौत और जिंदगी का एकदम सच्चा किस्सा सुना रहा हूँ। जब मौत मुहाने पर खड़ी हो तब एक नई जिंदगी मिलने की कितनी छटपटाहट होती है।
बात उन दिनों की है जब मेरे घर परिवार में दहशत का माहौल हुआ करता था। मैं कोमल मन का एक बच्चा था। जिसे दुनियादारी का तनिक सा भान होने लगा था।
मेरे बड़े पापा अभिमन्यु द्विवेदी को जान से मारने के लिए बदमाशों की पूरी सेटिंग हो चुकी थी।
अभिमन्यु द्विवेदी कब कितने बजे यहाँ आयेगा और उस खिड़की से शूट कर देना है। पापा के सूत्रों से जानकारी मिल चुकी थी।
उधर से बदमाशों का आना हुआ और इधर से पापा ने पुलिस भेज दी। फिर पुलिस और बड़े पापा एंड आर्मी भी संग संग हो ली। बदमाशों को दौड़ा दौड़ा कर गिरफ्तार करना, मारना पीटना जारी था।
तभी एक पुलिस वाले के सामने एक बदमाश ने बंदूक डटा दी थी। पुलिस वाले ने स्वयं को बचाने के लिए बंदूक की नार में उंगली डाल दी थी। ऐसा सुना था कि नार में उंगली डालने से फायर मिस हो जाता है।
उस वक्त पीछे से बड़े पापा दौड़कर पहुंचे थे और उस बदमाश को पीछे से रायफल के एक बट से जमीन पर गिरा दिया था तब जाकर उनकी जान में जान आई थी और चरितार्थ हुआ था कि “जाखो राखो साईयां मार सके न कोय”।
इसे कहते हैं मौत के मुह से निकल आना। जिंदगी कभी कभी ऐसा चमत्कार भी दिखा देती है।
मुझे याद है उस समय सड़क पर खड़ा था और जब बड़े पापा को टीशर्ट मे पहाड़ी में देखा तो मन तुरंत समझ गया था कि जरूर आज कुछ हो गया।
कारण सिर्फ इतना सा था कि बड़े पापा हमेशा टाइट कुर्ता पहनकर आते थे। इसलिये मैं समझ गया था फिर जो किस्सा शुरू हुआ। यही था।
मैं इसलिये ही कहता हूं कि इतनी सी जिंदगी में अनेक अनुभव रहे हैं। अमीरी, गरीबी, दहशतगर्दी की हर छांव से गुजर कर आया हूँ।
इसलिये जिंदगी में और अनुभव लेते हुए ये महसूस करता हूँ कि अनुभव उम्र का मोहताज नही होता।
आज अचानक से ये किस्सा याद आया था। जिसमें महसूस हुआ कि बच्चों के जीवन में एक परिवार और उसके क्रियाकलाप कितने प्रभावी सिद्ध होते हैं। दहशतगर्दी से बच्चों के मन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
इस बात को हमेशा बड़ों को समझना चाहिए कि बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए घर के अंदर माहौल कब और कैसा होना चाहिए।