कविता : स्पर्श की भाषा से …

By :- Monica sharma

स्मृति लोप
ऐसी अवस्था
जिसमें भूला तो कुछ नही
पर कुछ याद नही आता

क्या कभी टकराई थी
नजरों से नजरें
हमारी तुम्हारी
क्या की थी कभी
आंखों के कोरों ने
लाल डोरों से बात

अनछुआ सा है
मेरा मस्तिष्क
स्पर्श की भाषा से
कब की होगी ?
रोम रोम ने
तुम्हारे मेरे स्वेद से बात

क्या कभी उलझी हैं
उंगलियों से उंगलियां
क्या कभी थामा हो
तुमने मेरा ठिठूरता हाथ

याद नही आती कोई
चुम्बन की गर्माइश
याद नही आता कुछ
कभी सहेजा हो तुमने
मुझे या के
मेरा कोई हिस्सा
कोई प्रेम की बात
कोई मोहब्बत की तकरार
या पड़ी हो तुम्हे कोई
कभी मेरे
लफ़्ज़ों की दरकार

मैं भूलना भी चाहूं
भूल नही पाती
ये कैसा यादों का
प्रहार है
ये कैसा सितम है
के तेरी सूरत
ज़हन में है
पर क्यों तुम
याद नही आते मुझे
ये कैसा स्मृति लोप है…

( मोनिका शर्मा के शब्दों की कलात्मकता ही है कि शब्दों को पढ़कर अहसास जिए जा सकते हैं )