साथ होने का भ्रम महज है , वास्तव मे हम अकेले हैं !
By – Saurabh Dwivedi
साथ होने का भ्रम महज है , वास्तव मे हम अकेले हैं !
मैं सुख की तलाश में घर वापस हो रहा था। इस उम्मीद के साथ घर पहुंचू और आराम कर सुखमय जिंदगी महसूस करूं। कुछ किलोमीटर चला था कि सड़क पर एक जिंदगी को लेटा देख , हतप्रभ रह गया !
बाइक किनारे लगाकर दादी माँ से सवाल करने लगा , तो उनका जवाब मिला कि मरना चाहती हूँ। कारण एकदम सापेक्ष है , जैसी सच्ची कहानियां सुन चुके हैं कि अकेलेपन की शिकार माँ कमरे में दम तोड़ चुकी है। उनकी लाश सड़ती रही।
बच्चों को मिलने का समय नहीं और जिंदगी में कोई सुख महसूस कराने वाला शख्स नहीं ! शख्सियत बनने की चाह में देश से विदेश चले जाते। नौकरी के जंजाल में फंस जाते या फिर अपनी जिंदगी में मस्त हो जाते।
बहुत से हाई – प्रोफाइल मामले सामने आ चुके हैं , पर इन गरीबों की आवाज कोई सुनकर भी अनसुना कर देता है। सड़क पर आंखो से देखते हुए लोग आगे बढ़ जाते हैं। लोग देखते हैं पर आंखो से तरंगे अंदर पहुंचकर संवेदनशीलता जागृत नहीं होती है।
दादी ने बताया कि दसवीं में पढ़ने वाला बेटा पीटता है , अपशब्द कहता है। पति वाचमैन है , वो भी कुछ ख्याल नहीं रखता। इसलिये मैं मर जाना चाहती हूँ।
उनका पति सामने एक प्लांट मे काम करता था। मैं उसके पास गया और पूंछने लगा तो लीजिए पति की भी अपनी व्यथा है कि उसकी पत्नी अपना बिस्तर लेने नहीं जा रही। वो मेरे ही बिस्तर में लेटना चाहती है। उसे कह रहा हूँ कि अपना बिस्तर लाओ और यहीं रहो।
पति ने बताया कि हमारे चार बेटे और थे , सभी की मृत्यु हो गई। ये अंतिम बेटा है , जो दसवीं में पढ रहा है। खैर इतना सबकुछ सुनकर मेरी समझ में नहीं आया कि कैसे दादी का जीवन सुखमय हो।
अंततः दादी के पास जाकर दो शब्द संवेदना के कहे और इतना ही कर सकता था। ये दृश्य देखने के बाद विचलित हो गया। जिंदगी का सच यही है। वक्त सब पर भारी होता है। मानसिकता का संकुचित हो जाना भी जिंदगी को खतरे में डाल देता है। अविश्वास इतना बढ़ गया कि लोग आपस में विश्वास नहीं कर पा रहे। जिंदगी को जटिल बना दिया गया है , जबकि बड़ी सहज-सरल हो सकती है।
देह समाधिस्थ हो त्याग दी जा सकती है , पर समाधिस्थ होने के लिए तप करना पड़ता है और जिंदगी को सुखमय बनाने के लिए प्रेम तथा सामाजिक कल्याण की भावना अंतःकरण में होनी चाहिए। अन्यथा एक दिन जिंदगी से मुक्ति चाहने के लिए स्वयं को मौत के समक्ष सड़क या चारदीवारी के अंदर झोंक देते हैं।