कविता : सम्मोहन है छवि का तुम्हारे.
By – Saurabh Dwivedi
वो सोचती रही
बड़ा खूबसूरत लिखता है
पर वो सोचती नहीं
आत्मा से लिखता है
बेशक कलम चला करती है
उंगलियां थिरकती हैं
पर कमाल तो हृदय का है
धड़कनों की धुन में
उंगलियां थिरकती हैं
शब्द शब्द आत्मा से
प्रस्फुटित होते
शब्द शब्द रचना बन जाती
वो रचना ही छवि है
तुम्हारे आत्मीय इश्क की
सिर्फ इतना ही सोचना था
वो इतना सोच नहीं सकी
हर अहसास आत्मा से आत्मा का है
इसलिए शब्दों में
सम्मोहन है
छवि का तुम्हारे
तुम्हारा ” सखा “