साहसी बदलाव और ईश्वर का प्रभाव
बहुत मुश्किल होता है,अपने आप को ऐसी परिस्थिति से बाहर निकालना जिसमे हम बुरी तरह से फंस चुके हो,बहुत कठिन होता है, जब डंडे के वार के स्वरूप हमारे मन में विभिन्न प्रकार के विचार वार करते हैं और हम उन विचारों को खत्म नहीं कर पाते , जिससे की हमारे मस्तिष्क में शांति की स्थापना हो सके ।
बहुत कुछ चलने लगता है मन में , जो ना भी सोचना हो वह भी सोचने के लिए हमारा मस्तिष्क कार्य करने लगता है , सकारात्मक ऊर्जा कम होने लगती है , और नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होने लगती है , जो कार्य हम कर सकते हैं , वह कार्य भी “हमसे नही हो पाएगा” यह कहकर हम उस कार्य को नही कर पाते है। और कार्यात्मक ऊर्जा पूर्णतः ना के बराबर हो जाती है ।
चंद परिस्थितियों के कारण एक मूल्यवान इंसान मूल्यहीन हो जाता है , मूल्यवान के अर्थ से हम कह सकते है की हम जिस कार्य को करने के लिए सदैव उच्च और गुणवत्ता पूर्वक स्वीकार किए जाते थे , परंतु इन सभी समस्याओं एवं परिस्थितियों के कारण हम असफल और अपने कार्य के प्रति गुणवत्ताहीन हो जाते हैं।
हम अपना आत्मसुकून , आत्मसाहस और अपने सेल्फ कॉन्फिडेंस को खो देते हैं । नकारात्मक ऊर्जा मन में इस प्रकार वास कर लेती है की हम पूरी तरह से अपने अस्तित्व को भी भुला देते हैं , अंततः हम सिर्फ यह कल्पना ही कर सकते हैं की हम क्या थे और क्या हो गए है ।
यह तो सत्य है की जब हम ऐसी परिस्थिति में अपना जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं , तो हमे पूर्णतः यह बात तो समझ आ जाती है की हम कर क्या रहे हैं ? , हम क्या सोच रहे हैं ? , हम ऐसा जीवन क्यों व्यतीत कर रहें है ? , और हम कब तक ऐसी परिस्थिति को झेलते रहेंगे ? ,
और सच कहूं तो हमारे पास सवाल तो बहुत होते हैं , लेकिन इन सवालों का जवाब नही होता , और यही सोच घुटन बनने लगती है , हम सोचते तो हैं की हम कुछ कर लें , जिससे हम इस परिस्थिति से अलग हो जाए , लेकिन सच कहूं तो हम ऐसा कर नही पाते और इसका कारण सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक ऊर्जा का मन एवं मस्तिष्क में पूर्णतः हावी होना है ।
मन में आ रहे अनेकों प्रकार के विचार समुंदर जैसी इस परिस्थिति में और भी गहराई तक अपना स्थान बना लेते है , और हमारे पास भयभीत होने के अलावा और कुछ नही बचता , सच कहूं तो यह परिस्थिति तो सिर्फ वही समझ सकता है , जो इससे रूबरू हुआ हो ,या तो वह ऐसी दयनीय परिस्थिति के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा हो ।
इन परिस्थितियों को समझ तो हर कोई लेता है ,लेकिन इसके निवारण को खोजना अत्यंत कठिन कार्य है , आखिर है क्या इसका निवारण ? ,किस प्रकार हम इस परिस्थिति का संपूर्ण हल प्राप्त कर सकते , मन में उठ रही वेदना बढ़ती चली जाती है , लेकिन निवारण का मिलना कम होता चला जाता है ।
सच कहूं तो विचार और विवेचनाओं के सामने तो हर कोई नतमस्तक हुआ है , और हम इन्हीं विवेचना और विचारों का निवारण खोज रहे हैं , और कहते भी हैं , की जिस कार्य को इंसान संपूर्ण लगन और मेहनत के साथ करने लगता है , तो वह कार्य अनेक असफलताओं के बाद भी सफल बन जाता है , लेकिन यह निवारण तो उस सोच का है जिसके आधार पर ही कोई कार्य किया जा सकता है ।
नकारात्मक ऊर्जा बहुत ही सरल माध्यम से हमारे व्यक्तित्व में प्रवेश कर जाती है , जो पूर्णतः हमारे लिए बहुत ही हानिकारक है , और यह मस्तिष्क को भी तनावपूर्ण अवस्था में रखती है , और यह हमें अंधकार रूपी जीवन व्यतीत करने में अग्रणी रखती है । यह स्थिति प्रकृति द्वारा उत्पन्न नही होती , यह मानव द्वारा निर्मित होती है ।
इन सभी परिस्थितियों में स्वयं को अपना जीवन व्यतीत करते देख , मानसिक समस्याओं का विकास अत्यधिक उज्जेतना के साथ बढ़ने लगता है , जिसके कारण शारीरिक विकास , मानसिक विकास , ऊर्जा वृद्धि , एवं अन्य सभी सहायक ऊर्जाएं जिनके फलस्वरूप मानव शरीर विकसित होता है , वह सभी जरुरते खत्म हो जाती है , और हमारा अस्तित्व बुझे हुए दीपक के समान प्रतीत होने लगता है , क्योंकि दीपक के बुझने के बाद उसकी अहमियत खत्म हो जाती है , वैसे ही इंसान का विकास जब रुक जाता है एवं वह पूर्णतः अपने अस्तित्व को खोने लग जाता है , तो वह समाज की नजरो में नही आता है , समाज तो फिर भी एक बहुत बड़ा स्थान है , यहां तक की वह इंसान स्वयं अपनी नजरो में नही आता ।
इस बीमारी का सटीक इलाज तो नही जानता मैं लेकिन मैं इतना कह सकता हूं की इस बीमारी से , इस परिस्थिति से , इस अंधकार मय स्थिति से बाहर निकलने एवं इसका संपूर्ण समाधान प्राप्त करने के लिए स्वयं ही हमको औषधि अथवा इलाज के रूप में उत्पन्न होना होगा , और यह तभी हो सकता है जब हम अपने पूर्ण साहस से अपने आप को इस जंग में लड़ने के लिए तैयार कर लेंगे , सच कहूं तो यहां जंग नामक शब्द ही समुचित मात्रा में अपना स्थान दर्शा रहा है , क्योंकि यह समस्या किसी भयानक जंग से कम नहीं है , बहुत कठिन है इस जंग में जीत की इमारत हासिल करना।
जब किसी को इस समस्या के बारे में कोई जानकारी भी नही होती तब भी वह इसे आजमाने के लिए अग्रणी हो जाते है , वह अपने स्वार्थ के समक्ष इस समस्या से आने वाली दिक्कतों के विषय में कल्पना भी नहीं करते और अपने आप को इस समस्या का आदि बना लेते है , किंतु सच तो यह है की इस समस्या की क्षमता का विकास हमारे द्वारा की गई गलतियों के कारण ही होता है , लेकिन जो हो चुका है , उसके बारे में ना जानकर हम यह तो जान सकते हैं ना की इस समस्या से बचने के लिए और इस समस्या का समाधान प्राप्त करने के लिए हमे करना क्या होगा ।
जैसा की मैने कहा है की इस समस्या का समाधान प्राप्त करने के लिए साहस की क्षमता को उचित मात्रा से और भी अधिक बढ़ाना होगा ,लेकिन इसी बीच एक सवाल और उत्पन्न होता है की जब हमारा विकास पूर्णतः थम गया है , तो हम और साहस कहा से लाए कैसे अपने आप को इस समस्या से बचाए ।
और मैने कहा भी था , की सवाल तो बहुत हैं लेकिन हमारे पास इन सवालों के जवाब नही हैं।
किंतु हमारे पास एक अवसर है स्वयं को साहसी बनाने का , जंग को जीतने के लिए साहस उत्पन्न करने का , और वह अवसर सिर्फ और सिर्फ एक ही है , जो की “भगवान के चरणों में आश्रित होना ” ।
जैसे निरंतर प्रयत्न करने से सफलता मिलती है , वैसे ही निरंतर शुद्ध हृदय से ईश्वर के प्रति अपना प्रेम प्रकट करने और अपने विनाशकारी कार्यों को खत्म कर , सहज भाव से पवित्र कर्म करते रहने से हम ईश्वर के प्रति कार्यरत होने लग जाते है , जिससे “ईश्वर नामक औषधि” हमारे मन में प्रवेश कर लेती है , और हमे उन परेशानियों से बचाती है , जो हमारे अस्तित्व को खत्म करती जाती हैं ।
सच कहूं तो ईश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है , ईश्वर की तुलना में कोई भी कार्य ऐसा नहीं है , जो भगवान की उपासना करने के बाद सफल न हो , ईश्वर की महिमा को जगाने के लिए निरंतर कर्म करना चाहिए , और अपने आप को ऐसी परिस्थिति से बाहर निकालने के लिए निरंतर ईश्वर नामक मंत्र का जाप करते रहना चाहिए ।
अंततः मैं एक ही बात स्पष्ट करना चाहूंगा की जिस प्रकार कंप्यूटर में आए किसी वायरस को समाप्त करने के लिए एंटी वायरस का प्रयोग किया जाता है , उसी प्रकार मन एवं मस्तिष्क में आ रही नकारात्मक ऊर्जा और असहनीय पीड़ा को पूर्णतः खत्म करने के लिए , ईश्वर नामक सकारात्मक ऊर्जा के चरणों में निर्मल एवं स्वच्छ मन से नतमस्तक होना चाहिए ।
और जिस दिन ऐसा हो जायेगा उस दिन इस मानव रूपी जीवन में कोई ऐसा नहीं बचेगा जो यह कह दे की आज भी हम अपनी इस दयनीय परिस्थिति और नकारात्मक ऊर्जा से भरपूर मस्तिष्क से जंग लड़ रहें है , क्योंकि ईश्वर की महिमा , उनका प्रेम और उनकी दैवीय शक्तियां इंसान के सभी कष्टों को हर लेती है , जिससे मानव विकास निरंतर बढ़ने लगता है ।
एक और छोटी सी बात कहूंगा कि आप ईश्वर के चरणों में कम और अपने माता पिता के प्रति सम्मान और उनके चरणों में नतमस्तक हों क्योंकि भगवान ने अपनी तुलना में माता और पिता को ही सर्वोपरि बताया है , किंतु ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्य को जागृत रखें ।