बाबाओं को पेंशन : लोकतंत्र में हैं या दुष्टतंत्र में ?
By – Saurabh Dwivedi
मेरे मन में आ रहा है , मूंछ बढ़ा लूं। दाढ़ी थोड़ी बड़ी कर लूं और कुछ दिन ना नहाऊं। जिससे चेहरे की खाल धूल मिट्टी से सनकर बुड्ढों जैसी हो जाएगी। हंसूगा तो आंखो की खाल नीचे उतरेगी। दिन में साधु लगूंगा। उम्र 60 पार सी हो जाएगी। बोलने में लडखड़ाऊंगा।
विधानसभा के कैंप जाऊंगा। साधु पेंशन लाभार्थी योग्यता का फार्म मांगूंगा। अफसर बाबू मुझे प्रणाम करते हुए , स्वागत सत्कार करते हुए चरण स्पर्श करेंगे। कहेंगे बाबा जी आशीर्वाद दो। कितने प्रतापी बाबा हैं। बाबा की जय हो।
ओहो नो नो रामदेव नहीं जाएंगे। वो विलासी बाबा हैं। विलासिता की चीजें बेचते हैं। सुंदर होने का स्वप्न देकर ब्यूटी क्रीम बेचतें हैं। आखिर उनको पेंशन की क्या जरूरत है ?
वो तो हम जैसे साधक जाएंगे। अफसर बाबू दण्डवत होएंगे। आखिर राजा के राज्य में , दरबार में बाबाओं की जय बोली जाती है। बाबा का जज्बा और कर्मा दोनों महान हैं। इन सब विशेषण के साथ बाबा को फार्म दिया जाएगा।
उसमें बाबा अपना नाम भरेंगे और बाबाओं के नाम इतने बड़े – बड़े कि कालम कम पड़ गए। श्री श्री 1008 तो लिखा ही नहीं जा रहा। इसके बिना प्रमाणित कैसे होगा कि बाबा वाकई सिद्धहस्त हैं। चूंकि बाबा की कोई जाति धर्म नहीं होती। परिवार नहीं रह जाता। सन्यासी सिर्फ सन्यासी होता है। मोह में नहीं रहता , वो बाबा होता है।
ऐसे बाबा दिखेंगे ही नहीं विधानसभा के कैंप में। वो बाबा अलग प्रकार के होगें पर बाबा तो बाबा होते हैं। हमाए लोग जैसे , और क्या ? जैसे मैं ? बनठन कर थोड़ा जुबानी मस्का लगा के। घर – घर में जाकर हर हर करना। अब कोई 2014 ना है फिर से कि ” घर – घर मोदी हर – हर मोदी ” का नारा लगेगा। उस पर पहले ही बैन हो चुका था।
वो भोलेनाथ हैं। भोले भण्डारी नाराज हो गए थे और मोदी जी ने अप्रवासी भारतीय सम्मेलन करा डाला। भला हो कि अप्रवासी बाबा नहीं हैं वरना भारत की नागरिकता को सदा सदा के लिए आत्मा से नमन कर लेते कि चलो पेंशन तो मिलेगी। पेंशन भी इतनी कि बाबा जी की दाढ़ी का खर्चा भी ना निकलेगा ?
सरकार हैं जो कराएं , भविष्य में बाबा सड़कों पर आंदोलन करते मिल सकते हैं। हमारी पेंशन बढ़ाओ ? हमारी पेंशन बढ़ाओ ? जोर जोर से गली गली में शोर है सड़क – सड़क पर बाबाओं का जोर है। ओम शिव बोल बम ! ऐसे नारों से गूंज जाएगा चहुंओर।
उस पर भी बाबा सिर्फ बाबा नहीं गोल्डन बाबा हैं। डिजिटल बाबा हैं। गोल्डन बाबा कह सकते हैं कि अरे तुम्हारे पेंशन से गोल्ड का रवा भी ना मिलेगा। डिजिटल बाबा सोशल मीडिया पर क्रांतिकारी कोटेशन लिख – लिख कर सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर करेंगे और कम्प्यूटर बाबा कम्प्यूटर पर खट – खट , किट – किट कर कर के सरकार को खर्रा लिखेंगे। ताकि न्याय मिल सके।
अब क्या ? बाबा लोग सड़क पर एक दिन साधना करते रहेंगे। उस वक्त तक जब तक नई सरकार पुरानी पेंशन बहाली नहीं करती। सरकार बेचारी क्या ना करती ? सोचिए। पहिले तो बाबा और लाठी से पिटवा दो तो सरकार निठल्ली अत्याचार कर रही है। फिर विश्व भर में खबर चलेगी भारत में आध्यात्मिक गुरूओं को पुलिस ने लाठियों से पीटा ? अब धर्म का क्या होगा जब सरकार ही अधर्मी है ? यस।
ये समय की यात्रा है। यात्रा करिए इस समय की। कि किस जगह आ गए हैं ? पहले क्या थे ? अब क्या हो ? आगे क्या होगें ? तो इसी से निकलकर आया। बाबाओं का रहस्य और सरकार की तिकड़मी आशाएं। ऊपर से योजना पर हस्ताक्षर करने वाले स्वयं योगी हों। जो नाथपंथ की अग्निपरीक्षा पास कर मठ के महंत बनें। एक आध्यात्मिक गुरु की तरह परंतु साधु को इस श्रेणी पर लेते आना ? इतने बुरे दिन हैं। नहीं वास्तविक साधु विधानसभा के कैंप पर नहीं आएगा। ऐसा भरोसा है।
सच यही है। स्वीकार करना ना करना धार्मिक अंधता ही होगी। स्वविवेक का प्रयोग करें कि सरकार चला रहे हैं या छला रहे हैं। लोकतंत्र मे हैं या दुष्टतंत्र में ? जहाँ जिंदगी छली जा रही हो। कोई बाबा भविष्य भी बताएंगे। आप बाबा , हम बाबा और सब बाबा। चलो बाबा बनने की ओर चलें। बोलो योगी बाबा की जय।