सचमुच इश्क है इसे पकने दो , तन मे मन मे और जहाँ इश्क हो वहाँ पकने दो
इश्क पर भी नही लिख जाता है जब ये इश्क दो राहे मे आ खड़ा हो जाता है। कहते हैं ना इश्क अंदर की बात है। दिल की बात है ना दिमाग की बात है। सचमुच इश्क है इसे पकने दो , तन मे मन मे और जहाँ इश्क हो वहाँ पकने दो।
ये मीठा सा अहसास है या दर्द है पर इश्क है। बहुत प्यारा सा अहसास है जिसे प्यार कहते हैं और प्रेम कहते हैं। दिल की बात दिल मे ही रहने दो।
दुनिया मे और क्या चाहिए ? सब सुख के लिए मर रहे हैं और तलाश रहे हैं प्रेम कि कहीं मिल जाए ? ठहराव मिल जाए और प्रेम हो जाए।
सच्चा वाला प्रेम। एक ऐसा प्रेम जो सुख दे। आनंद ही आनंद रहे। पर क्या ऐसा हो सकता है ?
जो खुद को नही पहचानता ? जिसे खुद की चाहत नही पता ? वो प्रेम को पहचान सकता है ? उसे पता चल सकता है उसे प्रेम हो गया ?
क्या वो जान सकता है ? जिससे वो प्यार करता है वो भी उसके प्रेम मे है ? स्त्री हो या पुरूष ?
अरे ठहरो ठहरो ! स्त्री – पुरुष के प्रेम पर बात करना मतलब प्रेम को तलाशना हो जाता है या अपराध हो जाता है। बातें हो सकती हैं राजनीति की या जबरन हो रहे शोषण व अपराध की खुलेआम लेकिन प्रेम की नही हो सकती।
प्रेम के लिए दरवाजे बंद है। दिल का फाटक बंद है और कैद हैं प्रेम के अहसास और तमाम वो किस्से जिन्हें पढ़कर ही किसी को सुख मिल जाए लेकिन हम भाग रहे हैं एक अंतहीन लक्ष्य की ओर , जहाँ कमाना है ढेर सारा रुपया भरनी है कोठरी और खाली रखनी है सीने की कोठरी या हो जाना है पत्थर दिल।
यकीनन हम इस दुनिया मे खुलकर प्रेम को व्यक्त नही कर सकते। हम इस व्यवस्था मे प्रेम कर ही नही सकते इसलिए शक होता है अगर किसी को प्रेम हो गया ? अरे ये प्रेम करता है ?
हाँ ! वो प्रेम करता है। उसे सुगंध आती है प्रेम की जो तुम्हे नही आ सकती क्योंकि तुमने प्रेम किया ही नही। क्योंकि तुम्हे जन्म जन्मांतर के रिश्तों का अहसास नही है। क्योंकि तुम प्रेम की गहराई मे नही डूब सकते। क्योंकि तुम मे प्रेम जितना धैर्य नही।
लेकिन प्रेम चुन लेता है जैसे समय चुन लेता है अपना नायक और नायिका तो हो सकता है प्रेम के ऐसे ही कोई नायक नायिका अंतर्मन से प्रेम करते हों और हो सकता है कि व्याकुल प्रेमी खत लिखता हो प्रेयसी के लिए और वो खत अपना आकार-प्रकार समय-समय पर तय कर रहे हों और प्रेम का एक ऐसा सफर चल रहा हो कि एक दिन वो काल्पनिक प्रेम शब्दों मे ढलकर दिलों मे प्रवेश कर रहा हो , कि देखो एक नायिका ऐसी थी जिसने प्रेम की ऐसी महक बिखेर दी अपने पात्र प्रेमी से कि दुनियाभर को प्रेम का प्रकाश नजर आया।
हाँ ! प्रेम दिल को प्रकाशित कर देता है , हाँ प्रेम का स्पंदन उम्र बढ़ा देता है और इसी स्पंदन मे आनंद है इसलिए हो ना हो प्रेम हमेशा कल्पनाओं मे ही साकार हुआ है और ऐसा ही एक अधूरा इश्क पूरे प्रेम को ये शब्द ये स्वर प्रदान करता है कि बस प्रेम के नायक और नायिका का अहसास भरा आलिंगन ब्रह्मांड की महत्वपूर्ण घटना बन जाता है।
तुम्हारा ” सखा “