धर्म परिवर्तन करने वाले पहले स्वयं को जान लें.

अगर धर्म परिवर्तन करने से सुकून मिल सकता है। मान सम्मान मिल सकता है। शोषण, अत्याचार नही होगा, कोई मुझे उपेक्षा की दृष्टि से नही देखेगा। इस समाज मे व्याप्त अपराध खत्म हो जायेगें। 
यकीनन इससे सरल मार्ग क्या हो सकता है। जहाँ धर्म परिवर्तन मात्र से आत्मा को सुकून मिल जायेगा। एक अच्छा जीवन यापन होने लगेगा। दुख दर्द दूर हो जायेगें। वो प्रेम स्नेह मिल जायेगा तो सचमुच धर्म परिवर्तन कर लेना चाहिए।
पर मैंने बहुत चिंतन किया। मुझे नही महसूस होता कि धर्म परिवर्तन से जीवन उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है। आत्मा को सुकून मिल सकता है। अगर तनिक भी महसूस हो जाता कसम से मैं धर्म परिवर्तन कर लेता ! 
असल में भटके हुए लोगो का धर्म परिवर्तन कराकर अपनी मौर मुकुट के अभिमान मे चूर रहते हैं लोग। अगर किसी धर्म की अच्छाई की प्रधानता धर्म परिवर्तन करके आने वाले लोगों से तय होती है। अगर किसी धर्म की बुराई की प्रधानता जाने वाले लोगों से तय होती है तो कितने भूल मे जी रहे हैं तमाम धर्म गुरू। बड़े भ्रामक, कटिहल होगें ऐसे धर्म गुरू। कहलायेगें गुरू और ज्ञान लेबीचूस वाले, चूर्ण वाले “गुरू चेला” की तरह का भी नही होगा। 
अरे वो लोग तुम्हारे धर्म का झंडा उठायेगें। जो स्वयं को नही जान सके। वो कौन हैं ? उन्हे क्या करना है ? उनका जन्म किसलिये हुआ है ? उनकी आत्मा क्या चाहती है ? उनका मन क्या महसूस करता है ? और ऐसे लोग भगवान की मूरत को लेकर जल विसर्जन करने पहुंच जाते हैं।
देखो कितनी सही जगह पर भगवान को विसर्जित किया है। भगवान का इशारा तो देखो। स्वयं ही अपनी सही जगह पर पहुंच गये और वो दंभ मे होगे कि हमने गणेश को पानी मे फेक दिया। ना जी ना, आपको और उन धर्म गुरूओं को जीवन को जानने की जरूरत है। 
जो हिन्दू धर्म को नही जान सके, जो स्वयं को नही जान सके। वो क्या बौद्ध और बुद्ध के साथ न्याय कर पायेगें। अरे बस हम जानते हैं कि दिलीप सी मंडल (का. नाम) जैसे भटके धंधेबाज लोगों की वजह से आप भटक जाते हैं क्यूंकि आप भटके हुए हैं और सदैव भटकते रहेगें। जो अपने अंदर नही झांक सकते वो बाहर झांककर कुछ नही प्राप्त कर सकते। मुट्ठी खाक की है और खाक की रहेगी, सीना भी खाली और खाली रहेगा। 
अगर जानना चाहते हो तो स्वयं को जानिए। सामाजिक परिवर्तन मे सहभागी बनिए। धर्य है नही धर्म बदल देगें।

Saurabh Dwivedi