पाठा का सफरनामा – अनुज का सफर.
By – Saurabh Dwivedi
अक्सर सुना जाता है। प्रतिभाशाली व्यक्ति अधिक धन की चाह और जिंदगी की सुख भरी आह्ह के लिए अपनी मिट्टी से दूर विदेशी धरती पर कैरियर बनाने निकल जाते हैं। कुछ लोग तनिक सी बड़ाई महसूस करते ही अपने गांव – अपनी मिट्टी को विस्मृत कर जाते हैं। किन्तु अनुज हनुमंत जैसे व्यक्तित्व अपनी मिट्टी की महक से सदैव जुड़ाव – लगाव महसूस करते हैं।
यही वजह कही जा सकती है कि पत्रकारिता के लंबे समय और लंबी यात्राओं के बीच पाठा के नाम और संस्कृति को जिंदा रखने के लिए अनुज ने प्रयास जारी रखा। पहला प्रकाशमय जोशीला ऊर्जावान प्रयास यही कहा जा सकता है , जब अस्पताल में डाक्टर्स की कमी के लिए धरना प्रदर्शन और अनशन समूह सहित किया गया।
तत्पश्चात अनुज का सफर यहीं थमा नहीं। जिस पाठा में जंगल ही जंगल है और डाकुओं का मंगल हो वहाँ अनुज ने प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्र खोजकर दुनिया के समक्ष रख दिया। फलस्वरूप पुरातत्व विभाग से लेकर इतिहासकार एवं इस क्षेत्र में अध्ययनरत् छात्र – छात्राओं के आकर्षण का केन्द्र बना।
यह मौसम ठंड का है और ठिठुरन वाली ठंड है। ऐसे में गरीब हो या अमीर सभी ठंड से कांप जाते हैं। अमीरों के पास बचाव हेतु ब्वायलर से लेकर ब्रांडेड वूलने क्लोथ्स भी होते हैं पर अगर आदमी की पहुंच से मंहगे कपड़े और कंबल आदि बहुत दूर रहते हैं। ऐसा भी कह सकते हैं कि चांद – तारे की तरह की लुभावनी दूरी। उन्हें देख लेना चाहें , छू लेना चाहें। किन्तु अफसोस कि ऐसा नहीं हो सकता।
ऐसे में हिन्दी खबर के संवाददाता के रूप में अनुज ने ” एक कंबल – एक जिंदगी ” का अभियान शुरू किया। पाठा के गरीबों को ठिठुरन की ठंड से निजात मिलने की उम्मीद बन गई। एक युवा पत्रकार का सामाजिक प्रयास रंग लाता है। वास्तव में ऐसे ही जुझारू , कर्मठ युवाओं की भारत भूमि को आवश्यकता है। ऐसे ही अनुज ने पाठा की मिट्टी को अद्भुत खुशबूदार महसूस करा दिया है।
पाठा का सफरनामा यही कहा जा सकता है कि जहाँ अब गोलियों की गूंज , डाकुओं की धमकी और भय के अलावा अब समाजसेवा और संत भाव की ख्याति महसूस होने लगी है। बहुत से समाजसेवी इस ओर सोचने लगे हैं। सच है कि पाठा के दिन बहुरने लगे हैं और भविष्य में ऐसा होता रहेगा इन्हीं आशाओं के साथ 2019 की शुरूआत और सभी को मंगलकामनाएं। कार्यक्रम में पाठा की शेरनी टाइटल से 45 वर्षीय महिला को सम्मानित किया गया।