राजनीति में मर्यादा के पुरुषोत्तम जब ‘अध्यक्ष जी से कहो’ बन जाता है संगठन का धर्म

राजनीति में मर्यादा के पुरुषोत्तम : जब ‘अध्यक्ष जी से कहो’ बन जाता है संगठन का धर्म

राजनीति में बहुत कुछ दिखता है, बहुत कुछ कहा जाता है और बहुत कुछ छिपा रह जाता है। मगर कुछ बातें अपने आप कह जाती हैं कि अभी भी इस भीड़ में कोई ऐसा है, जो व्यवस्था के भीतर रहकर भी व्यवस्था से ऊपर उठ चुका है। ऐसा ही एक अनुभव हुआ जब उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह चित्रकूट के दौरे पर थे।

एक साधारण-सी मुलाकात में, जब लेखक ने उन्हें ‘साइलेंट मोड’ में कुछ कहा, तो उन्होंने बस इतना कहा – “अध्यक्ष जी से कहो…”। इस एक वाक्य में जो संगठन धर्म, अनुशासन, और मर्यादा का भाव था, वह किसी भाषण, किसी नारे या पोस्टर से बहुत ऊंचा था। वह राजनीतिक शुचिता की वह प्रतिमा थी जो आज के दौर में विरल होती जा रही है।

दरअसल, कोई भी प्रदेश संगठन महामंत्री सीधे आदेश दे सकता है, और वह आदेश जिलाध्यक्ष को पालन करना ही होगा। लेकिन चित्रकूट में जब धर्मपाल सिंह जी ने कहा  “अध्यक्ष जी से कहो”, तो यह सत्ता नहीं, सेवा का भाव था। यह न केवल भाजपा के संगठनात्मक अनुशासन का साक्ष्य था, बल्कि एक बड़े राजनीतिक दर्शन का संकेत भी।

आज जब राजनीति में पद, पैसा और प्रचार का घमंड आम होता जा रहा है , जब कि कितनी फॉर्च्यूनर उनके पीछे चलती हुई नजर आएंगी , नई नवेली थार भी नखरे नही दिखाती पीछे चलती है और सफारी भी चलती है और तो और तमाम आदेश का पालन कराने वाले लोग आदेश का पालन करने के लिए कान खोलकर रखते हैं कि भाईसाहब ……. कुछ बोले तों !

ऐसे में फॉर्च्यूनर, थार और सफारी जैसे तमगे लेकर चलने वाला एक नेता यदि विनम्रता से कहता है – “अध्यक्ष जी से कहो”, तो यह घटना केवल एक संवाद नहीं बल्कि एक संवादशील संस्कृति की घोषणा बन जाती है। वह राजनीति में मर्यादा का नया प्रतिमान रचती है।

यह घटना उस संक्रमणकाल में एक सजीव आशा बनकर उभरती है, जब राजनीतिक संवाद अक्सर विवादों में तब्दील हो जाता है, जब कार्यकर्ताओं के जीवन में लोकनीति की जगह लोक लुभावनवाद हावी हो जाता है। धर्मपाल सिंह जैसे नेता उस रामद्वार को खोलते हैं, जो अच्छे लोगों को राजनीति में आने का रास्ता दिखाते हैं।

सिर्फ एक वाक्य ने हृदय छू लिया था और तब मुझे लगा था कि कोई दिन लिखूंगा कि सामाजिक राजनीतिक व्यक्तिवादी जातिवादी धनपशुओं के घमंड के संक्रमण काल में ऐसे व्यक्तित्व भी राजनीति मे हैं जहाँ विवाद नही संवाद होता है जो राजनीति मे अच्छे लोगों के लिए ‘ राम द्वार ‘ खोलकर रखते हैं।

जो सिखाते हैं कि राजनीति केवल सत्ता नहीं, एक साधना है। भाजपा का हर कार्यकर्ता यदि ऐसे नेताओं को आदर्श बनाए, तो न केवल उसका जीवन सार्थक होगा, बल्कि यह देश और समाज के लिए सच्चे अर्थों में कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देगा।

चित्रकूट की धरती पर श्रीराम के वनवास की यादें आज भी ताजा हैं, और आज जब कोई राजनेता वहाँ रहकर “अध्यक्ष जी से कहो…” जैसी पंक्ति बोलता है, तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि “ कलियुग में राजनीति के मर्यादा पुरुषोत्तम ” वास्तव में हैं – संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह।