जनजातीय अस्मिता और सनातन चेतना का संगम पटना कला में शक्ति वंदन के माध्यम से नवजागरण की पहल

जनजातीय अस्मिता और सनातन चेतना का संगम: पटना कला में ‘शक्ति वंदन’ के माध्यम से नवजागरण की पहल

भारत की सामाजिक संरचना में जनजातीय समुदायों की भूमिका सदैव केंद्रीय रही है, किन्तु उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की प्रक्रिया में वर्षों की उपेक्षा और संघर्ष भी जुड़ा रहा है। इस पृष्ठभूमि में मझगंवा तहसील, मध्य प्रदेश के पटना कला गाँव में आयोजित “शक्ति वंदन” कार्यक्रम न केवल एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है, बल्कि यह उस सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति भी है जो आदिवासी अस्मिता, सनातन परंपरा और सामाजिक सशक्तिकरण को एकत्र कर राष्ट्रीय धारा से जोड़ने की दिशा में अग्रसर है।

■ रानी दुर्गावती: प्रतिरोध और नेतृत्व की आदिवासी प्रतीक

कार्यक्रम की केंद्रीय प्रेरणा रहीं रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती केवल एक स्मरण नहीं, बल्कि जनजातीय चेतना के सम्मान का प्रतीक अवसर है। रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास में वह क्रांतिकारी अध्याय हैं जिन्होंने मुगलों के विरुद्ध संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन आत्मसमर्पण नहीं किया। यह कार्यक्रम इस गौरवशाली परंपरा को पुनः जनमानस में प्रतिष्ठित करने का एक संवेदनशील प्रयास है।

■ आदिवासी महिलाएं : परंपरा की वाहक, परिवर्तन की अग्रदूत

इंटरनेशनल पायनियर्स क्लब द्वारा 101 आदिवासी महिलाओं को पीत वस्त्रों में साड़ी भेंट कर सम्मानित किया जाना केवल एक सांकेतिक सम्मान नहीं, बल्कि यह उस सामाजिक पुनर्विचार की शुरूआत है जहाँ महिलाएं केवल “संवेदना की पात्र” नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन की वाहक बन रही हैं। यह पहल, शक्ति के सनातन स्वरूप की पुनर्परिभाषा भी है।

■ नशा मुक्ति और शिक्षा : जड़ों की ओर लौटता सामाजिक सुधार

संस्था के अध्यक्ष केशव शिवहरे ने जिस स्पष्टता से नशा और अशिक्षा को ग्रामीण विकास की दो प्रमुख बाधाएं बताया, वह एक समकालीन सत्य है। जब जनजातीय समाज के भीतर से ही नेतृत्व तैयार हो रहा है और नवयुवकों को नशा मुक्ति व स्वावलंबन की दिशा में प्रेरित किया जा रहा है, तब यह केवल एक सामाजिक उपदेश नहीं, बल्कि आंदोलन का रूप ग्रहण करता है।

■ राष्ट्र ऋषियों की धरती पर नव-जागरण

यह कोई संयोग नहीं कि जिस गाँव में राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख, राष्ट्रपति कलाम और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसी विभूतियों की उपस्थिति रही हो, वहां अब जनजातीय चेतना और सनातन मूल्यों का संगम होते हुए देखा जा रहा है। डॉ. रामनारायण त्रिपाठी का यह कथन कि “गायत्री परिवार और पायनियर्स क्लब आने वाली पीढ़ी को राष्ट्र के प्रति संस्कारित बनाने हेतु प्रतिबद्ध हैं”, अपने आप में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जीवंत घोष है।

■ जन आंदोलन की ओर संकेत

यह आयोजन केवल एक स्थानीय कार्यक्रम नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक मॉडल बन सकता है कि कैसे सामाजिक संस्थाएं, सांस्कृतिक चेतना और जन सहभागिता के माध्यम से जनजातीय क्षेत्रों में आत्मगौरव, आत्मनिर्भरता और सामाजिक जागरूकता के बीज बोए जा सकते हैं। यह कार्यक्रम “सेवा और शक्ति” के संकल्प का साक्षात रूप है।

पटना कला में हुआ यह आयोजन उस सच्चाई को रेखांकित करता है कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है, और जब गांव स्वयं जाग्रत होते हैं, तब देश की आत्मा सशक्त होती है। यह महज साड़ी वितरण का कार्यक्रम नहीं था, यह एक सामाजिक नवजागरण था — जहाँ एक ओर रानी दुर्गावती की वीरता का स्मरण था, वहीं दूसरी ओर आने वाली पीढ़ियों को नशा, अशिक्षा और उपेक्षा से लड़ने का सामर्थ्य देने की तैयारी भी।

लेखक पत्रकार सौरभ स्वतंत्र द्विवेदी की कलम से