रामराज्य का भावार्थ है भरत जैसा सेवक जिन्होंने अयोध्या के सिंहासन पर राम जी की चरण पादुकाएं रखकर जनसेवा की : रामदयाल त्रिपाठी
रामराज्य के असली मतलब और मकसद का चिंतन होना चाहिए। क्योंकि रामराज्य की परिकल्पना तभी साकार हो सकती है जब जन जन के मन मे राम के राज्य की अवधारण जल मे सूर्य की तरह स्पष्ट नजर आए तो एक ऐसा ही चिंतन नेता और जनता के मन से निकलना चाहिए। इस संबंध मे भाजपा नेता रामदयाल त्रिपाठी से पहला संवाद किया गया।
पूर्व प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य रामदयाल त्रिपाठी ने कहा कि रामराज्य मे भरत जैसा सेवक सबसे बड़ा उदाहरण है , जब भाई भरत ने कहा था कि भैया मुझे अपनी पादुकाएं ही दे दो जिन्हें सिंहासन मे रखकर मैं राजकाज संभालूंगा।
उन्होंने कहा कि इससे एकदम स्पष्ट है कि भरत के हृदय मे राम थे। जिनके अंदर रत्ती भर भी अभिमान नही था और राजा कहलाने का शौक नही था। भरत की चर्चा बहुत कम होती है लेकिन श्रीराम ने इसलिए हनुमान जी से कहा था जिसका वर्णन हनुमान चालीसा मे है कि भरतहिं सम भाई अर्थात भरत जैसा भाई और भरत जैसे भाई की तरह हनुमान तुम मुझे प्रिय हो।
क्योंकि त्याग तपस्या और सेवा का एक मात्र उदाहरण भरत ने ही प्रस्तुत किया। जहां राम देह से उपस्थित नही वहां रामराज्य की कल्पना को भरत ने साकार किया और आज भी राम देह से उपस्थित नही है लेकिन रामराज्य की कल्पना साकार करना है तो कोई भरत ही कर सकता है।
उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे एकाध विरले नेता ही त्याग सेवा और तपस्या के बल से ऐसी अवधारणा को साकार करने की कोशिश करते नजर आते हैं लेकिन क्षेत्र , जनपद और गांव तक जब त्याग तपस्या और सेवा के बल से नेता कोशिश करेंगे तब जाकर रामराज्य की कल्पना साकार होती नजर आ सकती है।
श्री त्रिपाठी ने कहा कि आज भरत की चर्चा करने की सबसे ज्यादा जरूरत है। कलयुग के लोकतांत्रिक नेताओं मे भरत जैसा ईमानदार व्यक्तित्व बस जाए तो त्याग तपस्या और सेवा भाव से नागरिक समाज मे बड़ा बदलाव आ सकता है। क्योंकि रामायण और रामराज्य का सबसे भावुक पल भी यही थे जब श्रीराम की चरण पादुका लेकर भरत जी ने अयोध्या के सिंहासन पर रखकर खुद एक तपस्वी की तरह अयोध्या नगरवासियों की रखवाली की और सेवा ऐसी कि श्रीराम कभी शिकायत ना दर्ज करा सकें तो रामराज्य को साकार करने के लिए जनता तैयार हो जाए और अपना योगदान अवश्य दे।