केन्द्र सरकार के सुअर मांस बंदी के निर्णय से छद्म सेक्युलर की खुली पोल

By – Ganga mahto

||पोर्क बैन||
“मितरों.. भाइयों और बहनों…  आज भारत में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है.. इनकी अपनी आस्था व विश्वास है… मितरों दुनिया के 57 मुस्लिम मुल्कों में ‘पोर्क’ बैन है.. तो भारत में भी अपने मुस्लिम भाइयों के आस्था का ख्याल रखते हुए हमने ‘पोर्क’ बैन करने का निर्णय लिया है मितरों.. अगले महीने की एक तारीख से ये ‘पोर्क बैन’ पूरे देश मे प्रभावी हो जाएगी।“
अब चूँकि बीजेपी और मोदी ने फैसला लिया है तो शेखुलर पार्टियों को तो विरोध करना फर्ज होना ही माँगता.. उतर गए सब ताल ठोक के मैदान में।
मायावती “हम मोदी जी को बताना चाहते है कि आपने बहुत ही घटिया निर्णय लिया है.. हमारे कितने ही दलित भाई सुअर के माँस का कारोबार कर अपनी जीविका चलाते है.. पेट पोसते है और गुजर बसर करते हैं.. हमारा सुअर पालन और शिकार का इतिहास मनुवादियों के इतिहास से भी पुराना है.. हम ये यूँ ही बैन होने नहीं देंगे। .. मोदी सरकार ये पोर्क बैन निर्णय जल्द से जल्द वापिस ले।“
लालू जादो “ई ससुर का नाती मोदिया पगला गया है का.. चला है गरीब-गुरुआ के पेट में लात मारने.. कुछो बुझाता-सुझाता है कि नहीं इसको.. हमेशा अडानी अंबानी का चश्मा पहने रहता है का.. दूर सुदूर गाँव में रहने वाला गरीब परिवार, जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासी भाई बहन सब के लिए सुअर बहुत मायने रखता है.. ई गुजरात का बनिया का समझेगा.. बड़ा चला आया है पोर्क बैन करने?.. बीफ बैन बीफ बैन का हवा निकल गया अब आये पोर्क बैन करने!? .. हुंह .. बुरबक सुधर जाओ नय तो देस हिला देंगे!!”
रवीश कुमार “देखिये ई जो चल रहा है न वो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है.. अब लोकतंत्र या जनतंत्र नहीं रहा .. धीरे-धीरे यह भीड़तंत्र और तानाशाही में बदलता जा रहा है.. आदमी का खाये का न खाये ये तय करने वाली सरकार कौन होती है.. और बात केवल बैन की नहीं है.. एक सतही स्तर पर देखे तो बहुत से गरीब परिवारों का इससे पेट पलता है.. अगर ये बैन होता है तो प्रत्यक्ष रूप से इनके ऊपर बहुत ज्यादा असर होगा.. इसपे सरकार को सोचना चाहिए!”
इधर सबसे उहापोह की स्तिथि में शांतिदूत पार्टियां .. ये कौन से मज़हब-संकट में फंसा दिया रे ई मोदिया !!? .. समर्थन करे तो कैसे करे और विरोध करे तो कैसे करे !!?? 
एक संघी टेप के पतरकार ने पूछ लिया एक शांतिदूत नेता से,

“साहब आपका ‘पोर्क बैन’ के ऊपर क्या कहना है !?”

“देखिये ज़नाब बात ऐसी~~~~ है~~~~ कि~~~~ वो~~~ ऊऊऊ~~~~ मो~~~~ … !!”

“साहब जब मोदी जी ने बीफ बैन की घोषणा की थी तो आपने और आपकी पार्टी ने, कॉंग्रेस ने और तमाम वाम पार्टियों ने सड़कों पे खुले आम गौकशी करके उसका माँस सार्वजनिक तौर पे और मीडिया के सामने खाया था.. तो क्या आपलोग इस बार भी पोर्क बैन के विरुद्ध में सड़कों पे सुअर मार कर उसका माँस खाने वाले हो !!?”

“ये बकवास फरमा रहे हो ज़नाब!!? सवाल पूछने से पहले अक्ल बेच आये हो क्या.. हम क्यों खाने लगे पोर्क !!? … एक मुसलमान खा ही सकता पोर्क!! 

“तो आप पोर्क बैन के पक्ष में है !!?”

“एक मुसलमान होने के नाते इस निर्णय के पक्ष में हूँ लेकिन गरीब दलित भाइयों के लिए विरुद्ध में भी हूँ!!”

“ये क्या बात हुई पक्ष में भी है और विरुद्ध में भी !!??”

“अब नो मोर क्वेश्चन.. मैंने जवाब दे दिया है!!”
इधर सोशल मीडिया में भी वही हालत शांतिदूतों का ..

 विरोध करे तो दीन से जायेंगे और समर्थन करे तो दलित हाथ से जायेंगे।.. तो फिर ऐसे में जे मीम-जे भीम का क्या होगा!!?
तो बोलो .. जे मीम-जे भीम 
(मोदी जी एक बार पोर्क बैन की घोषणा कर ही दो आप !!)

☺☺☺



संघी गंगवा

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