पुलिस वाला पत्रकार बनाम जनता वाला पत्रकार.
By – Saurabh Dwivedi
नोएडा से एक खबर प्रकाशित हुई कि तीन पत्रकार और इंस्पेक्टर घूस लेते हुए गिरफ्तार हुए हैं। पुलिस और पत्रकार के बीच का यह वो सच है जो शर्मसार कर जाता है। जब पत्रकार अपना कर्तव्य भूलकर पूर्ण व्यवसायिक – कमाऊ पूत वाली डुबकी लगा लेता है तब पत्रकारिता को शर्मसार होने से कोई नहीं बचा सकता। ऐसे पत्रकार कहलाने वाले लोग हर शहर , कस्बा और गांव मे मिल जाते हैं। जो येन-केन-प्रकारेण धन ऐठते हैं।
असल में बात सिर्फ पुलिस विभाग की नहीं है। बल्कि दलाल मानसिकता के लोग पत्रकारिता का टैग लेकर अवैध धन वसूली करते हुए अन्य विभागो में भी पाए जाते हैं। इनकी अफसरों से सांठगांठ ही उजागर कर देती है कि पत्रकारिता किसलिए और क्यों ?
असल में पत्रकारिता जनता के लिए होती है। पीड़ित जनता को मुद्दों पर न्याय दिलाने के लिए कलम का सदुपयोग होता है। किन्तु वर्तमान समय में अफसरों के हित में कलम चलाए जाने का चलन बढ़ चुका है। इससे सिर्फ इतना होता है कि अफसर के साथ पत्रकार की सेल्फी छा जाती है। जनपद के सबसे बड़े अफसर के साथ भी व्यवहारिक संबंध का प्रभाव जमाया जाता है।
यह संक्रमण इतना अधिक बढ़ चुका है कि अब किसी अफसर के ट्विट से पत्रकारिता के मठाधीश तय होने लगे हैं अथवा माने जाने लगे हैं। हाल ही मे यह भी देखा गया है कि जनपद का कोई बड़ा अफसर किसी पत्रकार को सोशल मीडिया पर प्रमोट कर रहा है। वह अफसर स्वयं ट्विट कर कहता है कि फला पत्रकार की रिपोर्ट को संज्ञान में लेकर कार्रवाई हुई है। जिससे उस पत्रकार का मस्तक चौड़ा हो जाता है और सीना छत्तीस से छप्पन हो जाता है।
किन्तु हकीकत यह है कि पत्रकार की पत्रकारिता की तारीफ जनता करे तो महसूस किया जा सकता है कि वास्तव में पत्रकार की कलम चली है। एक अफसर अपना हित देखते हुए , एक पत्रकार को पालकर स्व -हित में लिखाकर प्रोन्नति के लाभ से लेकर जनपद में टिके रहने तक की यात्रा तय करता है। जबकि वही पत्रकार अफसर के सौ जुर्म छिपा लेता है।
यह भी सच है कि यदि एक पत्रकार पुलिस और अफसरों के बीच लगातार बैठेगा और अच्छे संबंध रखेगा तो कलम कहीं ना कहीं कमजोर होगी। यह गीता से उद्धृत मोह का सिद्धांत है। स्वाभाविक है कि यदि अफसर के साथ अच्छा व्यवहार व अधिक नजदीकी होगी तो मोह भी होगा। जब मोह होगा तो जनहित के लिए कलम कैसे चलेगी ? अर्जुन की तरह कुरूक्षेत्र के मैदान में गांडीव ( धनुष – बाण ) फेंक देंगे। अब वो कृष्ण कहाँ मिलेंगे जो ऐसे पत्रकार को गीता ज्ञान देकर अन्याय , भ्रष्टाचार , अकर्मण्यता के खिलाफ युद्ध करने के लिए तैयार करेंगे ?
अब वह वक्त आया है जब जनता देख – समझ ले कि पत्रकार अफसर हितैषी है या जन हितैषी है ? जो पुलिस थाने के चक्कर लगाएगा और पुलिस वालों से अच्छे संबंध रखेगा। उनके गुणगान करेगा वो जनहित पर करारी कलम कैसे चलाएगा ? असल में यह उसी प्रकार है कि चोला संत का पहना है और प्रवचन भी वैसे ही हैं परंतु संतई के पीछे गुंडई , डकैती की तरह वाली मुलायम लूट शुरू रहती है।
कुछ मामले ऐसे भी सामने आए कि विज्ञापन का ऐसा व्यापार चल रहा है कि विज्ञापन ना मिलने पर किसी कमजोर अधिकारी – कर्मचारी व चिकित्सा क्षेत्र के लोगों पर गलत आरोप भी लगाए गए हैं। जिससे समाज व सेवारत ईमानदार लोगों की मानसिकता पर बुरा असर पड़ा है।
पत्रकारिता और अफसरों के मध्य एक समानांतर दूरी पर स्थिति लाइन का बड़ा महत्व है। जिस प्रकार कोरी काॅपी पर दो लाइन के मध्य अंतर होता है। तब हम कुछ लिख पाते हैं। वैसा ही अंतर आवश्यक है। तब ही जनहित वाली पत्रकारिता प्रकाश में आ सकती है। अन्यथा वह वक्त भी नजदीक आ रहा है जब जनता का पत्रकारों से पूर्ण विश्वास खत्म होने लगेगा। अतः जो पत्रकार रास्ता भटक रहे हों , वक्त है कि स्वयं की समीक्षा कर सही रास्ते पर आ जाएं। यह सत्य है कि अधिकारी आते-जाते रहेंगे और स्वभाव के अनुसार किसी से कम ज्यादा अच्छे / बुरे संबंध हो सकते हैं। किसी से चाहकर भी संबंध नहीं बन सकते पर यदि पत्रकारिता जनता के लिए करेंगे तो निश्चित रूप सदा सुखी रहेंगे।